बडी खबरें

परिणाम सचमुच चौंकाने वाला

 New Delhi:लोकसभा चुनाव के परिणाम सचमुच चौंकाने वाले रहे। यह चौंकना भारतीय जनता पार्टी और विशेषकर नरेन्द्र मोदी द्वारा पैदा की गई उस अतिश्योक्ति के संदर्भ में ज्यादा रहा जिसमें वे भाजपा को अकेले दम 370 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 400 सीटों के पार ले जाने का जोरदार दावा कर रहे थे।
सारा चुनाव इसी सीमा रेखा के इर्द-गिर्द घूम गया कि 400 पार होंगे या नहीं होंगे। मतदान के तुरंत बाद हुए एग्जिट पोल अनुमानों ने 400 पार की संख्या को जैसे वास्तविकता में ही बदल दिया, लेकिन जब वास्तविक परिणाम आए तो 400 पार की ये उड़ान किसी घायल परिंदे की तरह जमीन पर आ गई और 292 पर ही सिमट गई और राजग 300 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सका। भाजपा को सबसे तगड़ा झटका उत्तर प्रदेश ने दिया जहां वह अकेली सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने में असफल रही।

टीम इंडिया नेआयरलैंड को 8 विकेट से हराया(आयरलैंड )

और समाजवादी पार्टी सबसे बड़े विजयी दल के रूप में उभरकर आई। मेनका गांधी, स्मृति ईरानी, अजय मिश्रा आदि की हार के साथ-साथ सर्वाधिक आश्चर्यजनक और आघातकारी हार फैजाबाद (अयोध्या) में रही जहां समाजवादी पार्टी ने भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को पराजित कर दिया। पश्चिम बंगाल ने भी भाजपा को तगड़ा झटका दिया। जो भाजपा वहां 30 से ज्यादा सीटें लाने का दावा कर रही थी वो 30 सीटें तृणमूल कांग्रेस के खाते में चली गई। अगर भाजपा को ओडिशा में ज्यादा सीटें न मिली होती और उसके सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी या बिहार में जनता दल (यू) ने अपेक्षा से ज्यादा सीटें नहीं पाई होतीं तो भाजपा के लिए सरकार बनाना भी कठिन हो जाता। ये चुनाव परिणाम बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी की और योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में भारी गिरावट हुई है। उनका राम मंदिर का पत्ता, जिसे वे तुरुप का पत्ता मान रहे थे, नहीं चला। उसी तरह मांस, मछली और मंगलसूत्र और मुसलमान जैसे शिगूफे नहीं चले।
दूसरी ओर विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, आरक्षण, संविधान तथा लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर मतदाता को प्रभावित करने में सफल रहा। भाजपा की अपेक्षाओं को पिन चुभाने का काम उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरणों ने भी किया। मुसलमान और यादव मतदाता एकजुट होकर सपा और कांग्रेस गठबंधन के साथ थे तथा मोदी-योगी की शैली से नाराज कुछ अन्य जातियों के मतदाता भी सपा-कांग्रेस के साथ गए। उत्तर प्रदेश ने कई अर्थों में भाजपा के विजय रथ को रोक दिया। इन परिणामों पर कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मोदी की नैतिक हार बताया और सरकार बनाने की स्थिति में न होते हुए भी अपनी जीत बताया है। इंडिया गठबंधन के कुछ घटक दलों ने भी मोदी से सीधे-सीधे इस्तीफे की मांग कर दी है। इस चुनाव की हार-जीत का विश्लेषण तो लंबे समय तक चलता रहेगा लेकिन इसने जहां एक ओर एग्जिट पोल की विसनीयता को ध्वस्त कर दिया तो दूसरी ओर चुनाव आयोग की विसनीयता को स्थापित कर दिया। इस चुनाव में ‘मतदाता व्यवहार्यÓ का समाजशास्त्रीय अध्ययन से मिथक भी टूट गया है कि जिन क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है वहां जाति का प्रभाव कम हो जाता है।
बनारस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और पिछले 10 वर्षो से वहां जितना विकास हुआ उतना शायद ही अन्य हिस्सों में हुआ होगा। लेकिन बनारस संसदीय क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के अन्य संसदीय क्षेत्रों की ही तरह चुनावों में जाति बड़ा कारक रहा। भाजपा की देश के सबसे बड़े प्रदेश में चुनावी हार का एक सबसे बड़ा कारण प्रशासनिक शक्तियों का केंद्रीयकरण भी रहा है। पुलिस और प्रशासन के आगे आम आदमी बेबस और लाचार दिखाई देता रहा। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने आम आदमी की बेबसी को परवान चढ़ा दिया। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के जीत के प्रति अति-आत्मविश्वास से छोटे नेता और कार्यकर्ता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। ‘मोदी है तो मुमकिन हैÓ का जुमला भाजपा के कार्यकर्ताओं को इतना आस्त कर गया कि उन्होंने अपने वोटरों को घरों से निकालकर मतदान केंद्रों तक लाने की जहमत तक नहीं उठाई।
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा रही है कि टिकट के बंटवारे को लेकर आरएसएस के स्वयंसेवक भाजपा से नाराज थे। चुनाव प्रचार के बीच भाजपा अध्यक्ष का यह बयान भी सर्वाधिक चर्चा में रहा कि अब भाजपा इतनी बड़ी पार्टी हो गई है कि उसे आरएसएस की मदद की जरूरत नहीं रही। लोगों को याद होगा कि वाजपेयी की सरकार के समय भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक और स्वदेशी आंदोलन के नेता दत्तोपंत ठेंगड़ी के बीच नीतियों को लेकर मतभेद थे।
यह मतभेद खुलकर सामने भी आ गए थे। हालांकि सरकार और जनसंगठनों के बीच कार्यशैली और नीतियों को लेकर होने वाले मतभेद स्वाभाविक हैं। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान को लेकर दुष्प्रचार किया गया और स्वयंसेवकों को भ्रमित करने का प्रयास किया गया। इन्हीं वजहों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि आरएसएस के स्वयंसेवकों ने इन चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लिया। भाजपा के लिए संतोष की बात है कि उसका जनाधार ऐसे क्षेत्र में बढ़ा भी है जहां उसकी पहचान नगण्य थी। मसलन ओडिशा में वह विधानसभा में अपनी सरकार बनाने की ओर बढ़ रही है। उम्मीद है कि भाजपा अपनी हार की नीर-क्षीर समीक्षा करेगी और आगे बढ़ेगी।

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button