विदेश में अपना सोना(gold)छुपाता है रिजर्व बैंक
नई दिल्ली. गाढ़े वक्त का सबसे अच्छा साथी है सोना और इस बात को आम आदमी के साथ रिजर्व बैंक भी बखूबी समझता है. यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से रिजर्व बैंक ने सोना खरीदने की क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया है. आलम ये रहा है कि रिजर्व बैंक ने सिर्फ दो साल में ही करीब 100 टन सोना खरीद डाला. अभी भारत का कुल गोल्ड रिजर्व इतना हो गया है कि वह दुनिया के टॉप-10 देशों की सूची में 9वें पायदान पर पहुंच गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इतना सारा सोना (gold) खरीदकर आरबीआई रखता कहां है.
रिजर्व बैंक की ओर से साल 2022 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के पास करीब 754 टन सोने का भंडार है. इसमें से ज्यादातर खरीद बीते 5 साल में हुई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि रिजर्व बैंक ने सिर्फ अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 के बीच ही 132.34 टन सोना खरीद डाला. इस तरह 2022 में आरबीआई दुनिया में सबसे ज्यादा सोना खरीदने वाला केंद्रीय बैंक बन गया. इससे पहले यानी 2021 में वह तीसरे पायदान पर रहा था. 2020 में भी सिर्फ 41.68 टन सोना खरीदा था.
…तो यहां रखा है हमारा सोना
रिजर्व बैंक अपना ज्यादातर सोना विदेश में रखता है. आरबीआई ने खुद बताया है कि भारत के कुल सोने के भंडार में से 296.48 टन सोना देश में ही सुरक्षित रखा गया है, जबकि 447.30 टन सोना विदेशी बैंकों के पास सुरक्षित है. इसमें से ज्यादा हिस्सा बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास रखा है, जबकि कुछ टन सोना स्विटजरलैंड स्थित बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट (BIS) के पास सुरक्षित है.
किस देश में सबसे ज्यादा सोना
अगर दुनिया में सोने के कुल भंडार की बात की जाए तो सबसे ज्यादा सोना अमेरिका के पास है. अमेरिका ने दुनियाभर के देशों के पास रखे कुल सोने का करीब 75 फीसदी सिर्फ अपने पास सुरक्षित रखा है. एक आंकड़े के मुताबिक अमेरिका के पास 8,133 टन सोना है, जबकि दूसरे पायदान पर मौजूद जर्मनी के पास 3,359 टन सोना है. चीन इस मामले में 1,948 टन सोने के साथ 6वें पायदान पर आता है. सोने के बड़े भंडार वाले टॉप-10 देशों में सिर्फ तीन एशियाई देश ही शामिल हैं
क्यों विदेश में सोना रखता है आरबीआई
रिजर्व बैंक के विदेश में सोना रखने के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला तो ये है कि इतनी बड़ी मात्रा में सोना खरीदकर उसे देश में लाना आसान नहीं होता. इसके परिवहन और सुरक्षा पर काफी ज्यादा खर्चा आता है. इसके अलावा अगर किसी वित्तीय संकट में इस सोने को गिरवी रखने की नौबत आई तो दोबारा इसे विदेश भेजने में काफी खर्च और सुरक्षा तामझाम करना होगा. जैसा कि 1990-91 में हुआ था जब बैलेंस ऑफ पेमेंट क्राइसिस के दौरान भारत को 67 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और यूनियन बैंक ऑफ स्विटजरलैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था.