रमज़ान उल मुबारक महीने का पहला अशरा रहमत का अशरा कहलाता है – रियाजुद्दीन
अफजलगढ़ – रमज़ान मुबारक महीने 10 दिन मुकम्मल होने जा रहे है मगर हम अब भी गफलत का शिकार है। आज यह बात मदरसा इशातू उलूम के नाजिमें तालीम मुफ्ती रियाजुद्दीन ने कही। उन्होनें कहा कि रमज़ान उल मुबारक महीने का पहला अशरा रहमत का अशरा कहलाता है और इन 10 दिनों में आसमान से अपने बंदो पर खास रहमत नाजिल होती है। हदीस शरीफ में रमजान मुबारक महीने शुरु के दस दिन रहमत का अय्याम करार दिया है। मुफ्ती रियाजुद्दीन ने हदीस का हवाला देते हुए कहा कि नसीबावर है वह लोग जो इस महीने में अल्लाह के दरबार में नमाज पढ़कर तोबा अस्तगफार के साथ अपनी बख्शिस करा लेते है और बदबख्त है वह लोग जिनको रमजान उल मुबारक का महीना नसीब हो जाये मगर फिर भी अपनी बख्शिस न करा सकें।
रमजान मुबारक का एहतराम यह है कि रोज़ा रखा जाये और मुक्कमल आदाब के साथ रखा जाये। उन्होनें कहा कि फिजुल बातों से परहेज किया जायें। अभी समाज में ऐसे लोग मौजूद है जो मजबूरी के बगैर ही अहम इबादत रोजे से गाफिल है। उन्होनें कहा कि ज्यादातर तादाद ऐसे लोगों की है जो अभी भी पांच वक्तों की नमाज से गाफिल नजर आ रहे है। इस तरह के अमल ए बद से अल्लाह तआला नाराज हो जाता है और यहीं चीज़ अजाबे इलाही का सबब बन जाती है। मुफ्ती रियाजुद्दीन ने कहा कि इस बरकत वाले महीने में शयातीन को बंद कर दिया जाता है और जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है। हमें रहमतें खुदावंदी का फायदा उठाना चाहिए और नेक काम करके अपना नाम जन्नत में लिखवा लेना चाहिए।
अल्लाह तआला की रहमत मामूली कामों में खालिक की तरफ बड़ा सवाब मिलता है। इस महीनें में नफिल पढ़ते है तो फर्ज के बराबर सवाब मिलता है। फर्ज नमाज पढ़ने का सवाब 70 गुना तक बढ़ा दिया जाता है। उन्होनें कहा कि इस महीने में नमाजें तरावीह ऐसी इबादत है हर रोज ही दरबारें इलाही से तरावीह पढ़ने वालों की बख्शिस का ऐलान होता है। अल्लाह के बंदे तरावीह अदा करके मस्जिद से निकलते है तो खालिके कायनात की तरफ से ऐलान होता है फरिश्तों गवाह रहना मैने तरावीह पढ़ने वालों की बख्शिस की कर दी है।