उत्तर प्रदेश

बुजुर्गों के प्रति अपनापन दिखाएं, भूलने की बीमारी से उन्हें बचाएं

मीरजापुर। उम्र बढ़ने के साथ ही तमाम तरह की बीमारियाँ हमारे शरीर को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख बीमारी बुढ़ापे में भूलने की आदतों की है। ऐसे बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है। इसीलिए इस बीमारी की जद में आने से बचाने के लिए हर साल 21 सितम्बर को विश्व अल्जाइमर्स-डिमेंशिया दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता लाना है ताकि घर-परिवार की शोभा बढ़ाने वाले बुजुर्गों को इस बीमारी से बचाकर उनके जीवन में खुशियाँ लायी जा सकें। अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. अजय के अनुसार किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उनके प्रति अपनापन रखें। अकेलापन न महसूस होने दें, समय निकालकर उनसे बातें करें, उनकी बातों को नजरअंदाज कदापि न करें। ऐसे कुछ उपाय करें कि उनका मन व्यस्त रहे, उनकी मनपसंद की चीजों का ख्याल रखें। अमूमन 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है। इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में से एक है कि जीवन शैली में एकदम से बदलाव आना। जैसे शरीर में आलस का आना, लोगों से बात करने से कतराना, बीमारियों को नजरंदाज करना, भरपूर नींद न आना, किसी पर भी शक करना आदि। जागरूकता सप्ताह के तहत होंगे विविध आयोजन महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उत्तर प्रदेश द्वारा सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को इस बारे में पत्र भेजकर 21 से 27 सितम्बर तक चलने वाले डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के दौरान विविध आयोजन करने को कहा गया है। इसके तहत कोविड-19 के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रैली, संगोष्ठी, अर्बन स्लैम कैम्प, मंद बुद्धि प्रमाण पत्र प्रदान करने के सम्बन्ध में शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं। मदद को तैयार स्वास्थ्य विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत “नेशनल प्रोग्राम फॉर द हेल्थ केयर ऑफ एल्डर्ली” (एनपीएचसीई) संचालित किया जा रहा है। इसके तहत वरिष्ठ नागरिकों-वृद्धजनों के समुचित उपचार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर जिले में इसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सक और स्टाफ की तैनाती भी की गयी है। बुजुर्गों के लिए अलग वार्ड भी बनाए गए हैं। इसके अलावा उनके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर परामर्श के लिए मनोचिकित्सक तैनात किया गए हैं। मनकक्ष की व्यवस्था की गयी है, जहाँ काउंसिलिंग से लेकर इलाज तक की व्यवस्था होती है। डिमेंशिया के लक्षण रोजमर्रा की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन आना, रोज घटने वाली घटनाओं को भूल जाना, दैनिक कार्य न कर पाना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। इसके चलते बातचीत करने में दिक्कत आती है या किसी भी विषय में प्रतिक्रिया देने में विलम्ब होता है। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रोल, सिर की चोट, ब्रेन स्ट्रोक, एनीमिया और कुपोषण के अलावा नशे की लत होने के चलते भी इस बीमारी के चपेट में आने की सम्भावना रहती है। जागरूक बनें, डिमेंशिया दूर करें इस भूलने की बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए जरूरी है कि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ ही मानसिक रूप से अपने को स्वस्थ रखें। नकारात्मक विचारों को मन पर प्रभावी न होने दें और सकारात्मक विचारों से मन को प्रसन्न बनाएं। पसंद का संगीत सुनने, गाना गाने, खाना बनाने, बागवानी करने, खेलकूद आदि जिसमें सबसे अधिक रुचि हो, उसमें मन लगायें तो यह बीमारी नहीं घेर सकती। इसके अलावा नियमित रूप से व्यायाम और योगा को अपनाकर इससे बचा जा सकता है। क्या कहते हैं आंकड़े सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली की तरफ से अभी हाल ही में जारी एक एडवाइजरी में कहा गया है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में करीब 16 करोड़ बुजुर्ग (60 साल के ऊपर) हैं। इनमें से 60 से 69 साल के करीब 8.8 करोड़, 70 से 79 साल के करीब 6.4 करोड़, दूसरों पर आश्रित 80 साल के करीब 2.8 करोड़ और 18 लाख बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनका अपना कोई घर नहीं है या कोई देखभाल करने वाला नहीं है।

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