सिख गुरुओं का बलिदान केवल खालसा पंथ के लिए न होकर हिन्दुस्तान और धर्म को बचाने के लिए था। उस दौर में जब बड़े-बड़े राजा महाराजा मुगल सत्ता की अधीनता स्वीकार कर रहे थे

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