उत्तर प्रदेश

निमिषा प्रिया की फांसी रोकने की याचिका पर आज सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट 0-16 जुलाई को मिलेगी यमन में फांसी !

नई दिल्ली -: सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को यमन में केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी के खिलाफ दायर याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है. नर्स निमिषा को 16 जुलाई को फांसी दी जानी है. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष एक वरिष्ठ वकील ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका दायर की. यह याचिका सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल द्वारा दायर की गई है. वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि शरीयत कानून के मुताबिक, यदि पीड़ित के रिश्तेदार रक्तदान स्वीकार करने के लिए सहमत हों, तो किसी व्यक्ति को रिहा किया जा सकता है. और इस विकल्प पर विचार करने के लिए बातचीत की जा सकती है.

वकील ने बताया कि प्रिया की फांसी 16 जुलाई को तय है. और पीठ से मामले की सुनवाई गुरुवार को करने का आग्रह किया. संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने मामले की आज 10 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की. गौर करें तो निमिषा प्रिया को वर्ष 2017 में यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी. आरोप है कि उसने मृतक के पास मौजूद पासपोर्ट वापस पाने के लिए उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाया था.

याचिका में केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह याचिकाकर्ता को देश के कानून के मुताबिक पीड़ित के परिवार को शीघ्रता से रक्तदान (दीया) का भुगतान करने में मदद करके उसकी जान बचाने के लिए प्रभावी राजनयिक हस्तक्षेप की सुविधा मुहैया करे. याचिका में कहा गया है, केवल प्रतिवादी ही प्रभावी राजनयिक वार्ता के साथ-साथ पीड़ित के परिवार, जो यमन गणराज्य के नागरिक और निवासी हैं, से क्षमादान प्राप्त करने के लिए बातचीत की सुविधा प्रदान कर सकते हैं. निमिषा प्रिया को फांसी बचाने के लिए प्रतिवादी भारतीय अधिकारियों का सशक्त और शीघ्र हस्तक्षेप अत्यंत जरूरी है, क्योंकि फांसी की संभावित तिथि (16 जुलाई 2025) पहले ही तय हो चुकी है. ऐसे में यमन की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए भी ये जरूरी है.

याचिका में तर्क दिया गया है कि अब निमिषा के लिए फांसी से बचने का एकमात्र रास्ता देश के कानून (शरिया कानून) के मुताबिक पीड़िता के परिवार को रक्तदान (दीया) देकर मृतक के परिवार से क्षमादान प्राप्त करना है. याचिका में कहा गया है, प्रतिवादियों की निष्क्रियता, इस हद तक कि निमिषा प्रिया की ओर से देश के कानून के अनुसार रक्तदान देकर उसकी जान बचाने के लिए पीड़ित के परिवार के साथ राजनयिक हस्तक्षेप और बातचीत शुरू न करना, न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन और अतिक्रमण भी करता है. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता पीड़ित के परिवार द्वारा रक्तदान की राशि तय होने पर उसे बढ़ाने के लिए तैयार है और प्रतिवादियों से किसी भी वित्तीय सहायता की मांग नहीं कर रहा है, बल्कि केवल पीड़ित के परिवार के साथ बातचीत को सुगम बनाने के लिए गंभीर राजनयिक हस्तक्षेप की प्रार्थना कर रहा है.

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