कालिकाल में रंभा, उर्वशी ,कामदेव ही लोभ, मोह ,अहंकार – राम – नाम ,भजन, कीर्तन इनसे बचने का साधन !
विचार सूचक (राजू गोस्वामी ) – फतेहपुर उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के मलवां ब्लॉक के गोधरौली गांव में सिद्ध पीठ गोधन देवबाबा आश्रम में रामकथा में तृतीय दिवस कथा व्यास ने नारद अहंकार व मोह के प्रसंग का बखान किया। फतेहपुर के अलीपुर के आचार्य यदुनाथ अवस्थी ने मंच से बोलते हुए कहा कलिकाल में संपूर्ण मानव नारद है। रंभा, उर्वशी ,कामदेव तीनों लोभ मोह ,अहंकार का स्वरुप है। इन तीनों से राम नाम ,भजन ,कीर्तन ही बचा सकता है। त्रेता में नारद वन में समाधिस्थ थे। इंद्र का सिंहासन डगमगाने लगा। इंद्र ने रंभा ,मेनका, उर्वशी व कामदेव को नारद की समाधि भंग करने को भेजा।
कामदेव ने धनुष की टंकार से आश्रम के वातावरण में काम आतुरता फैला दी। पशु पक्षी पेड़ पौधे भी अछूते नहीं रहे।असफल होने पर कामदेव ने हाथ जोड़कर नारद से क्षमा याचना कर अपनी पराजय स्वीकार की। नारद के नारायण के जप और कीर्तन के सन्मुख लोभ मोह कामदेव प्रभावित नहीं कर सके। नारद को अहंकार हो गया। क्रमशः ब्रह्मा जी, शंकर जी विष्णु जी के पास अपनी विजय का बखान करने लगे। भगवान विष्णु ने नारद के अहंकार को नाश करने के लिए माया को भेजा। रास्ते में सुंदर नगर में मायावी राजा अपनी पुत्री विश्व मोहिनी का स्वयंबर कर रहा था। नारद को देखकर विश्व मोहनी को आगे कर गुण और दोष बताने के लिए कहा। नारद को लोभ, मोह ,अहंकार ने ग्रसित किया।नारद सुंदरता देखकर मोहित हो गए। भगवान विष्णु के पास पहुंचकर कुछ समय के लिए अपना स्वरूप देने के लिए विनय करने लगे। भगवान ने एवमस्तु कहकर बंदर का स्वरूप दे दिया। नारद प्रसन्नतावश सुंदर नगर में विश्व मोहनी के सामने पहुंच गए। विश्व मोहिनी ने नारद की तरफ देखा भी नहीं।वहीं पर मौजूद विष्णु भगवान के गले में विश्व मोहनी ने वरमाल डाल दिया। नारद ने क्रोधित होकर भगवान को श्राप दे दिया। जब नारद अहंकारमुक्त हुए तो भगवान से क्षमा याचना करने लगे। नारद को संपूर्ण भेद विष्णु भगवान ने बताया। नारद लोभ मोह अहंकार से मुक्त हो प्रायश्चित करते राम नाम ,कीर्तन, भजन करने लगे।