रामसेतु (Ramsetu )का निर्माण ज्वालामुखी के पत्थरों से किया था

रामसेतु : वाल्मीकि रामायण कहती है कि जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका पर चढ़ाई की, तो उन्होंने नल और नील से एक सेतु बनवाया था. इस सेतु को बनाने वानर सेना ने नल और नील की मदद की थी. इस सेतु को पानी में तैरने वाले पत्थरों का इस्तेमाल कर बनाया गया था. इन पत्थरों को किसी दूसरी जगह से लाया गया था. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस सेतु में ज्वालामुखी के ‘प्यूमाइस स्टोन’ का इस्तेमाल किया गया था क्योंकि ये डूबते नहीं हैं. फिर ऐसा क्या हुआ कि रामसेतु (Ramsetu ) पानी में कुछ फुट डूब गया, जबकि उसके पथर हमेशा तैरने वाले थे? आज भी वहां से लाए गए पत्थर देश में कई जगह पर पानी में तैरते हुए मिल जाते हैं. ऐसा ही एक पथर उत्तर प्रदेश के बरेली के अलखनाथ मंदिर में पानी में तैर रहा है.
श्रीराम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए धनुषकोडी से श्रीलंका तक समुद्र पर जिस पुल का निर्माण कराया, उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा था. दरअसल, ये पुल नल के निरीक्षण में वानरों ने 5 दिन के भीतर बना दिया था. इसका जिक्र ‘वाल्मिकी रामायण’ में मिलता है. रामायण में इस पुल की लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 10 योजन बताई गई है. गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि श्रीराम ने सेतु का नाम ‘नल सेतु’ रखा. महाभारत में भी श्रीराम के नल सेतु का जिक्र आया है.
धनुषकोडी को ही क्यों चुना गया?
वाल्मीकि रामायण में जिक्र है कि तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता था. उन्होंने नल और नील की मदद से उस स्थान से लंका तक पुल बनाने को कहा. दरअसल, धनुषकोडी ही भारत-श्रीलंका के बीच ऐसी जगह है, जहां समुद्र की गहराई नदी के बराबर है. धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर एक गांव है. धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में है. धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्नार से करीब 18 मील पश्चिम में है. इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना ने जो पुल बनाया था, उसका आकार धनुष के जैसा है. इन सभी इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के तहत माना जाता है.
कहां-कहां है रामसेतु का जिक्र?
वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों की मदद से समुद्रतट पर ले आए थे. कुछ वानर सौ योजन लंबा सूत पकड़े हुए थे, यानी पुल के निर्माण में सूत का इस्तेमाल कई तरह से किया जा रहा था. कालिदास ने ‘रघुवंश’ के 13वें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में श्रीराम का माता सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है. स्कंद पुराण के तीसरे, विष्णु पुराण के चौथे, अग्नि पुराण के पांचवें से ग्यारहवें और ब्रह्म पुराण में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है.
विज्ञान रामसेतु पर क्या कहता है?
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 1993 में धनुषकोटि और श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पंबन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग की उपग्रह से खींचे गई तस्वीरों को दुनियाभर में जारी किया. इसके बाद भारत में इसे लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया था. इस पुल जैसे भू-भाग को रामसेतु कहा जाने लगा. रामसेतु की तस्वीरें नासा ने 14 दिसंबर 1966 को जेमिनी-11 से ली थीं. इसके 22 साल बाद आईएसएस-1ए ने तमिलनाडु तट पर रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया. फिर उसकी तस्वीरें लीं. इन तस्वीरों से अमेरिकी उपग्रह की इमेजेज की भी पुष्टि हुई.
अमेरिकी पुरातत्वविदों ने भी की जांच
साइंस चैनल पर दिसंबर 1917 में एक अमेरिकी टीवी शो ‘एनशिएंट लैंड ब्रिज’ में अमेरिकी पुरातत्वविदों ने वैज्ञानिक जांच के आधार पर कहा था कि श्रीराम के श्रीलंका तक सेतु बनाने की हिंदू पौराणिक कथा सच हो सकती है. भारत और श्रीलंका के बीच 50 किलोमीटर लंबी एक रेखा चट्टानों से बनी है. ये चट्टानें 7000 साल पुरानी हैं. वहीं, जिस बालू पर ये चट्टानें टिकी हैं, वह 4000 साल पुरानी है. नासा की सेटेलाइट इमेजेज और दूसरे प्रमाणों के साथ विशेषज्ञ कहते हैं, ‘चट्टानों व बालू की उम्र में इस विसंगति से साफ है कि इस पुल को इंसानों ने ही बनाया होगा. बता दें कि सबसे पहले श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे ‘आदम पुल’ कहना शुरू किया था. फिर ईसाई इसे ‘एडम ब्रिज’ कहने लगे.
समंदर में कैसे डूब गया रामसेतु?
रामसेतु के समुद्र के पानी में कुछ फुट नीचे डूब जाने के दो पहलू हैं. इनमें एक धार्मिक और दूसरा प्राकृतिक है. रामसेतु पर अब तक दुनियाभर के शोधकर्ता कई अध्ययन कर चुके हैं. कई शोध में कहा गया है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक पहुंचा जा सकता था. बाद में इस पुल के पानी में डूबने के वैज्ञानिक कारणों में बताया जाता है कि तूफानों ने रामसेतु की जगह पर समुद्र को कुछ गहरा कर दिया. वहीं, 1480 में चक्रवात के कारण ये पुल टूट गया. फिर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण रामसेतु कुछ फुट पानी में डूब गया. धार्मिक कारणों में बताया जाता है कि विभीषण ने खुद इस पुल को तोड़ने के लिए श्रीराम से अनुरोध किया था.
विभीषण ने क्यों तुड़वाया रामसेतु
पद्मपुराण के मुताबिक, युद्ध से पहले रावण के भाई विभीषण ने धनुषकोडी नगर में श्रीराम की शरण ली थी. रावण के अंत पर युद्ध खत्म होने के बाद श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया. इसके बाद लंका के राजा विभीषण ने श्रीराम से कहा कि भारत के वीर राजा हमेशा श्रीलंका पर हमला करने के लिए रामसेतु का इस्तेमाल करेंगे. इससे श्रीलंका अपनी स्वतंत्रता खो सकता है. उन्होंने श्रीराम से सेतु तोड़ने का अनुरोध किया. इस पर श्रीराम ने एक तीर चलाया और पुल जलस्तर से 2-3 फुट नीचे डूब गया. आज भी अगर कोई इस पुल पर खड़ा होता है तो उसे कमर तक पानी मिलता है। इस जगह के नाम ‘धनुषकोडी’ का मतलब भी है, ‘धनुष का अंत’. हालांकि, वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं जिक्र नहीं है. कंबन रामायण में श्रीराम के इस पुल को तोड़ने का जिक्र है.