10 सालों में देश में सड़क दुघर्टना में 15 लाख से ज्यादा लोगों की मौत !
देश में हर साल लाखों सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसके कारण सैकड़ों-हजारों लोगों की मौत भी होती है। लोकसभा में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को हैरान कर देने वाला खुलासा करते हुए बताया कि पूरे देश में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली एक बार फिर हमेशा की तरह पहले स्थान पर है। इस साल 2024 में सिर्फ दिल्ली के अंदर सड़क दुर्घटनाओं में 1,457 लोगों की जानें गई हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर बेंगलुरु है, जहां 900 लोगों की जानें गई है। जयपुर में 849 और कानपुर में 638 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना के कारण हुई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुई दुर्घटनाओं में 36.5 प्रतिशत लोगों की जाने गई है।
देश में सड़क दुर्घटना के हैरान कर देने वाले आंकड़े बताते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं में कमी तो दूर की बात है, बल्कि मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि सड़क दुर्घटना के मामले में भारत का दुनिया में सबसे गंदा रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि जब वह सड़क दुर्घटनाओं पर चर्चा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेते हैं, तो उन्हें अपना मुंह छिपाना पड़ता है। साथ ही उन्होंने कहा कि देश में हर साल 1.78 लाख लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में चली जाती है, जिनमें से जान गंवाने वाले 60 प्रतिशत लोगों की आयु 18 से 34 साल के बीच में होती है।
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इसके पूर्व नितिन गडकरी ने एक कार्यक्रम में इस बात की जानकारी दी थी कि देश में हर साल लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गवां देते हैं। गडकरी ने कहा कि सलाहकारों द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में हर साल 1.50 लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गवां देते हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने दावा किया था कि देश में हर साल पांच लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें 1.50 लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है। यह मौतों का आंकड़ा केवल सलाहकारों द्वारा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में लोगों द्वारा की गई गलतियों के कारण है।” उन्होंने दावा किया कि ज्यादातर डीपीआर बहुत रूढ़िवादी हैं।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सड़कों पर ब्लाइंड स्पॉट (सड़क पर जानलेवा जगह) में सुधार पर जोर देते हुए डीपीआर तैयार करने में गुणात्मक बदलाव लाने की जरूरत है। गडकरी ने कहा, “मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों है (डीपीआर दोषपूर्ण है) और इसके पीछे क्या कारण हैं।”
इसके अलावा भारत में सड़क हादसों को लेकर जो और रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों में देश में सड़क दुघर्टना में 15 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। यह आंकड़ा केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की आबादी से भी ज्यादा है। केंद्र सरकार ने सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिए कई बार प्रतिबद्धता दोहराई है और ऐसी मौतों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप किया है। हालांकि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में हर 10,000 किलोमीटर पर 250 लोगों की जिंदगी छीन गई। अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की बात करे तो ये आंकड़े 57, 119 और 11 हैं। इससे यह स्पष्ट है कि ये आंकड़े बेहद खतरनाक हैं।
वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हैं, इसके बावजूद पूरे विश्व में होने वाले हादसों का 11 फीसदी देश में ही घटित होते हैं। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में हादसे कम करने के लिए सड़क सुरक्षा संबंधी उपाय बढ़ाने के लिए भी कहा गया है।
सड़क हादसे सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के लिए भी चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। इसीलिए वर्ष 2020 में कई देशों ने साथ मिलकर सड़क हादसों में मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। हाल ही में फिर से स्टॉकहोम में आयोजित विज़न ज़ीरो पर ग्लोबल मीट और राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के नेटवर्क की ग्लोबल मीटिंग हुई, जिसमें साल 2020 के निर्धारित लक्ष्य का जमीनी स्तर पर आंकलन किया गया।
दुनिया भर में हर साल 13.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं। यह एक बहुत बड़ी संख्या है। दुनियाभर में हर दिन लगभग 3,000 लोग सड़कों पर दम तोड़ते हैं। इन आंकड़ों को देखते हुए वैश्विक नेताओं और प्रतिनिधियों ने इस मीटिंग में कहा कि सड़क दुर्घटनाओं को भी ग्लोबल वार्मिंग या महामारी के समान माना जाना चाहिए। सभी देशों की लगातार कोशिशों के बावजूद दुर्घटनाओं की संख्या में उतनी कमी नहीं आई है, जितनी की उम्मीद की जा रही थी।
साल 2010 में, इस संकट ने विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जब संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की कि 2020 तक मौतों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी लाने के लिए दुनिया भर में प्रयास किए जाने चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।साल 2020 में, विश्व के नेताओं और प्रतिनिधियों ने एक और लक्ष्य निर्धारित किया और 2030 तक सड़क हादसे में मौतों की संख्या को 50 प्रतिशत तक कम करने का निश्चय किया। इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत भी शामिल था। चीज़ें बड़े पैमाने पर शुरू हुईं, लेकिन मौतों की संख्या अभी भी कम नहीं हो पायी है। इसका कारण खराब बुनियादी ढांचा या खराब वाहन हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर बार इसका कारण खराब मानवीय व्यवहार माना गया है।
भारत, श्रीलंका, मैक्सिको और बांग्लादेश जैसे देशों को वैश्विक संख्या को कम करने में बड़ी भूमिका निभानी होगी क्योंकि इन देशों में सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या अधिक है।
वहीं, स्वीडन का लक्ष्य सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या को शून्य पर लाना है। पिछले साल करीब 250 मौतें ही स्वीडन में हुईं, लेकिन देश इस आकड़ें से भी दुखी है और वह आने वाले सालों में इन आंकड़ों को भी वो खत्म करना चाहता है। यही कारण है कि विज़न ज़ीरो का सपना स्वीडन ने देखा। इस विजन से देश ने दूसरे देशों के लिए मिसाल कायम की है।
अन्य देशों ने भारत के लिए अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। वे सड़क दुर्घटनाओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं। जब कोई सड़क दुर्घटना होती है, तो वे उचित जांच करते हैं। भारत में मोटर वाहन अधिनियम है जो कहता है कि हर दुर्घटना की उचित जांच होनी चाहिए। इसके बावजूद जब कोई दुर्घटना होती है तो पुलिस एफआईआर दर्ज करती है जो ज्यादातर ड्राइवर के खिलाफ होती है। हमने दुर्घटना में मरने वालों को निर्दोष माना। हम अपनी सड़क पर होने वाली मौतों का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण नहीं करते हैं।
दूसरे, दुर्घटना के कारणों के संबंध में सही आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनाई जा सकेंगी। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र के कुर्ला में हाल ही में हुई दुर्घटना को एजेंसियों को विस्तृत विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए था। क्या ड्राइवर के पास उचित लाइसेंस था? क्या वह गाड़ी चलाते समय थक गया था? क्या वाहन अच्छी स्थिति में था? यदि ड्राईवर ने शराब पी रखी तो उसे रोका क्यों नहीं गया ?क्या सड़क का बुनियादी ढांचा मौजूद था? इन सबकी ठीक से जांच होनी चाहिए। साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस सिस्टम भी मजबूत होना चाहिए। व्यवसायिक चालकों के लिए नियम लागू नहीं किये जा रहे हैं। बुनियादी ढांचे में भी सुधार की जरूरत है।
भारत के आज तक के युद्धों में जितने सैनिक शहीद नहीं हुए, उससे ज्यादा लोग सड़कों पर दुर्घटना में एक साल में मारे जाते हैं, इसलिए चिंतित सुप्रीम कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमले में नहीं मरते जितने सडकों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं। पिछले एक दशक में ही भारत में लगभग 14 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए हैं। इन मौतों का दुष्प्रभाव तो मृतकों के परिवार पर पड़ना स्वाभाविक ही है साथ ही देश की प्रगति भी इन हादसों से प्रभावित होती है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए सरकार और खराब सड़कों को देाष देना तो आसान है, मगर लोग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से साफ बच निकलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में शहरीकरण की तीव्र दर, सुरक्षा के पर्याप्त उपायों का अभाव, नियमों को लागू करने में विलंब, नशीली दवाओं एवं शराब का सेवन कर वाहन चलाना, तेज गति से वाहन चलाते समय हेल्मेट और सीट-बेल्ट न पहनना आदि हैं।वाहन चलाना आए या न आए, लोग आरटीओ दफ्तरों में रिश्वत देकर लाइसेंस बनवा लेते हैं। इसी तरह नाबालिग बच्चों को चलाने के लिए वाहन थमा दिए जाते हैं, जिससे अन्य लोग भी बिना गलती किए दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।