अब सेना ‘(e army, )में शामिल होंगे ‘चूहे,’दुश्मनों के लिए बन जाएगा काल
नई दिल्ली. भारतीय सेना ‘(e army, ) रिमोट कंट्रोल’ से चलने वाले ‘चूहे’ यानी ‘एनिमल साईबोर्ग’ को बल में शामिल करेगी. सैन्य ऑपरेशन के दौरान दुश्मन के हमले से पहले ही सेना इन चूहों के इस्तेमाल से दुश्मन की स्थिति का पता लगा लेगी. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की एसीमेट्रिक टेक्नोलॉजी लैब एनिमल साईबोर्ग पर काम कर रही है.
जानकारी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट एक साल पहले शरू हुआ था. अब यह अपने दूसरे चरण में है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट जल्द आकार ले लेगा. इस प्रोजेक्ट के बारे में 108वीं इंडियन साइंस कॉन्ग्रेस में चर्चा हुई थी. डीआरडीओ यंग साइंटिस्ट लैबोरेट्री एसीमेट्रिक टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर पी. शिव प्रसाद ने इस प्रोजेक्ट का प्रजेंटेंशन भी दिया.
आखिर क्या है एनिमल साईबोर्ग
इस तकनीक में एक जिंदा जानवर का ऑपरेशन करके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाई जाती है. इस तरीके से निश्चित मात्रा में और जरूरी शक्तियां बढ़ाकर उससे काम लिया जाता है. इसे ही एनिमल साईबोर्ग कहते हैं. एनिमल साईबोर्ग का इस्तेमाल सेना के रिसर्च, राहत-बचाव और इलाज में किया जाता रहा है. हालांकि, कुछ एक्टिवस्ट ने एनिमल साईबोर्ग के इस्तेमाल पर चिंता भी जाहिर की है. उनका दावा है कि इससे जानवर को तकलीफ हो सकती या वे अपनी प्राकृतिक क्षमता खो सकते हैं.
भारत में क्या है इसकी स्थिति
भारत में इस प्रोजेक्ट का पहला चरण पूरा हो गया है. इस चरण में चूहों के मूवमेंट को नियंत्रित करने के लिए उनके शरीर में इलेक्ट्रॉड लगा दिए गए हैं. अब इनसे कोई हल्का-फुल्का काम लिया जाएगा. उन्हें पहाड़ों पर भी चढ़ाया जा सकता है. इसका उद्देश्य यह है कि जानवर को किसी तरह की तकलीफ न हो और काम भी हो जाए. हालांकि, डीआरडीओ के विशेषज्ञों का कहना है कि इस सर्जरी से जानवरों को थोड़ी-बहुत परेशानी तो होगी. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह तकनीक जानवरों के दिमाग तक सिग्नल भेजती है. इससे वे मुड़ते हैं, फिर चलते हैं और रुक जाते हैं. यह तकनीक जानवरों के उस नर्वस सिस्टम में लगाई जाती है, जिसमें उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती.
कहां-कहां इस्तेमाल हो रहे एनिमल साईबोर्ग
बता दें, एनिमल साईबोर्ग पहले से ही कई देशों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. चीन और उस जैसे देशों में भी इसका इस्तेमाल जोरों से किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1994 में अमेरिकी वायु सेना ने हथियार के रूप में कीट-पतंगों में सेक्स कैमिकल के इस्तेमाल का सुझाव दिया था. इनका इस्तेमाल उस जगह किया जा सकता था, जहां से देश में घुसपैठ होती है.