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मां गंगा हिंदू सभ्यता और संस्कृति की सबसे अनमोल धरोहर

New Delhi:स्वामी विवेकानंद के विदेश प्रवास के दौरान एक बार एक विदेशी पत्रकार ने स्वामी जी से भारत की नदियों के बारे में बात करते हुए प्रश्न किया था. आपके देश में किस नदी का पानी सबसे अच्छा है| स्वामी जी ने उत्तर दिया. यमुना। इस पर वह पत्रकार स्वामी जी को विस्मय से देखते हुए बोला. पर आपके देश के लोग तो गंगा नदी के पानी को सबसे अच्छा बताते हैं! इस पर स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए कहा ,ष्ष्कौन कहता है गंगा नदी हैं  तो हम भारतीयों की माँ हैं जो जीवनदायिनी की तरह भारतभूमिके सभी जड़ चेतन प्राणियों का भरण पोषण करती हैं। निःसंदेह मां गंगा हिंदू सभ्यता और संस्कृति की सबसे अनमोल धरोहर हैं। शास्त्रीय उद्धरण के अनुसार मां गंगा की उत्पत्ति बैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन हुई थी। विष्णु महापुराण की कथा कहती है कि सतयुग में भगवान विष्णु द्वारा वामन रूप में राक्षसराज बलि से तीनों लोकों को मुक्त कराने की खुशी में ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोये थे और उस जल को अपने कमंडल में भर लिया था और श्रीहरि का वह चरणोदक पवित्र गंगाजल में रूपांतरित हो गया। कालांतर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पूर्वज राजा भगीरथ के महापुरुषार्थ से इस दिव्य सुरसरि का महाप्रसाद पृथ्वीलोक को प्राप्त हुआ।

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इसी दिव्य गंगा के जागृत तटों पर ऋषियों ने गहन तप साधना की। वेद.पुराणए श्रुति, उपनिषद, ब्राह्मण व आरण्यक जैसे ज्ञान के अनमोल खजाने मां गंगा की दिव्य गोद में ही सृजित हुए थे। पावन गंगा के तटों पर आश्रम विकसित कर हमारे तत्वदर्शी ऋषियों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों के द्वारा नदियोंए पहाड़ोंए जंगलों व पशु.पक्षियों सहित समूचे जीवजगत के साथ सहअस्तित्व की अद्भुत अवधारणा विकसित की थी। सनातनधर्मियों की प्रगाढ़ मान्यता है कि कलिमलहारिणी गंगा मैया के निर्मल जल में स्नान से सारे पाप सहज ही धुल जाते हैं और यदि जीवन के अंतिम क्षण में मुंह में दो बूंद गंगाजल डाल दिया जाए तो बैकुंठ मिल जाता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने गंगा को भारत की सुषुम्ना नाड़ी की संज्ञा दी है। मध्य युग में काशी में दश्वाश्वमेध घाट पर ष्गंगा लहरी की रचना करने करने वाले पंडित जगन्नाथ मिश्र गंगा मैया का महिमागान करते हुए कहते हैं कि देव नदी गंगा अपनी तीन मूल धाराओं भागीरथीए मन्दाकिनी और भोगावती के रूप में क्रमशः धरती ;मृत्युलोकद्ध| आकाश ;देवलोकद्ध व रसातल ;पाताल लोकद्ध को अभिसिंचित करती हैं। तीनों लोकों में प्रवाहित होने के कारण इन्हें त्रिपथगा या त्रिपथगामिनी कहा जाता है।ज्ञात हो कि दो हजार साल पहले सम्राट चन्द्गुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत आये यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के यात्रा वृत्रांत INDICA में भारतवासियों के मन में गंगा के प्रति गहन श्रद्धा का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह विदेशी विद्वान लिखता है कि सत्यता व व शुद्धता का प्रमाण देने के लिए भारतवासी गंगा की सौगंध लिया करते थे। जानना दिलचस्प हो कि जापान के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. मसारू इमोटो गंगाजल की अलौकिक गुणों से इस कदर प्रभावित हुए थे कि उन्होंने रामायण में उल्लेखित श्राप की घटनाओं को अपने शोध का विषय बना लिया था। डॉ. इमोटो के शोध का विषय था दृ ष्ष्पानी के सोचने समझने की क्षमताष्ष्। नदी विशेषज्ञ डॉण् अभय मिश्र के मुताबिक डॉण् मसारू गंगाजल की उस क्षमता को जानना चाहते थे जिसे हमारे ऋषि मुनि हथेली में लेकर संकल्प लेते थे या श्राप दे दिया करते थे। अठारहवीं सदी के उतरार्द्ध में विकसित हुए पाश्चात्य सभ्यता के ष्जड़ के साथ जड़ जैसे व्यवहार के अमानवीय जीवन दर्शन ने प्रकृति व पर्यावरण को आज इस कदर क्षतिग्रस्त कर दिया है कि मानवी अस्तित्व पर ही खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।ऐसा तब है जब प्रयोगशालाओं में साबित हो चुका है कि गंगाजल में पाया जाने वाला ‘बैक्टीरियोफेज’ नामक जीवाणु इसे सड़ने नहीं देता। है न कितना विरोधाभासी तथ्य! फिर भी उदास, निराश माँ गंगा हम पापियों का सतत उद्धार करती आ रही है।

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