मुकदमे से पहले मध्यस्थता की प्रक्रिया अनिवार्य बनाने के लिये याचिका पर न्यायालय का केन्द्र को नोटिस
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने देश की अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के इरादे से अदालत में मुकदमा शुरू करने से पहले मध्यस्थता की प्रक्रिया अनिवार्य बनाने के वास्ते मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने के लिये दायर याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया है। प्रधान न्यायाधीश एस.ए.बोबडे, न्यायमूर्ति ए.एस.बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने यूथ बार एसोसिएशन और अधिवक्ता सनप्रीत सिंह अजमानी की याचिका पर यह नोटिस जारी किया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि याचिका पर विधि एवं न्याय मंत्रालय और सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किये जायें। इन सभी से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है। इस याचिका में सुझाव दिया गया है कि विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के लिये मुकदमे की कार्यवाही शुरू होने से पहले मध्यस्थता की प्रक्रिया अपनाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। याचिका के अनुसार विवाद समाधान के वैकल्पिक तरीकों को अपनाने से सुनवाई के लिये मिथ्यापूर्ण मामलों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी क्योंकि मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने से पहले संबंधित पक्षों को विवाद सुलझाने के लिये मध्यस्थता का अनिवार्य तरीका अपनाने का अवसर होगा। याचिका में तर्क दिया गया है कि मुकदमा दाखिल करने या इसके लिए नोटिस देने से पहले किसी तीसरे तटस्थ व्यक्ति की मध्यस्थता से सर्वमान्य तरीके से किसी भी विवाद को सुलझाने का यह प्रयास होगा। मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के समाधान की प्रक्रिया अपनाने से एक ओर अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी, तो दूसरी ओर वादकार मुकदमों पर आने वाले खर्च और इसके समाधान में लगने वाला समय बचा सकेंगे।