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प्रेग्नेंट महिला के दिल में था छेद(दिल में था छेद)

मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में निर्देश दिया कि गर्भ के 27वें हफ्ते में आपातकालीन गर्भपात के आदेश के बावजूद जीवित पैदा हुए नवजात को परेल के केईएम अस्पताल में ही रखा जाना चाहिए. 9 अगस्त को जस्टिस गौतम पटेल और नीला गोखले ने कहा कि डॉक्टरों की सलाह के खिलाफ नवजात बच्चे को अस्पताल से बाहर नहीं ले जाया जाना चाहिए. इस मामले में एक महिला के दिल में छेद (दिल में था छेद) पाया गया था. उसकी जान बचाने के लिए गर्भ के 27वें हफ्ते में आपातकालीन गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी. जबकि कानूनी रूप से गर्भपात की स्वीकार्य सीमा 24 हफ्ते ही होती है. बहरहाल इमरजेंसी हालात को देखते हुए महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी गई थी, मगर महिला ने जीवित बच्चे को जन्म दिया.

महिला को मार्च महीने में पता चला कि वह गर्भवती है. 25 जुलाई को उनको अचानक बहुत तेज खांसी और सांस लेने में तकलीफ होने लगी, जिसके चलते उसे एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां उन्हें पता चला कि उनके दिल में 20 मिमी. का छेद है. ऐसी अवस्था में गर्भावस्था जारी रखना महिला की जिंदगी के लिए खतरा साबित हो सकता था. जिसे देखते हुए उसे गर्भपात कराने की सलाह दी गई और हृदय रोग विशेषज्ञ की राय के लिए भेजा गया. 31 जुलाई को महिला को KEM अस्पताल में भर्ती करवाया गया. महिला की हालत गंभीर थी और उन्हें बताया गया कि उनका जीवन खतरे में है.

डॉक्टरों ने महिला की मौत का खतरा बताया था
इस महिला को दिल में छेद के साथ लोअर रेस्पिरेटरी ट्रेक्ट इंफेक्शन और गंभीर पल्मोनरी आर्टीरियल हायपरटेंशन था. ऐसी हालत में अगर गर्भावस्था जारी रहती तो उनकी जान को खतरा था. बॉम्बे हाईकोर्ट को 3 अगस्त को KEM अस्पताल की तरफ से महिला के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई. जिसमें महिला के दिल में छेद और स्थिति गंभीर होने की वजह से उसके लिए आपातकालीन गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी. डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगर गर्भावस्था अंत तक जारी रहती है तो मां की मृत्यु का जोखिम 30 से 50 फीसद ज्यादा है.
ठीक होने तक अस्पताल से बाहर नहीं जाएगी महिला
अब महिला ने डिलिवरी के बाद 484 ग्राम के जीवित बच्चे को जन्म दिया है. इसके बाद महिला की हालत भी स्थिर है. मगर अब हाईकोर्ट के जजों ने निर्देश दिया है कि “चूंकि महिला मरीज को स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं हैं, इसलिए उसे तब तक अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि वह मेडिकल तौर पर पूरी तरह से फिट न हो जाए. इसके अलावा “माता-पिता बच्चे का मेडिकल डिस्चार्ज लेने की कोशिश भी नहीं करेंगे.” इस मामले पर 21 अगस्त को हाईकोर्ट के जज मरीज और बच्चे की सेहत का अपडेट लेंगे. उसके बाद आगे का फैसला सुनाया जाएगा.

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