बलात्कार : कानून नहीं सोच भी बदले मानव समाज

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
बलात्कार कहने में तो साढ़े चार अक्षर का छोटा सा शब्द है लेकिन इस शब्द की हवस ने ना जाने कितनी मासूम जिंदगियों को तबाह कर दिया ऐक मानव समाज की विकृत प्रवृत्ति का उदाहरण है बलात्कार रोकने में कानून इतना कारगर नहीं हो सकता वल्कि प्रारंभिक शिक्षा में सरकार संस्कारों की शिक्षा शामिल करे क्यों कि शुरूआती शिक्षा ही जीवन को नई दिशा प्रदान करती है किसी भी पौधे की परवरिश में पानी व उपजाऊ मिट्टी की आवस्यकता पड़ती है उसी तरह से जीवन रूपी पौधे को भी संस्कार बेहद जरूरी है!
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के पीछे एक कुंठित मानसिकता काम करती है. औरत की अस्मिता छीन कर उसे निरीह बनाने की निकृष्ट सोच को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के अलावा सोच बदलने की भी जरूरत है.
सामूहिक बलात्कार नारी अस्मिता को तोड़ने के लिए होते हैं. स्त्री को भोग और दान समझने की प्रवृत्ति इस को बढ़ावा देने का काम करती है. ऐसे मामलों में समाज औरत को ही दोषी मानता है.
अहल्या से ले कर द्रौपदी तक तमाम उदाहरण धर्मग्रंथों में मौजूद हैं. वर्तमान समाज में फूलन देवी, बिलकीस बानो और निर्भया जैसे बहुत सारे ऐसे मामले हैं. इन तमाम घटनाओं के बाद भी समाज की सोच में बदलाव नहीं आता दिख रहा है. बलात्कार जैसे अपराध को कम करने के लिए सिर्फ सख्त कानून बनाने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी.
दिल्ली में निर्भया बलात्कार और हत्याकांड के मामले में अदालत का फैसला मील का पत्थर माना जा सकता है. निर्भया कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. यह ऐसा मामला था जिस ने अदालत से ले कर देश की संसद तक को जनता की पीड़ा को सुनने के लिए झकझोर कर रख दिया था. हजारों लोगों ने निर्भया को ले कर संसद का घेराव किया.
संसद ने जहां इस कांड के बाद नाबालिग अपराध को नए सिरे से परिभाषित किया वहीं निचली अदालत से ले कर ऊपरी अदालत तक हर जगह एकजैसा ही फैसला दिया गया.
निर्भया को ले कर केवल दिल्ली में ही धरनाप्रदर्शन नहीं हुए, पूरे देश में तमाम सामाजिक संस्थाओं ने जनता को आगे कर के निर्भया के दर्द का साझा किया. 2012 से हर 16 दिसंबर को निर्भया दिवस के रूप में याद किया जाता है.
5 वर्षों के बाद इस मामले में बड़ी अदालत का फैसला आया और अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गई. यह सच है कि न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है. अब बाकी समाज के सामने जिम्मेदारी निभाने का वक्त है.