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RBI इस साल तेजी से बढ़ाएगा रेपो रेट

इस साल महंगाई पिछले कुछ दशकों के तुलना में अपने चरम पर है। जल्द ही लोगों को एक और झटका लग सकता है। RBI द्वारा हाल ही में बढ़ाए गए रेपो रेट के बाद लोगों पर EMI का बोझ भी बढ़ गया है। फिलहाल लोगों को इससे इतनी जल्दी छुटकारा मिलने वाला नहीं है, क्योंकि RBI इस साल कई बार रेपो रेट बढ़ाने के मूड में है। जी हां, रायटर्स के पोल के मुताबिक इस साल RBI द्वारा कई बार रेपो रेट को बढ़ाया जाएगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगले साल 2023 तक रेपो रेट 6 फीसद के लेवल को भी पार कर सकता है।

RBI की मौद्रिक नीति समिति (monetary policy committee) की बैठक अगले सप्‍ताह 6 जून से शुरू हो रही है, जिसके फैसले 8 जून को सामने आएंगे। इस दौरान रेपो रेट में एक बार फिर बढ़ोतरी हो सकती है। पोल के मुताबिक आरबीआई अगली चार मौद्रिक नीति समिति बैठक के दौरान रेपो रेट में 1 फीसद की बढ़ोतरी कर सकता है। पोल के मुताबिक 8 जून को इसमें 0.25 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है। फिलहाल, अभी रेपो दर 4.40 फीसद पर है।

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पोल के मुताबिक 47 में से 41 अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगली तिमाही तक रेपो दर कोरोना पेंडेमिक के पहले वाले स्तर पर पहुंच सकता है। अनुमान है कि रेपो दर 5.15 फीसद हो जाएगी। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक 2022 समाप्त होने तक रेपो दर 5.50 फीसद पर पहुंच सकती है। हालांकि, 47 में से 19 अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रेपो दर साल के आखिर तक इस स्तर को भी पार कर सकता है।

पैनथॉन मैक्रोइकॉनमिक्‍स के मुख्‍य अर्थशास्‍त्री (एशिया) मिगल शैंको (Miguel Chanco) ने कहा कि रेपो रेट में वृद्धि इस महीने शुरू हुई थी, जो अप्रैल तक जारी रह सकती है। जीडीपी आंकड़ों से भी रेपो रेट में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। एनएसओ (राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन) ने वित्त-वर्ष 2021-22 में 8.7 फीसदी विकास दर बताई है, जो अनुमान से कहीं ज्‍यादा है। ऐसे में आरबीआई महंगाई कंट्रोल करने के लिए रेपो रेट बढ़ा सकता है।

14 अर्थशास्त्रियों ने कहा कि रेपो रेट का उच्च स्तर 6 फीसद तक पहुंच सकता है। हालांकि, अन्‍य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रेपो दर 5.15 फीसद से 6.5 फीसद के बीच हो सकती है। सर्वेक्षण में शामिल वन थर्ड अर्थशास्त्रियों ने 2023 की दूसरी तिमाही तक रेपो दर को उच्चतम स्तर पहुंचने का अनुमान लगाया है, जबकि 6 अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 2023 की पहली छमाही तक इसमें समय लग सकता है। वहीं, मात्र 4 अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह 2024 तक इस स्तर पर पहुंचेगा।

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