अपराध

लखनऊ निगम कार्यालय से अपर नगर आयुक्त नदारद, कर्मचारियों की कुर्सी खाली मिली; महापौर बोलीं- कार्रवाई की जाएगी

लखनऊ -: यह आम शिकायतें रहती है कि नगर निगम के अधिकारी समय पर दफ्तर नहीं पहुंचते हैं। दोपहर से लेकर शाम तक वे कमरों में नजर नहीं आते हैं। ऐसे में फरियादियों को बैरंग होना पड़ता है। लगातार मिल रही शिकायतों के बाद इसकी हकीकत जानने के लिए महापौर सुषमा खर्कवाल बुधवार सुबह 11 बजे ही नगर निगम मुख्यालय पहुंच गईं, जहां अधिकांश अधिकारी अपने कमरों से गायब मिले।
                                   महापौर जब निगम कार्यालय पहुंचीं तो सीटों पर कर्मचारी बैठे नहीं मिले। इतना ही नहीं, अपर नगर आयुक्त डॉ. अरविंद राव और मुख्य कर निर्धारण अधिकारी अशोक सिंह ही अपने कमरे में नजर आए। साथ ही अन्य अपर नगर आयुक्त, मुख्य वित्त लेखा धिकारी समेत जोनल अधिकारी भी कमरे में नजर नहीं आए।

लखनऊ की महापौर सुषमा खर्कवाल ने बुधवार को नगर निगम मुख्यालय का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान अधिकांश अधिकारियों को अपने कमरों से गायब पाया। इस लापरवाही पर महापौर ने नाराजगी जताई और गैरहाजिर अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची तैयार कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए। बता दें कि तमाम शिकायतें मिलने के बाद महापौर ने कार्यालय में जाकर निरीक्षण किया।

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लखनऊ नगर निगम कार्यालय में महापौर को कई कर्मचारी नदारद मिले।

महापौर ने अधिकारियों की कुर्सी खाली पाई

महापौर हर कमरे में पहुंचीं और वहां अधिकारी की कुर्सी को खाली पाया। इतना ही नहीं, कमरों में लिपिक से लेकर अन्य कर्मचारी भी सीट पर नजर नहीं आए तो वहां काम कराने आए लोग भटकते दिखे। महापौर ने गैर हाजिर अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची तैयार कर तलब की है और नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह से कार्रवाई करने को कहा। महापौर अपने साथ ही उपस्थिति रजिस्टर भी साथ ले गईं।

 

महापौर ने अधिकारियों को लगाई फटकार

महापौर ने कहा, सुबह दस बजे तक अधिकारियों व कर्मचारियों को दफ्तर पहुंच जाना चाहिए, लेकिन ऐसा न होने से नगर निगम में काम कराने आने वाले लोगों को भटकना पड़ता है। महापौर ने बताया कि यह लगातार शिकायतें मिल रही थी कि लालबाग नगर निगम मुख्यालय दफ्तर में अधिकारी और कर्मचारी समय पर नहीं आते हैं, जिससे काम कराने आए लोगों को इंतजार के बाद वापस होना पड़ता है।

दोपहर में ही खाली हो जाता है नगर निगम
बता दें कि नगर निगम के अधिकारी दोपहर में दफ्तर से गायब हो जाते हैं। कुछ मीटिंग में होने की बात कहते हैं तो कुछ जनता से बचने के लिए दूसरे कार्यालय में बैठ जाते हैं। ऐसे में अलग-अलग कार्यों के लिए आने वाले शहरवासियों को भटकना पड़ता है।

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