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सचिन (Sachin )को विरासत में मिला है ‘बगावती’ खून

सचिन (Sachin ) को मेहनत का पूरा ईनाम नहीं मिला. इसी की परिणति मानेसर बगावत के रूप में सामने आई. सचिन की बात से पहले एक नजर उनके पिता राजेश पायलट के बागी तेवरों पर डालते हैं. राजीव गांधी के दोस्त राजेश पायलट राजनीति में एंट्री से लेकर अंतिम सांस तक कांग्रेस में रहे. हालांकि अपने उसूलों पर चलते हुए नब्बे के दशक में पायलट ने कई मौकों पर गांधी परिवार को तेवर दिखाए. जबकि गहलोत अपने 50 साल के राजनीतिक करियर में पहली बार पिछले साल 25 सितंबर को सीएम कुर्सी बचाने के लिए गांधी परिवार से टकराए. राजेश पायलट ने 1997 में गांधी परिवार समर्थित सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा. हालांकि, पायलट इसमें सफल नहीं हो पाए और सीताराम केसरी ने अपने दोनों प्रतिद्वंदी शरद पवार और राजेश पायलट को हरा दिया.

2000 में भी सोनिया के विरुद्ध प्रसाद का समर्थन
नब्बे के दशक का यह वो वक्त था, जब कांग्रेस बिना गांधी परिवार के नेतृत्व के चल रही थी और लगभग बिखरती हुई नजर आ रही थी. तब सोनिया गांधी सक्रिय हुईं और 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं. 1999 में सोनिया गांधी ने कर्नाटक की बेल्लारी और यूपी की अमेठी सीट से चुनाव जीता. इसके बाद वर्ष 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में राजेश पायलट ने खुलकर गांधी परिवार के खिलाफ खड़े हुए जितेंद्र प्रसाद का साथ दिया. लेकिन प्रसाद हार गए. इससे पहले 1998 में राजस्थान का मुख्यमंत्री चुने जाने के समय सोनिया गांधी सक्रिय हो चुकी थी और उनका समर्थन परिवार के वफादार अशोक गहलोत को रहा. हार के चलते बैकफुट पर चल रहे पायलट चाहकर भी इसका विरोध भी नहीं कर पाए.

2020 में सचिन पायलट की बगावत मानेसर में दिखी
राजनीति में समय कैसे करवट लेता है और किसका भाग्योदय करता है, इसके राजेश और गहलोत सटीक उदाहरण हैं. हालांकि दोनों 1980 में सांसद बने थे, लेकिन राजीव गांधी से ज्यादा करीबी होने के चलते सचिन पायलट के पिता ने कभी गहलोत को गांठा नहीं था. लेकिन आज दो दशक बाद वक्त ने देश-प्रदेश और कांग्रेस के हालात बदल गए है. राजस्थान कांग्रेस में अब राजेश पायलट के बेटे सचिन गांधी परिवार के चहेते अशोक गहलोत को चुनौती दे रहे हैं. इस सियासी टकराव की नींव तो 2018 में गहलोत के सीएम बनते ही पड़ गई थी. इसके बाद कोरोनाकाल में मानेसर में सचिन पायलट की ऐतिहासिक बगावत देखने को मिली. पिता की तरह सचिन ने कांग्रेस में रहकर ही अपने उसूलों के लिए बगावत की.

गहलोत से मिले ‘गद्दार, निकम्मा, कोरोना’ के तमगे
राजनीतिक बिसात पर काफी दावंपेंच के बाद कथित समझौता हुआ, लेकिन दिलों में खटास बढ़ती रही. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले ‘गद्दार, निकम्मा, कोरोना’ के तमगों के साथ पायलट सियासी लड़ते रहे. राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक राजेश पायलट के पुराने टकराव के चलते ही सोनिया का अभयदान पायलट के बजाए गहलोत पर ही रहा. अलबत्ता राहुल-प्रियंका के जरूर पायलट करीबी बने. पायलट के समर्थक विधायकों को मंत्रीमंडल में शामिल कराने का समझौता भी प्रियंका गांधी ने ही कराया था. लेकिन पार्टी में उनका कद इतना बड़ा नहीं है कि वो गहलोत के खिलाफ कोई निर्णय करा सकें. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि सचिन को गहलोत की तुलना में काफी कम विधायकों का समर्थन है.

सरकार के खिलाफ अनशन करके फिर दिखाए बागी तेवर
पिता से विरासत में मिली बगावत ने फिर एक बार उबाल मारा है. सचिन पायलट ने अब अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ ही करप्शन के मामले में खुलेआम अनशन करके बागी तेवरों को दिखा दिया. तब कयास लगाए गए कि वो अनशन के बाद नया राजनीतिक प्लान अनाउंस कर सकते हैं और रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की तीसरे मोर्चे की मुराद पूरी हो सकती है. लेकिन पायलट ने साफ कर दिया कि उनकी कांग्रेस संगठन से नहीं, बल्कि सत्ता से लड़ाई है. करप्शन पर ‘मिलीभगत’ के खिलाफ लड़ाई है. दिल्ली दरबार ने उन्हें कॉल किया है, लेकिन वो पायलट के खिलाफ कोई एक्शन लेने की स्थिति में नहीं है. पंजाब से आने वाले प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सिर्फ इतना ही कहा है कि वो राजस्थान को पंजाब नहीं बनने देंगे.

 

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