अफगानिस्तान के परिवार (family )की रुला देने वाली कहानी

अफगानिस्तान में लोग: तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में लोग दाने-दाने के लिए मर रहे हैं. यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. सूखे, आर्थिक पतन और बढ़ती खाद्य कीमतों ने लाखों लोगों को भूख के कारण बेहाल कर दिया है. आपदा आपातकालीन समिति से नकद सहायता ने परिवारों (family )के बच्चों को खिलाने और उन्हें वापस स्कूल भेजने में मदद की है.
माहेर एक ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जो कभी बादाम के बागों के लिए एक प्रसिद्ध स्थान हुआ करता था, लेकिन सूखे के कारण बादाम के पेड़ बुरी तरह से सुख चुके हैं, और यही उनके कमाई का एक जरिया भी था. उन्होंने बताया कि सूखे ने इस क्षेत्र में बहुत तबाही मचाई है लगभग एक एकड़ कृषि भूमि नष्ट हो गई है. उनके जैसे कई परिवार अब भोजन के लिए तरस रहे हैं.
माहेर के बेटों में से एक रहीम, जो अपनी मां को दिन-रात याद करते हैं. दरअसल, रहीम की मां और उनके भाई एक अस्पताल में भर्ती हैं, क्योंकि सूखे के कारण परिवार इतना मजबूर था कि घास को भी भोजन समझ के खाने लगा था और इसी वजह से माहेर की पत्नी और उनका बड़ा बेटा बीमार हैं. डॉक्टर ने बताया कि उनकी पत्नी की आंत क्षतिग्रस्त हो गई है. परिवार हर दिन उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहा है.
रहीम अपनी बहन को खाना बनाते देख रहे हैं. परिवार को मदद मिली है इसलिए अब दो समय का भोजन आसानी से बन जाता है. पिछले छह महीनों में, आपदा आपातकालीन समिति (डीईसी) की अपील के फंड ने लगभग सवा लाख लोगों को उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे दिए हैं, जिससे उन्हें भोजन, दवाएं या ईंधन खरीदने की आजादी मिली है. माहेर ने बताया कि वर्तमान में हमारे पास रोटी बनाने के लिए अब सामग्री है.
सूखे ने देशभर में खाद्य कीमतों में वृद्धि में योगदान दिया है, लेकिन यह समस्या का केवल एक हिस्सा है. अफगानिस्तान हमेशा से आयातित अनाज और वनस्पति तेल पर बहुत अधिक निर्भर रहा है. यूक्रेन में युद्ध के कारण विश्व खाद्य कीमतों में तेजी आई है, जिससे आयातित गेहूं की कीमतों में काफी तेजी से उछाल आया है.
यह फरहाना हैं, जिनके दो बच्चे हैं. इनका कहना है कि पिछले एक सालों में आटा और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी उछाल आया है. उन्होंने बताया कि पिछले साल वनस्पति तेल का 10-लीटर बैरल 797 रुपयों का था यानी 10 डॉलर लेकिन अब यह 1,754 रुपयों का है यानी 22 डॉलर हो गया है.
यह फरहान की सबसे छोटी बेटी हुस्ना हैं. परिवार स्थानीय दान के माध्यम से वितरित नकद सहायता पर निर्भर है. फरहाना कहती हैं कि नकदी मिलने के बाद से, मैं अपने बच्चों के लिए अच्छे कपड़े और भोजन उपलब्ध करा पाई हूं ताकि वे आगे बढ़ सके. मुझे उम्मीद है कि जो खाना हम खरीदते हैं वह उन्हें एक सफल जीवन जीने के लिए पर्याप्त ऊर्जा दे सकता है.
ये अली हैं, जो मजदूर के रूप में काम करते हैं. खाद्य संकट के वजह से लोगों ने काम भी छोड़ दिया है, बेरोजगारी दर भी तेजी से बढ़ी है. अली दिन का 100-150 रुपये ही कमा पाते हैं और जिस दिन वह काम पर नहीं जा पाते तो उनके बच्चे भूखे ही रह जाते हैं.
17 वर्षीय मोहम्मद के छोटे भाई-बहनों सहित पूरे अफगानिस्तान में लाखों बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है. मोहम्मद के पिता की पिछले साल कैंसर से मृत्यु हो गई थी, मोहम्मद पर अपनी मां और आठ भाइयों और बहनों की जिम्मेदारी है. वह दिनभर में जितने रुपए कमाता है, वह भोजन के लिए पर्याप्त नहीं है, ऐसे में स्कूल की पढाई तो मुश्किल है.
नकद वितरण कार्यक्रम के बदौलत आज मोहम्मद की आठ साल की बहन जैदा अब स्कूल जा सकती है. मोहम्मद की मां का कहना है कि नकद सहायता मिलने के बावजूद भी भोजन की कमी है. मोहम्मद अब भोजन खरीदने के बजाय अपने भाइयों और बहनों के लिए स्कूल बैग और किताबों के लिए भुगतान करने में भी सक्षम थे. (