महिला सशक्तिकरण का संबल बन चुकी मुजफ्फरनगर की बेटी
मुजफ्फरनगर । मुजफ्फरनगर (women empowerment) के गांव पुरबालियान की बेटी दिव्या काकरान महिला सशक्तिकरण (women empowerment) का संबल बन चुकी है। अभाव भरे हालात में दिव्या को उसके मां-बाप ने लंगोट बेंचकर पहलवानी सिखाई। मिट्टी पर लड़े जा रहे दंगल में दिव्या काकरान ने पहली कुश्ती एक लड़के को हराकर जीती थी।
जहां एक जानकार ने दिव्या से उसके बेटे को कुश्ती लड़ाने को कहा, हार-जीत पर 500 रुपये का ईनाम रख दिया गया। बताया कि उन्होंने भी इंकार नहीं किया। दिव्या ने पहली कुश्ती में ही लड़के को चित कर दिया। उसे ईनाम में 3 हजार रुपये मिले। जिससे उन्हें लगा कि दिव्या कुश्ती में पैसा कमा सकती है।
उसके बाद इस फ्री स्टाइल महिला पहलवान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में गोल्ड की झड़ी लगा दी। 21 वर्ष की उम्र में दिव्या को अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में 68 किग्रा. भार वर्ग में दिव्या का पहला मैच 5 अगस्त को होगा। जिसके लिये वह मंगलवार को इंग्लैंड के लिए रवाना हो गई।
पुरबालियान जैसे रूढीवादी गांव में जन्मी दिव्या के लिए अखाड़े में उतरना आसान नहीं था। दिव्या के पिता सूरज सेन पहलवान बताते हैं कि वह स्वयं पैसो की तंगी में पहलवानी छोड़ चुके थे। आर्थिक हालात से जूझते परिवार के लिए ऐसा तब तो बिल्कुल नामुमकिन लगता है जब संघर्ष किसी लड़की को करना पड़े। ऐसे ही कुछ हालात दिव्या काकरान के साथ भी गुजरे।
उन हालात में बेटी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पहलवान बनाना मुश्किल काम था। कहते हैं कि उन्हें यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि दिव्या को उन्होंने पैसों के लिए पहलवान बनाया। 14 सदस्यों का परिवार था। शुरुआत में दूध के भी पैसे नहीं थे। दिव्या ने दंगल जीतना शुरू किया तो परिवार का खर्च चला।