main slideलाइफस्टाइल

अनोखा दशहरा, जहां देवलोक से आते हैं देवी-देवता !

पूरे देश में नवरात्रि की समाप्ति के बाद दसवें दिन दशहरा का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के आधार पर दशहरा बुराई  पर अच्छाई का एक प्रतीक है और  इस दिन रावण दहन किया जाता है. कहते हैं कि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर बुराई को हराया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसी जगह भी है जहां बड़े अनोखे अंदाज में दशहरा मनाया जाता है.

इस जगह न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही कोई कहानी सुनाई जाती है. बल्कि कहते हैं इस दशहरा में शामिल होने के लिए देवलोक से देवी-देवता भी धरती पर आते हैं.

कूल्लू दशहरा 

यह दिलचस्प और अनोखा मेला हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय शहर कूल्लू में मनाया जाता है, जो कि केवल देश में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में काफी प्रचलित है. कहा जाता है कि दशहरे में देवताओं का मिलन होता है और उनके रथों को खींचते हुए ढोल-नगाड़ों की धुनों पर नाचते हुए लोग मेले में आते हैं. सात दिनों तक चलने वाले दशहरे की शुरुआत आश्विन मास की दशमी तिथि से होती है जो कि इस बार 5 ​अक्टूबर 2022, बुधवार को है. कूल्लू दशहरा हिमाचल की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है.

कूल्लू दशहरा का महत्व

हिमाचल प्रदेश के कूल्लू में मनाया जाने वाला कूल्लू दशहरा की शुरुआत दशमी तिथि यानि 5 अक्टूबर से होगी और यह 11 अक्टूबर को समाप्त होगा. जहां देशभर में दशहरे के दिन रावण दहन के साथ त्योहार पूरा हो जाता है, वहीं कूल्लू दशहरा तब शुरू होता है और सात दिनों तक चलता है.

मेले में आते हैं देवी-देवता

कहा जाता है कि कूल्लू दशहरे में करीब देवलोक से देवी-देवता धरती पर आते हैं. कूल्लू की परंपरा के अनुसार इस कूल्लू दशहरे के मेले में भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा के साथ दशहरा शुरू होता है. इसके साथ ही सभी स्थानीय देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की धुनों पर यहां आते हैं. हिमाचर के प्रत्येक गांव के एक अलग देवता होते हैं जिन्हें इस मेले में शामिल होने के लिए रथों से लाया जाता है. बता दें कि कूल्लू दशहरा ढालपुर मैदान में पहली बार 1662 से मनाया गया था और तभी से हर साल इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button