अर्श से फर्श पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की स्थिति

सत्ता (Situation) का खेल बड़ा निराला होता है। कब कौन अर्श से फर्श पर आ जाए या ला दिया जाए, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। चुनाव आयोग को यह सब नहीं दिखता। जिस ठेके के कारण हेमंत सोरेन अयोग्य ठहराए जाने वाले हैं, वही ठेका वे दूसरे नाम से ले लेते तो चलता! फिलहाल झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की स्थिति (Situation) वैसी ही हो गई है जैसी कभी बिहार के मुख्यमंत्री रहते लालू यादव की हुई थी।
मामला पद पर रहते हुए दोहरा लाभ लेने का है। सरकार चाहे तो किसी भी मामले को जल्द से जल्द निर्णय तक पहुंचा सकती है। जिसका उदाहरण है हेमंत सोरेन का मामला। बस, जनहित के कामों में देर हो जाती है। हालांकि लालू के पास राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था जबकि हेमंत सोरेन के पास कई विकल्प हैं।
अयोग्य ठहराए जाने के बाद सोरेन अपने पद से इस्तीफा देकर फिर से विधायक दल के नेता चुने जा सकते हैं और सरकार बनाने का दावा करने के बाद फिर मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
छह महीने में वे फिर किसी खाली सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन सकते हैं। दूसरा पक्ष यह है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए हेमंत सोरेन को माइनिंग का ठेका लेने की जरूरत क्या थी? ये अलग बात है कि ठेका उन्होंने लिया था या उनके नाम से किसी ने लिया था, जो भी हो इसकी जरूरत नहीं थी।
इसके अलावा वे लालू की तरह अपनी पत्नी को भी मुख्यमंत्री बना सकते हैं। उनके पिता भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं और जैसा कि पंजाब में होता था, मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल थे और सत्ता सुखबीर सिंह चलाते थे, वैसे ही शिबू सोरेन को गद्दी पर बिठाकर हेमंत सोरेन सत्ता चला सकते हैं।