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अब वर्ल्ड कप (World Cup)जीत से पूरा हुआ पिता का सपना

नई दिल्ली. दक्षिण अफ्रीका में भारतीय क्रिकेट टीम ने 16 साल बाद फिर इतिहास रचा. जो काम 2007 में महेंद्र सिंह धोनी की टीम इंडिय़ा ने किया था, उसे शेफाली वर्मा की अगुआई वाली महिला क्रिकेट टीम ने कर दिखाया. भारत ने इंग्लैंड को हराकर पहली बार आयोजित हुए महिला अंडर-19 टी20 वर्ल्ड कप (World Cup) का खिताब अपने नाम किया. भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार कोई वर्ल्ड कप जीता है. भारत की इस विश्व कप जीत में त्रिशा रेड्डी का अहम रोल रहा. उन्होंने फाइनल में सबसे अधिक 24 रन बनाए और तीसरे विकेट के लिए सौम्या तिवारी के साथ 46 रन की अहम साझेदारी की.

त्रिशा रेड्डी की इस सफलता में उनके पिता गोंगाड़ी रेड्डी का अहम योगदान है. बेटी को क्रिकेटर बनाने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. वो जिम चलाने के साथ ही होटल में फिटनेस ट्रेनर का काम भी करते थे. लेकिन, बेटी को क्रिकेटर बनाने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आधी कीमत पर जिम बेच दिया था. इतना ही नहीं सिकंदराबाद तक शिफ्ट हो गए. बेटी की क्रिकेट ट्रेनिंग में पैसों की वजह से किसी तरह की अड़चन न आए. इसलिए अपनी चार एकड़ खेती की जमीन भी बेच दी. बेटी ने भी पिता के संघर्षों को याद रखा और अंडर-19 विश्व कप के फाइनल में अहम पारी खेलकर भारत को विश्व कप दिलाया और पिता के सपने को पूरा किया.

त्रिशा को क्रिकेटर बनाने के लिए पिता ने जमीन तक बेची
त्रिशा के पिता ने कहा, “मैंने अपने फिटनेस बिजनेस और नौकरी पर ध्यान केंद्रित करने से पहले अपने स्टेट की अंडर-16 टीम की तरफ से हॉकी खेला था. मैं हॉकी के साथ-साथ क्रिकेट भी खेलता था और चाहता था कि मेरा बच्चा क्रिकेट खेले. इसी वजह से मैंने बेटी को भद्राचलम से सिकंदराबाद शिफ्ट करने का फैसला लिया. मुझे अपना जिम अपने एक रिश्तेदार को बाजार दर से आधी कीमत पर बेचना पड़ा. बाद में मैंने बेटी की ट्रेनिंग के लिए 4 एकड़ जमीन भी बेच दी. बेटी को भारत को U-19 विश्व कप जीतने में मदद करते देखना उसके जुनून का नतीजा है. इस तरह की जीत देखने के लिए मैं कोई भी नुकसान सह सकता हूं.

बचपन में कार्टून के बजाए टीवी पर क्रिकेट देखती थी
पिता ने बचपन से ही त्रिशा के लिए यही सपना देखा था कि वो क्रिकेटर बने. इसी वजह से उन्होंने पत्नी से यह कह रहा था कि बेटी टीवी पर कार्टून के बजाए क्रिकेट मैच देखे. पिता ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, “जब त्रिशा का जन्म हुआ, तो मैंने अपनी पत्नी से कहा कि जब वह टीवी देखना शुरू करेगी तो हम कार्टून के बजाय टीवी पर उसके क्रिकेट मैच दिखाएंगे. जब वह ढाई साल की थी, तब मैंने उसे प्लास्टिक के बल्ले और गेंद से क्रिकेट सिखाना शुरू कर दिया था. जब वह पांच साल की थी, तो मैं उसे अपने साथ जिम ले जाता था और उसे रोज 300 गेंद फेंकता था. बाद में मैंने लोकल क्रिकेट ग्राउंड पर एक सीमेंट पिच बनवा दी और अपनी नौकरी और जिम के बाद जो वक्त बचता था, वो मैदान पर त्रिशा के साथ बीतता था

पिता की इस मेहनत का जल्द फायदा भी मिला और सिकंदराबाद शिफ्ट होने के 2 साल के भीतर ही त्रिशा हैदराबाद की अंडर-16 टीम से खेलने लगी. उसने 2014-15 में अंडर-19 और फिर अंडर-23 टीम में अपनी जगह पक्की की. इसके बाद टीम इंडिया तक में एंट्री की और अब अंडर-19 विश्व कप के फाइनल में दमदार पारी खेल न सिर्फ पिता, बल्कि देश के सपने को भी पूरा किया.

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