अपराध

‘टुकड़े-टुकड़े कर की हत्या, टायरों पर रखकर जला दिया शव’, विनीत गोयल ने बयां की 1978 के दंगे की दास्तां

संभल -: 1978 के संभल दंगों की दिल दहला देने वाली दास्तां विनीत गोयल ने बयां किया वो मंजर जब दंगाइयों ने उनके पिता और फैक्ट्री के कर्मचारियों को बेरहमी से मार डाला और शवों को जला दिया। दंगों के बाद परिवार को न्याय की आस में साल दर साल बीतता गया लेकिन आज तक दोषियों को सजा नहीं मिली।

  1. संभल के मुहल्ला ठेर निवासी- बोले, घास पर आटा लपेटकर निकाली थी पिता की अर्थी, हड्डी तक नहीं मिलीं
  2. ड्रम में बंद होकर हरद्वारी लाल ने देखा पूरी घटनाक्रम
वर्ष 1978 में संभल के नखासा स्थित बनवारी लाल गोयल की खंडसार की फैक्ट्री में जो कुछ हुआ वो किसी का भी दिल दहला सकता है। ट्रैक्टर से फैक्ट्री का गेट तोड़कर अंदर घुसती दंगाइयों की भीड़।
इसके बाद एक-एक कर फैक्ट्री में मौजूद लोगों की निर्मम हत्या। किसी का गला तो किसी के हाथ-पैर काट दिए।
                                                              ट्रक में आग लगा दी। इसके बाद हैवानियत की हद पारकर लोगों को काटे गए लोगों को मिट्टी का तेल व पेट्रोल छिड़कर टायरों के सहारे जला दिया। बेटों को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए शव तो दूर की बात हड्डियां तक नहीं मिलीं। घास पर आटा लपेटकर अंतिम संस्कार किया।
दंगे का दर्द आया सामने
घटना के बाद इंसाफ की आस में साल दर साल समय बीतता गया लेकिन जब दंगाइयों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और दहशत का माहौल बढ़ता गया तो मजबूरन 1993 में संभल में घर-कारोबार छोड़कर दिल्ली जाकर बसना पड़ा। संभल में 1978 के दंगा पीड़ित विनीत गोयल ने ये सबकुछ सहा है। मंगलवार को जब वे वर्षों बाद संभल पहुंचे तो आपबीती साझा की। हिंदुओं पर जुल्म की दास्तां बयां हो तो कश्मीरी पंडितों का दर्द जेहन में उतर आता है, लेकिन वर्ष 1978 में संभल में हुए दंगे के पीड़ित हिंदुओं की दास्तां भी कम दर्द भरी नहीं है।
फैक्ट्री को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था
                    उनकी फैक्ट्री को आग के हवाले कर दिया गया था। दंगे के बाद दिल्ली में रह रहे उनके बेटे विनीत गोयल 46 साल बाद जब संभल लौटे तो बीते दिनों की दिल दहला देने वाली घटनाएं उनके आंखों के सामने तैरने लगीं।
ड्रम में बंद होकर हरद्वारी लाल ने देखा पूरी घटनाक्रम
विनीत गोयल ने बताया कि उस दिन उनकी फैक्ट्री में काम करने वाली हरद्वारी लाल एक ड्रम में बंद हो गए थे और एक छेद से उन्होंने पूरा घटनाक्रम देखकर बाद में उन्हें बताया। उनके अनुसार दंगाई उनकी फैक्ट्री में घुसने की कोशिश कर रहे थे। उस समय फैक्टरी में पिता बनवारी लाल गोयल के साथ अन्य कर्मचारी भी थे।
                                भीड़ ने लोहे के मजबूत गेट को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन जब गेट नहीं टूटा तो दंगाइयों ने ट्रैक्टर से उसे गिरा दिया। इसके बाद फैक्टरी में खड़े ट्रक को आग के हवाले कर दिया गया। उनके पिता और फैक्टरी के कर्मचारी खुद को बचाने के लिए दूसरी मंजिल पर छिप गए थे, लेकिन दंगाइयों की भीड़ ने उन्हें वहां से खींचकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। किसी के हाथ-पैर तो किसी की गर्दन काट दी। शवों को टायरों पर रखकर जला दिया गया, जिससे उनकी हड्डियां तक नहीं मिलीं।
पुतला बनाकर उस पर आटा लगाकर किया अंतिम संस्कार
विनीत गोयल ने बताया कि दंगे में जान गंवाने वाले उनके पिता बनवारी लाल गोयल समेत कई लोगों के शव तक उनके परिवार को नहीं मिले।
उनके परिवार ने घास-फूस का पुतला बनाकर उस पर आटा लगाकर अंतिम संस्कार किया। उनके पिता की चश्मे की डंडी का पिछला हिस्सा ही राख के ढेर में मिला जिससे उन्हें ये पता चला कि पिता अब दुनिया में नहीं रहे।
दंगे ने बदल दी जिंदगी, अब भी डराती हैं यादें
विनीत गोयल बताते हैं कि दंगे में हुए जानमाल के नुकसान से उबरने में काफी समय लगा। आर्थिक समस्या तो जैसे-तैसे दूर हो गई लेकिन पिता का शव तक न मिलने की टीस आज भी सोने नहीं देती। दंगे के बाद उन्होंने पहले संभल में ही मेंथा का छोटा कारोबार किया। थोड़ी बहुत जो जमा पूंजी थी उससे मेंथा का काम शुरू कर जीवन यापन तो होने लगा लेकिन दंगे का दर्द भुलाए नहीं भूल रहा था। अक्सर रात में नींद तक नहीं आ पाती थी और जेहन में दंगे का दृश्य कौंध जाता था। इसके बाद वर्ष 1993 में विनीत परिवार के साथ दिल्ली के पीतमपुरा में जा बसे और वहीं मेंथा का काम शुरू किया।
संभल लौटकर खुश नहीं
विनीत गोयल ने बताया कि पीढ़ियों तक इस दंगे की गूंज सुनाई देगी। क्योंकि उन्होंने इस दंगे में अपने पिता को खोया था। उन्होंने कहा कि मैं संभल लौटकर खुश नहीं हूं, क्योंकि यहां की हर गली, हर कोना मुझे उस काले दिन की याद दिलाता है। यह दंगे हमारे लिए सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि हमारी पूरी जिंदगी को बदलने वाला दिन था।

आज तक दोषियों को नहीं मिली सजा

विनीत गोयल का कहना है कि उस समय कांग्रेस की सरकार थी। जिलाधिकारी भी फहरत अली थे। पिता बनवारी लाल गोयल की हत्या मामले में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी। मामले की पैरवी विनीत गोयल के चचेरे भाई ओमप्रकाश गर्ग कर रहे थे, जिनका निधन 1993 को हो गया था, लेकिन अपराधियों को आज तक कोई सजा नहीं मिली।

                                      वह आज भी अपने पिता और अन्य निर्दोषों की मौत के लिए न्याय की मांग करते हैं। उन्होंने डीएम एसपी से मिलकर भी इंसाफ की मांग की है। दंगे ने उनके परिवार को बर्बाद कर दिया और उनका कहना है कि यह घाव शायद कभी नहीं भर पाएगा।

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