पुष्पक विमान (Pushpak Vimana)मंत्रों के जरिए सिद्ध था.

पुष्पक विमान :रामायण पुष्पक विमान का जिक्र है, जो पहले कुबेर के पास था. इसके बाद रावण ने उसे अपने इस सौतेले भाई से लंका समेत बलपू्र्वक हथिया लिया था. फिर रावण इसी के जरिए कहीं भी आता – जाता था. रावण को हराने के बाद ये विमान श्रीराम के पास आ गया. वो जीत हासिल करने के बाद इसी विमान के कहीं जगह होते हुए अयोध्या पहुंचे थे. रावण ने इसी के जरिए पंचवटी आश्रम से सीता का हरण किया था और उन्हें उस पर बिठाकर लंका ले गया था.
जटायु ने पुष्पक विमान (Pushpak Vimana) में सवार रावण पर हमले किए. रावण की ताकत के आगे वो माता सीता को बचा न सका. हवाई मार्ग से पलक झपकते ही रावण माता सीता को लेकर अपनी सोने की नगरी श्रीलंका पहुंच गया.
कहा जाता है कि पुष्पक विमान आज के विमान की तरह था. पुष्पक विमान के जरिए रावण हवाई मार्ग से सफर किया करता था. रावण को मौत के घाट उतारने के बाद उसी विमान के जरिए प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण लंका से अयोध्या लौटे थे. रामायण में जिस तरह से पुष्पक विमान का जिक्र मिलता है, उससे तो यही लगता है कि ये आज के हवाई जहाज की तरह था, लेकिन तकनीक के मामले में मॉर्डर्न एयरोप्लेन से कहीं आगे था.
क्या है पुष्पक विमान का रहस्य?
कहा जाता है कि पुष्पक विमान की तरह रावण के पास कई लड़ाकू विमान थे. पौराणिक कथाओं के मुताबिक पुष्पक विमान को विश्वकर्मा ने बनाया था. हालांकि ग्रंथ कहते हैं कि इसका प्रारूप और तकनीक ऋषि अंगिरा की थी, जिसके जरिए विश्वकर्मा ने इसे बनाया और फिर ब्रह्मा को सौंप दिया था. कुछ कथाओं के मुताबिक पुष्पक विमान को ब्रह्मा ने ही बनाया था. ब्रह्मा ने ये विमान कुबेर को भेंट कर दिया था. कहा जाता है कि अपने ताकत के बल पर रावण ने कुबेर से इस विमान को छीन लिया. उसके बाद रावण अपनी इच्छानुसान इसका उपयोग करने लगा. पुष्पक विमान की वजह से रावण की सैन्य शक्ति में इजाफा हुआ था.
क्या थी पुष्पक विमान की खासियतें?
पुष्पक विमान कई खूबियों से लैस एक लड़ाकू विमान था. रामायण के सुंदरकांड के सप्तम अध्याय में पुष्पक विमान के बारे में जानकारी मिलती है. पुष्पक विमान की आकृति मोर की तरह थी. ये अग्नि और वायु उर्जा से उड़ान भरता था. इसकी तकनीक इतनी उत्कृष्ट थी कि इसका आकार छोटा और बड़ा किया जा सकता था.
कहा जाता है कि रावण अपनी पूरी सेना को साथ लेकर इस विमान से उड़ान भर सकता था. पुष्पक विमान अपने चालक की इच्छा की अनुसार गति पकड़ता था. ये मन की गति से उड़ान भर सकता था. यानी सोचने भर से ही वो इच्छित जगह पर पहुंचा देता था. ये सारी दिशाओं में उड़ान भर सकता था.
ये सभी मौसम में उड़ान भरने योग्य वातानुकूलित (एसी) विमान था. कहा जाता है कि इस विमान में सोने के खंभे लगे थे. इसकी सीढ़ियों पर कीमती रत्न जड़े थे. इसमें कई कैबिन बने थे. विमान में नीलम से बना एक सिंहासन मौजूद था. विमान में बैठने के लिए कई आसन बने थे. विमान कई प्रकार के चित्रों और जालियों से सुसज्जित था. पुष्पक विमान दिन के साथ रात में भी उड़ान भरने के योग्य था.
रिमोट से संचालित होने वाले विमान की तरह था पुष्पक विमान
कहा जाता है कि पुष्पक विमान मंत्रों के जरिए सिद्ध था. विमान का चालक जब उन मंत्रों का जाप करता, तभी वो उड़ान भर पाता था. ये एक तरह से रिमोट से संचालित विमान की तरह था. पौराणिक कथाओं के मुताबिक पुष्पक विमान सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह ही नहीं बल्कि दूसरे ग्रह तक की यात्रा करने में सक्षम था. यानी ये एक तरह का अंतरिक्षयान था. पूरा विमान सोने का बना था.
रावण की मौत के बाद पुष्पक विमान का क्या हुआ?
प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय पाई थी. पौराणिक कथाओं के मुताबिक युद्ध के बाद भगवान श्रीराम ने विमान का पूजन कर ये दिव्य विमान वापस कुबेर को सौंप दिया. कुबेर ने पुष्पक विमान को भेंट स्वरूप प्रभु श्रीराम को दे दिया. जिसके बाद इसी पुष्पक विमान से प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या पहुंचे.
पुष्पक विमान को लेकर पौराणिक कथाएं
पुष्पक विमान को लेकर कई दूसरी पौराणिक कथाएं भी हैं. इनमें प्राचीन काल में उन्नत तकनीक वाले विमानों के बारे में पता चलता है. स्कंद पुराण के खंड तीन अध्याय 23 में इसका उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी को खुश करने के लिए एक विमान बनाया था. इस विमान के जरिए कहीं भी आया जाया जा सकता था. ऋषि कर्दम के बनाए विमान में भी पुष्पक विमान वाली खूबियां थीं.
ऋगवेद के छत्तीसवें सूक्त में एक विमान का जिक्र मिलता है. पंडित मधुसूदन सरस्वती ने इंद्रविजय नाम के ग्रंथ में लिखा है कि ऋगवेद में इसका जिक्र मिलता है कि प्राचीन काल में ऋषियों ने तीन पहिया वाले एक रथ का निर्माण किया था. ये रथ अंतरिक्ष में भी उड़ान भर सकता था. रामायण में मेघनाथ के भी उड़ने वाले रथ का प्रयोग करने की जानकारी मिलती है.
कहा जाता है कि ईसापूर्व चौथी शताब्दी में महर्षि भारद्वाज ने बाकायदा वैमानिकी शास्त्र लिखी थी. इसमें अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले विमान बनाने की जानकारी दी गई थी. कहा जाता है कि महर्षि भारद्वाज ने जिस तरह से विमान बनाने की जानकारी दी था, वो आज के विमान बनाने की तकनीक से कहीं आगे था.
कुछ जगहों पर ये उल्लेख हुआ है कि लंका में लड़ाकू विमानों की व्यवस्था प्रहस्त के सुपुर्द थी. यानों में ईंधन की व्यवस्था प्रहस्त ही देखता था. लंका में सूरजमुखी पौधे के फूलों से तेल (पेट्रोल) निकाला जाता था. हालांकि हैरानी की बात है कि अगर ऐसे विमान रावण के पास थे तो राम के साथ युद्ध में इन विमानों के इस्तेमाल का उल्लेख क्यों कहीं नहीं हुआ.
श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के पास अपने विमानों को रखने के लिए चार हवाई अड्डे थे. इन 04 हवाई उड्डे में एक का नाम उसानगोड़ा था. इस हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था. अन्य तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे जो सुरक्षित बच गए.