भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है !
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है. ये घरेलू और वैश्विक कारकों का परिणाम है. यदि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मुद्रा नीति में लचीलापन नहीं अपनाया, तो रुपये में और गिरावट आएगी. भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86 के नए ऐतिहासिक निम्न स्तर के करीब पहुंच गया है. बाजार जानकारों का कहना है कि भारती रुपया अगले छह से दस महीनों से 92 रुपये तक गिर सकता है. डॉलर इंडेक्स के मजबूत होने के चलते रुपया कमजोर हुआ है. डॉलर इंडेक्स सितंबर 2024 के अंत से अब तक 8 फीसदी बढ़ चुका है. यह स्थिति भारतीय वित्तीय बाजारों, विशेष रूप से इक्विटी और बॉन्ड, पर गहरा प्रभाव डाल रही है.
घरेलू कारक और कमजोर रूपया
2008 से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 90 फीसदी गिर चुका है. यह अन्य उभरते बाजारों (38 प्रतिशत) और विकसित बाजारों (21 प्रतिशत) की तुलना में अधिक है. हाल की तिमाहियों में भारतीय कंपनियों के मुनाफे में गिरावट देखी गई है. कमजोर मांग और मार्जिन दबाव के चलते FY25-FY27 के लिए निफ्टी की EPS वृद्धि 11 फीसदी पर सीमित है. यह अमेरिकी S&P 500 के अनुमानित 16 फीसदी की तुलना में कमजोर है.म
रुपये का भविष्य
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपया/डॉलर 84 से 90-92 के स्तर तक गिर सकता है. ऐसा अमेरिकी GDP में 4.6 फीसदी की वृद्धि, अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड के 4.0 फीसदी रहने और रुपये की अधिक मूल्यांकन स्थिति के कारण होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि आरबीआई को रुपये की स्थिरता के बजाय अधिक लचीलापन अपनाना चाहिए. मुद्रा अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार पर अत्यधिक निर्भरता से बचना होगा. इसके अलावा, विकास को प्रोत्साहित करने के लिए आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती की आवश्यकता को टालने पर ध्यान देना चाहिए.
क्या होगा रुपये की कमजोरी असर
रुपये की कमजोरी का असर विशेष रूप से बैंकिंग और धातु जैसे दर-संवेदनशील क्षेत्रों पर पड़ेगा. हालांकि, आईटी और फार्मा जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को इससे फायदा हो सकता है. मजबूत डॉलर के चलते कमोडिटी की कीमतों में गिरावट से ऑटोमोबाइल जैसे धातु-उपभोक्ता क्षेत्रों को भी लाभ हो सकता है…