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SC का – मोटर दुर्घटना के दावों पर भुगतान के 40 साल पुराने नियमों को संशोधित करें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मोटर दुर्घटनाओं के दावों से संबंधित 40 साल पुराने नियमों को संशोधित करने पर विचार करने के लिए कहा है जो राज्यों को सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर 20 लाख रुपये तक के भुगतान के लिए प्रतिबंधित करता है. सर्वोच्य न्यायालय ने यह पाया कि मोटर दुर्घटनाओं में पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि मोटर वाहन अधिनियम 1939 के तहत अक्टूबर 1982 में तय की गई थी और तब से आज तक इसे संशोधित नहीं किया गया है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि, 40 साल बीत जाने के बावजूद, इस राशि का कोई संशोधन नहीं किया गया है. इसके बाद, जब 1989 में मोटर वाहन नियम बनाए गए, तो इस नियम को नियम 152 के रूप में पेश किया गया था. कोर्ट ने कहा कि हमारा ऐसा मनना है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर नियम 152 के आंकड़ों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा कि नियम द्वारा राज्य परिवहन निगम द्वारा दी गई 20 लाख की राशि 2500 रुपये प्रति वाहन की राशि मुआवजे के दावे के देय खर्चों को पूरा में बहुत कम है. मौजूदा नियम के अनुसा वास्तविक स्थिति कितनी अलग है इसको दर्शाने के लिए अदालत को न्याय मित्र एन विजयराघवन द्वारा सूचित किया गया कि तमिलनाडु में लोक अदालत द्वारा निपटाए गए मामलों में सड़क परिवहन निगम द्वारा देय कुल बकाया राशि 400 करोड़ रुपये थी.

इससे पहले कोर्ट ने 16 नवंबर को राज्य सड़क परिवहन निगमों के पास धन की कमी को कम करने के लिए राज्य सरकारों को एक अतिरिक्त राशि देखर इस कोष में योगदान करने के निर्देश दिए जो कि परिवहन निगम के पिछले तीन वित्तीय वर्षीय भुगतानों को पुरा करने के बराबर था. कोर्ट के इस फैसले को पूरा करने के लिए राज्यों को 15 फरवरी की डेड लाइन दी गई थी.

कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने अपील दायर की थी जिसमें इन दोनों राज्यों की तरफ से दावा किया गया था कि अतिरिक्त कोष राज्यों पर वित्तीय बोझ को बढ़ाएगा. आंध्र प्रदेश कॉर्पोरेशन ने की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गौरव बनर्जी ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में हमारे द्वारा निपटाए गए मामलों की भगुतान राशि 100 करोड़ है, इस पर पीठ ने जवाब देते हुए कहा कि यह बेहद दुखद है कि मौजूदा नियम में निर्धारित 20 लाख की राशि पूरी तरह से व्यर्थ है. कोर्ट ने आवेदकों के दावों को खारिज करते हुए सभी राज्यों को तीन महीन की मोहलत देते हुए अप्रैल के अंत तक आदेश को पूरा करने के लिए निर्देश दिए थे.

 

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