जहरीला कारोबार
पंजाब के तीन सीमावर्ती जनपदों-तरनतारन, अमृतसर ग्रामीण और गुरदासपुर में जहरीली शराब के कहर से करीब 98 जानें जा चुकी हैं जो इस जानलेवा कारोबार की घातकता व पहुंच को दर्शाता है। निस्संदेह यह इस कारोबार पर अंकुश लगाने के लिये जवाबदेह पुलिस और आबकारी विभाग की शर्मनाक विफलता है, जिसके चलते लोग शराब की जगह जहर पी गये। इन विभागों पर मिलीभगत के आरोप भी लगे हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध शराब बिक रही हो और पुलिस-आबकारी विभाग को पता न लगे। राजनीतिक संरक्षण के भी आरोप हैं, जिससे शराब माफिया पर हाथ डालने में पुलिस कतराती है। आरोप तो यहां तक लगे हैं कि शराब के इस धंधे में मोटा मुनाफा देखकर राजनेता भी निवेश करते रहे हैं। यह भी कि पुलिस सब कुछ जानती है, बस कार्रवाई ही नहीं करती। दरअसल, लॉकडाउन के दौरान शराबबंदी के कारण अवैध शराब का धंधा पंजाब में तेजी से फला-फूला है।
लॉकडाउन के दौरान ही पटियाला क्षेत्र में शराब बनाने की दो अवैध फैक्टरियां पकड़ी गई थीं। विपक्ष का आरोप है कि मामले में कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई। सरकार पर निष्क्रियता के आरोप लगे। सवाल यह भी है कि आखिर शासन-प्रशासन की नाक के नीचे मौत का तांडव कैसे हुआ। दरअसल, पंजाब के देहातों में घर की शराब का प्रचलन रहा है, लेकिन उसमें गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग होता था और उसका नशा भी धीमा होता था।दरअसल, नशे के तस्कर ज्यादा मुनाफे और नशा बढ़ाने के लिये घातक रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो जानलेवा बन जाता है।
सरकारी ठेकों पर शराब महंगी होने का फायदा शराब माफिया सस्ती शराब बेचने में उठाता है। लोगों की अवैध शराब पीने की वजह इसका सस्ता होना भी है जो ठेके पर मिलने वाली शराब से लगभग आधे कीमत पर मिल जाती है। पीने वाले भी गरीब व श्रमिक तबके के लोग होते हैं। अब इस कांड में बढ़ते मौत के आंकड़े और जनदबाव के चलते सरकार ने एक्साइज विभाग के सात और पुलिस के दो डीएसपी व चार एसएचओ सस्पेंड किये हैं। विडंबना है कि वर्ष 2012 और 2016 में भी गुरदासपुर और बटाला में ऐसी घटनाएं हुई थीं। एक मामले में तो रिपोर्ट भी नहीं लिखी। बावजूद इसके अब मामले में राजनीति हो रही है। सवाल अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई न होने का भी है। उत्तर प्रदेश में अवैध शराब से होने वाली मौतों तथा स्थायी अपंगता पर दोषियों को उम्रकैद व मृत्युदंड तथा बड़ा आर्थिक जुर्माना लगाने का प्रावधान है। पंजाब में अंग्रेजों के जमाने के आबकारी अधिनियम को सख्त बनाने की मांग की जाती रही है। सरकार को चाहिए कि मामले की गहराई से जांच करवाये और दोषियों को सख्त सजा दिलवाये। विपक्ष सरकारी जांच को लीपापोती बताते हुए हाईकोर्ट के किसी सिटिंग जज से जांच करवाने की मांग कर रहा है। जरूरत इस बात की भी है कि जहरीली शराब के मुख्य सरगना पकड़े जायें और दंडित भी हों।