धर्म - अध्यात्म

सुंदरकांड (सुंदरकांड )में छिपा है सफलता का मंत्र

सुंदरकांड : सुंदरकांड  (सुंदरकांड ) का पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं. जो भी व्यक्ति सुंदरकांड का पाठ नियम से करता है
शायद ही ऐसा कोई हिंदू घर होगा जिसमें नियमित पूजा-पाठ न होता हो. अधिकांश लोगों के घरों में मंदिर होता है और वे अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसान अपने प्रभु का स्मरण करते हैं. कोई सुंदरकांड पढ़ता है तो कोई हनुमान चालीसा का पाठ करता है. कोई श्रीराम की स्तुति गाता है तो कोई ‘ओम जय जगदीश हरे’ की आरती सुनाता है. इस प्रकार तमाम लोग अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा-पाठ करते हैं.

कुछ स्थानों पर तो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का नियमित पाठ होता है. कुछ हनुमान भक्त ऐसे भी होते हैं जो हर मंगलवार या फिर शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करते हैं. निश्चित ही सुंदरकांड और हनुमान चालीसा के स्मरण या पाठ से मन को शांति और ऊर्जा मिलती है.

सुंदरकांड के साथ हनुमान चालीसा, संकट मोचन हनुमानाष्टक, बजरंगबाण, रामायण आरती, श्रीराम स्तुति, बालाजी चालीसा, बालाजी आरती, मां अम्बे की आरती, शिव आरती, शिव रुद्राष्टकम, शनिदेव की आरती, लक्ष्मीजी की आरती, कुंजबिहारी की आरती और ओम जय जगदीश हरे आरती आदि शामिल हैं.

श्रीरामचरितमानस सुंदरकांड
सुंदरकांड, जिसे रामायण और श्रीरामचरितमानस, दोनों ग्रंथों का सबसे सुंदर हिस्सा माना जाता है, भगवान हनुमान की लंका यात्रा का वर्णन करता है. ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी को उनकी मां अंजना ने प्यार से सुंदर कहा था और उसी के आधार पर सबसे पहले ऋषि वाल्मीकि ने रामायण में सुंदरकांड लिखा. वाल्मीकि कृत रामायण के आधार पर ही गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सुंदरकांड की रचना की और श्रीरामचरितमानस का सुंदरकांड इतना लोकप्रिय हुआ कि आज इसका घर-घर में पाठ होता है.

सुंदरकांड की शुरूआत होती है जब जामवंत के वचन सुनकर हनुमानजी को अपने अंदर छिपी शक्तियों का ज्ञान होता है और वे माता सीता की खोज के लिए निकल लंका की ओर निकल पड़ते हैं-

जामवंत के बचन सुहाए, सुनि हनुमंत ह्रदय अति भाए।
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई, सहि दुख कंद मूल फल खाई।

सुंदरकांड पुस्तक में दोहे और चौपाइयों के साथ उनसे संबंधित सुंदर चित्र भी दिए हुए हैं. जब हनुमानजी समुद्र लांघ कर आगे बढ़ते हैं तो समुद्र में सुरसा नाम की राक्षसी उन्हें अपना भोजन समझकर पकड़ लेती है. यहां हनुमानजी सुरसा के प्रार्थना करते हैं कि मैं भगवान राम के कार्य से जा रहा हूं और कार्य करके आपके पास आता हूं-

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा, सुनत बचन कह पवनकुमारा।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं, सीता कई सुधि प्रभुहि सुनावौं।

सुंदरकांड में जीवन को सफल, सरल और सुगम बनाने के बड़े ही अचूक मंत्र दिए हुए हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत सी सरल और सुंदर शब्दों में विद्वानों के सत्संग की बात कही है-

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।

यहां गोस्वामी जी लंकनी राक्षसी के माध्यम से कहते हैं कि यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुखों को रख दिया जाए तब भी वह एक क्षण के विद्वान लोगों, संतों के संग यानी सतसंग से मिलने बाले सुख के बराबर नहीं हो सकता.

सुंदरकांड में एक नहीं अनेक दोहे और चौपाइयां हैं जिनमें जीवन की सफलता का सूत्र दिया हुआ है. ये कुछ इस प्रकार हैं-

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहीं जेही संत।

सुमित कुमति सब के उर रहहीं
नाथ पुरान निगम अस कहहीं।
जहां सुमति तहं संपति नाना
जहां कुमति तहं बिपति निदाना।

इस तरह कोई भी श्रद्धालु सुंदरकांड का पाठ करते हुए भक्ति के साथ-साथ सफल जीवन के सूत्र भी जान सकते हैं. सुंदरकांड में भक्ति, त्याग, समर्पण, श्रद्धा, सेवा, उपकार, वैराग्य, शक्ति, क्रोध, मान-अपमान आदि से संबंधित जीवन में होने वाले प्रत्येक उतार-चढ़ाव के सुंदर उदाहरण दिए हुए हैं. अगर कोई मनुष्य इनका अनुसरण करके इन्हें अपने जीवन में उतारता है तो निश्चित ही उसका जीवन उदार और कामयाब हो सकता है.
‘हनुमान पंचक’ दिया हुआ है. ‘हनुमान पंचक’ एक सिद्ध मंत्र है. इसका नियमित पाठ करने से श्रद्धालु अपने जीवन में बदलाव स्पष्ट महसूस कर सकते हैं-

संचक सुख कंचक कवच पंचक पूरन बान
रंचक रंचक कष्ट ना हनमत पंचक जान।

हनुमानजी की स्तुति के दुर्लभ सुक्त, मंत्र और पाठ दिए हुए हैं. ये चीजें अन्य स्थानों पर आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. इनमें ‘श्री हनुमानजी का त्रिकाल-स्मरण’, ‘विभीषणकृतं हनुमत्स्तोत्रम्’, ‘शरणागत-रक्षक श्री हनुमान’ और ‘श्री हनुमद्वन्दना’ शामिल हैं.

रावण के भाई विभीषण द्वारा किसी मंत्र या स्तोत्र की रचना के बारे में बहुत कम पढ़ने और सुनने को मिलता है. पुस्तक में बताया गया है कि विभीषण ने रामभक्त हनुमान की स्तुति करते हुए हनुमत्स्तोत्रम् की रचना की थी. ‘विभीषणकृतं हनुमत्स्तोत्रम्’ के कुछ मंत्र इस प्रकार हैं-

नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे
नमः श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नमः।

नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे
लंकाविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे।

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