सोचे विचारें

अपने को सेफ रखने के लिए भिन्न भिन्न बहानों का आधार लेते है

हम अपने को सेफ रखने के लिए भिन्न भिन्न बहानों का आधार लेते है। बहानेबाजी में यह शब्द नही निकलना चाहिए कि यह हुआ, वह हुआ, यह नही हुआ इत्यादि। हमने जीवन का आधार बना लिया है कि दूसरे बदलेगे तब हम बदलेगें। लेकिन वस्तविकता है कि हम बदल कर औरों को बदलेगे। क्योकि जब मै बदल जाऊगाॅ तब दूसरा स्वतः बदल जायेगा। हमे किसी भी बात में स्वयं में परिवर्तन लाने वाला बनना होगा।

परिवर्तन तो होना ही है क्योकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसलिए हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि परिवर्तन श्रेष्ठ और सही रूप में हो। समय को शिक्षक नही बनने देना चाहिए। क्योकि समय तो अपने समय पर हमें ठीक कर ही देगा। इसलिए सही और श्रेष्ठ रूप में परिवर्तन हमारे श्रेष्ठ प्राप्ति का आधार बनता है।

हमारे पास जो विघ्न आता है वह समय के अनुसार जरूर चला जायेगा। लेकिन विशेष बात यह है कि हम समय से पूर्व अपने में परिवर्तन लाने की शक्ति पैदा कर अपने को परिवर्तीत कर लेना है। इसलिए यह नही सोचना चाहिए कि जो आया है वह समय पर चला जायेगा अथवा हमारा हिसाब किताब पूरा हो जायेगा तब चला जायेगा। मै करूगाॅ तभी पाउगाॅ, नही करूगाॅ तो नही पाउगाॅ। यदि समय करेगा तब हम नही पायेगें। क्योकि यह समय की विशेषता है ना कि हमारी विशेषता है।

मौसम के फल की इतनी वैल्यू नही होती है, लेकिन जब हम बेमौसम फल को प्राप्त कर लें तब अधिक वैल्यू है। समय तो हमें स्वतः ही सम्पूर्ण बना देगा। इसलिए यह नही सोचना है कि हम सम्पूर्ण बन कर तब समय को समीप लायेगे। बल्कि जब हम सम्पूर्ण बन जायेगें तब समय स्वतः ही हमारे समीप आ जायेगा।

जो विधाता को जान लेता है, विधान व विधि स्वतः उसके बुद्वि और कर्म में आ जाता है। हमें विधि बनने के लिए विधानवाला बनना है। जब हमारे श्रेष्ठ कर्म होंगे तब हम विधाता बन जायेगें। इससे जो रीति, रस्म, और रिवाज प्रैक्टिकल के रूप में आ जायेगें। परिणाम स्वरूप हमारे सभी कार्य सदा के लिए विधान बन जायेगें।

इस यथार्थ विधि से सम्पूर्ण सिद्वि को अवश्य प्राप्त किया जा सकता है। सिद्वि को प्राप्त करने के लिए यही एक बात बुद्वि में आ जाय तब सहज ही विधि को प्राप्त कर लेते है। अर्थात सिर्फ एक युक्ति आ जाये तब पुरानी स्मृति की विस्मृति से सहज ही मुक्ति मिल जायेगी।

विशेष युक्ति है कि जब सामने कोई बात विघ्न रूप में आती है तब कोई बात में परिवर्तन लाना है। यदि ये युक्ति आ जाये तब सदैव विघ्नों से मुक्ति मिल जायेगी। लेकिन हमें बातों में परिवर्तन लाने का तरीका भी पता होना चाहिए। देह के स्थान पर आत्मा को देखना हमारी दृष्टि परिवर्तन का आधार है और व्यक्त सम्पर्क को अव्यक्त व अलौकिक सम्पर्क में परिवर्तीत करना है।

अपने वृत्ति, दृष्टि में परिवर्तन न कर पाने के कारण हम स्वयं अपने लिए विघ्न स्वरूप बन जाते है। यदि कोई अपकार भी करे तब उसे उपकार में बदलने का तरीका पता होना चाहिए। यदि कोई विरोधी स्वभाव और संस्कार के रूप में हमारी परीक्षा लेने आये तब एक सेकेण्ड में श्रेष्ठ संस्कार की स्मृति द्वारा रहम दिल बन कर विघ्न को दूर कर लेना है। यदि कोई हमें गिराने की वृत्ति, संगदोष में लाने की दृष्टि से हमारे पास आये तब उसको अपने श्रेष्ठ संग के आधार पर, उसके संगदोष को निकाल कर श्रेष्ठसंग में लगा देना है।

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