स्कूल खोलने से पहले विचार करें
टी जैकब जॉन
डॉ धन्या धर्मापालन (अपोलो हॉस्पिटल, नवी मुंबई)
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के तहत देशभर में 15 लाख स्कूलों को बंद कर दिया गया था. इससे 24 मार्च, 2020 की रात से 24.7 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं. शुरुआती 21 दिनों के लॉकडाउन में संक्रमण 2100 प्रतिशत बढ़ गया. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, संक्रमण का आंकड़ा 536 से बढ़कर 11,487 हो गया. हालांकि, बच्चों को स्कूल जाने से रोककर संक्रमण का फैलाव धीमा कर दिया गया, अन्यथा परिणाम और भी बुरा हो सकता था. लॉकडाउन को हाल-फिलहाल तक बढ़ाया जाता रहा. इसे एक सितंबर से चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है. यह ऐसे वक्त में किया जा रहा है, जब दो हफ्तों से भी कम समय में संक्रमण का आंकड़ा 10 लाख के पार पहुंच रहा है. शुरुआत और अंत के समय के गलत चयन को कोई कैसे भूल सकता है? स्कूल कब खुलने चाहिए? 29 अगस्त को जारी अनलॉक-4 के अनुसार, एक अक्तूबर से स्कूल खुल सकते हैं. राज्य सरकारें असमंजस में हैं कि संक्रमण अब भी तेजी से फैल रहा है, क्या स्कूल खुलने चाहिए? लॉकडाउन जारी रखने से बच्चों को नुकसान और दूसरी ओर स्कूल दोबारा खुलने से सामाजिक स्तर पर बड़ा नुकसान, हमें इन दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा. अगर स्कूल बिना तैयारी के खुलते हैं, तो यह भी मानकर चलना चाहिए कि इससे बच्चों को भी नुकसान है. इस लिहाज से हमें मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और महामारी रोग विज्ञान को गहराई से समझना होगा. आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिए अनलॉक जरूरी है, लेकिन स्कूलों को खोलने के फैसले को आर्थिक अनिवार्यता से अलग नहीं देखा जा सकता है? एक अनुमान के मुताबिक, केवल 12.5 प्रतिशत परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है. जब तक सभी बच्चों को साधन और कनेक्टिविटी नहीं मिल जाती, तब तक ऑनलाइन कक्षाएं विकल्प नहीं बन सकतीं. बिना कक्षा के बच्चों में तनाव और अवसाद बढ़ेगा, पढ़ाई में पिछडऩे और भविष्य को लेकर असुरक्षा की भावना बढ़ेगी, साथ ही सहपाठियों से मेलजोल नहीं होने से भावनात्मक नुकसान होगा. भोजन की कमी से गरीब बच्चों में कुपोषण और शारीरिक गतिविधियां नहीं होने से धनी बच्चों में मोटापा भविष्य में स्वास्थ्य पर असर डालेगा. यूनिसेफ का अनुमान है कि स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने से भारत में अगले छह महीने में तीन लाख बच्चों की मौत हो जायेगी. इसमें पूर्व-स्कूली शिक्षा के लिए आंगनबाड़ी में शामिल 2.8 करोड़ बच्चे भी प्रभावित होंगे. स्कूलों में अक्षम और व्यक्तिगत देखभाल पर निर्भर बच्चे लाचार हैं. कुछ परिवार, बच्चों और माता-पिता के साथ घर में सहज नहीं होते, जिससे हिंसा और दुव्र्यवहार होता है. इसका असर शरीर और मन दोनों पर होता है. कार्यस्थल या स्कूल से सामाजिक संपर्क टूट जाने से हर कोई मानसिक तनाव की स्थिति में है. अगर लंबे समय तक स्कूल बंद रहते हैं, तो बाल श्रम, बच्चों का अवैध व्यापार और बाल विवाह की संभावना रहेगी. स्कूलों को जल्दी खोलने के ये कुछ अहम कारण हैं. फिर महामारी का क्या? यह निश्चित है कि बच्चे स्कूल बसों, सड़कों और स्कूल परिसर में संक्रमित होंगे. अमेरिका में स्कूल खोलने के चार हफ्ते के भीतर बच्चों के संक्रमण में 90 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. बच्चों का संक्रमण परिवारों में फैलेगा. मैसाच्युसेट्स जनरल हॉस्पिटल के अध्ययन में बच्चों में उच्च संक्रमण पाया गया, भले ही वे किसी भी उम्र के हों. अगर स्कूल खुलते हैं तो संक्रमण और मौतों में तेजी का अनुमान लगाया जा सकता है. जाहिर है, इस दुविधा में स्कूल खोलना है या नहीं. यदि हम पहले ही तैयारी कर लिए होते, तो आज स्कूलों को सुरक्षित तरीके से खोल सकते थे. स्कूलों के मौजूदा ढांचे को पूर्ण रूप से बदलने की जरूरत है, खासकर हवादार और खुली खिड़कियां होनी चाहिए. भीड़ से बचने के लिए दो से तीन पालियों की व्यवस्था हो और शिक्षक भी इसके लिए तैयार हों.
पर्याप्त जलापूर्ति, हैंड सैनिटाइजर, मास्क और साबुन की सुविधा हो. स्टाफ की तैयारी, फर्श और सामानों की नियमित सफाई, कफ और खांसी के दौरान बचाव, मास्क के प्रति जागरूकता हेतु पोस्टर आदि जरूरी हैं. पचास वर्ष से अधिक आयु वाले स्टाफ, जिन्हें कोई समस्या हो, उन्हें बचाने की जरूरत है. बच्चों के साथ कक्षाओं में उनका संपर्क न हो. अगर किसी को कोविड की संभावना है, तो आसानी से उसकी जांच हो. सहायक स्टाफ- बस ड्राइवर और अटेंडर को भी महामारी से बचाव की पूरी जानकारी होनी चाहिए. सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करनेवाले बच्चों को सुरक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है. क्या सभी स्कूल अक्तूबर से पहले उक्त तैयारी कर लेंगे?
अगर नहीं, तो स्कूल खोलना बुद्धिमानी नहीं होगी और दूसरी योजनाओं पर काम करना होगा. स्कूल खोलने के लिए राज्यों को तभी इजाजत देनी चाहिए, जब वे संक्रमण को खतरे को कम करने के लिए सभी मानदंडों को पूरा करते हों. परिजनों को भी सुरक्षा के बारे में जानकारी दी जाये और बच्चों तथा स्कूलों को सहयोग देने के लिए प्रेरित किया जाये. पांच साल से ऊपर के बच्चों को मास्क पहनने और हाथ की साफ-सफाई सिखाने की आवश्यकता है. स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की तरफ से स्कूलों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश होने चाहिए कि अगर कोविड संक्रमण पाया जाता है, तो पहले क्या करना होगा. सुरक्षित और प्रभावी कोविड वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद स्कूली बच्चों की चिंताओं को हल किया जा सकेगा. वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल में बच्चों को शामिल नहीं किया गया है. हमारा सुझाव है कि तीसरे फेज में दो खुराक देकर अगर कम-से-कम 1000 वयस्कों पर सुरक्षा और प्रभाव को जांचा गया हो, तो 11 से 17 वर्ष के किशोरों और शिशु से लेकर 10 साल की आयु वाले बच्चों पर अध्ययन शुरू किया जाये. सतर्कता के साथ योजना बनाकर और सावधानीपूर्वक उसे लागू करके, स्कूली शिक्षा को बचाया जा सकता है. स्कूल छूटने और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव की दुविधा में दूसरा विकल्प प्राथमिकता में होना चाहिए.