बच्चों के दिमाग़ को खोंखला कर रहा मोबाइल, जानें कैसे बदलता है व्यवहार

आजकल के समय में देखने को मिलता हैं कि बच्चा अपना अधिकतर समय मोबाइल में गुजारता हैं। बड़े भी बच्चों से कुछ समय के लिए छुटकारा पाने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। आजकल स्मार्टफोन तो बच्चों का खिलौना हो गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों की मोबाइल का ज्यादा उपयोग करने की यह आदत उनके व्यवहार को बहुत नुकसान पहुंचा रही हैं। बच्चे के विकास पर मोबाइल और सोशल मीडिया का बुरा असर पड़ता है। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह मोबाइल और सोशल मीडिया बच्चों के व्यवहार को प्रभावित कर रहा हैं।मानसिक बदलावआजकल बच्चे घंटों फोन पर आंख लगाए गेम्स खेलते रहते हैं।
अगर कुछ समय के लिए उनसे फोन ले लिया जाए तो उनमें गुस्से और चिड़चिड़ापन दिखना आम बात हो गई है। सोशल मीडिया की यह लत उनमें आने वाले मानसिक बदलाव की निशानी मानी जा सकती है। सोशल मीडिया इतना बड़ा है कि बच्चा कहां, कब और कैसे क्या जानकारी ले रहा है, आप उस पर कंट्रोल नहीं रख सकते हैं। ऐसी स्थितियां बच्चों को अश्लील, या हानिकारक वेबसाइटों तक पहुंचा सकती हैं, जो उनकी सोचने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं।पल-पल मूड बदलनाआजकल ज़्यादातर बच्चों को मूड स्विंग की समस्या रहती है। ये पल भर में ख़ुश, तो दूसरे ही पल चिड़चिड़े व मायूस हो जाते हैं। दरअसल, मूड स्विंग का एक बहुत बड़ा कारण मोबाइल का अधिक इस्तेमाल है।
जो बच्चे स्मार्टफोन पर हमेशा अलग-अलग तरह की एप्लिकेशन ट्राई करने में बिज़ी रहते हैं, उन्हें इस तरह की समस्या ज़्यादा होती है।डिप्रेशन का मुख्य कारणइंटरनेट का ज्यादा प्रयोग करने वाले लोगों में डिप्रेशन (अवसाद) की चपेट में आने का खतरा सबसे ज़्यादा होता है। यह समस्या विद्यार्थियों और किशोरों में अधिक पाई जाती है। ऐसे लोगों में बेचैनी की समस्या और अपने दैनिक कार्यों को अच्छे से न निपटने जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। छोटी उम्र में बच्चे अच्छे और बुरे में फर्क नहीं कर पाते हैं और सोशल मीडिया आसानी से उनकी सोच और व्यवहार को बदल सकता है।लर्निंग डिसैब्लिटीदिनोंदिन हाईटेक होती टेक्नोलॉजी और उसकी आसान उपलब्धता के कारण बच्चों के पढऩे का तरीक़ा भी बदल गया है।
अब वे हमारी और आपकी तरह पढऩे के लिए दिमाग़ ज़्यादा ख़र्च नहीं करते, क्योंकि इंटरनेट के कारण एक क्लिक पर ही उन्हें सारी जानकारी मिल जाती है, तो उन्हें कुछ भी याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मैथ्स के कठिन से कठिन सवाल को मोबाइल, जो अब मिनी कॉम्प्यूटर बन गया है कि मदद से सॉल्व कर देते हैं। अब उन्हें रफ पेपर पर गुणा-भाग करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसका नतीज़ा ये हो रहा है कि बच्चे नॉर्मल तरी़के से पढऩा भूल गए हैं। साधारण-सी कैलकुलेशन भी वो बिना कैलकुलेटर के नहीं कर पाते।आक्रामक व्यवहारबच्चों के हाथ में मोबाइल होने के कारण उनका दिमाग़ 24/7 उसी में लगा रहता है।
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कभी गेम्स खेलने, कभी सोशल साइट्स, तो कभी कुछ सर्च करने में यानी उनके दिमाग़ को आराम नहीं मिल पाता। दिमाग़ को शांति व सुकून न मिल पाने के कारण उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है। कभी किसी के साथ साधारण बातचीत के दौरान भी वो उग्र व चिड़चिड़े हो जाते हैं। ऐसे बच्चे किसी दूसरे के साथ जल्दी घुलमिल नहीं पाते, दूसरों का साथ उन्हें असहज कर देता है। वो हमेशा अकेले रहना ही पसंद करते हैं।ध्यान केंद्रित नहीं कर पानालगातार हानिकारक रेडिएशन के संपर्क में रहने के कारण दिमाग़ को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। दिमाग़ के सामान्य काम पर भी इसका असर पड़ता है।
बच्चों के दिमाग़ में हमेशा मोबाइल ही घूमता रहता है, जैसे- फलां गेम में नेक्स्ट लेवल तक कैसे पहुंचा जाए? यदि सोशल साइट पर है, तो नया क्या अपडेट है? आदि। इस तरह की बातें दिमाग़ में घूमते रहने के कारण वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पातें। ज़ाहिर है ऐसे में उन्हें पैरेंट्स व टीचर से डांट सुननी पड़ती है। बार-बार घर व स्कूल में शर्मिंदा किए जाने के कारण वो धीरे-धीरे फ्रस्ट्रेट भी होने लगते हैं।नींद में खललबच्चे दोस्तों से बात करने, गेम खेलने या सोशल मीडिया के माध्यम से ब्राऊज करने में देर तक जागे रह सकते हैं, जो समय के साथ थकान और बेचैनी का कारण बनता है। नींद पढ़ाई में भी रूकावट डालती है, क्योंकि बच्चों को स्कूल में पढ़ाई जाने वाली चीजों पर ध्यान केंद्रित करते समय बहुत नींद आती है।
इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है जो उनके जीवन के आगे के चरणों में फैल जाता है।काल्पनिक दुनिया में जीते हैंमोबाइल पर सोशल साइट्स की आसान उपलब्धता के कारण बच्चे आपसे नजऱ बचाकर ज़्यादातर समय उसी पर व्यस्त रहते हैं। अपने रियल दोस्तों की बजाय वर्चुअल वर्ल्ड में दोस्त बनाते हैं और उसी आभासी दुनिया में खोए रहते हैं। बार-बार पैरेंट्स द्वारा मना करने के बाद भी उनकी नजऱ बचाकर वो सोशल साइट्स पर बिज़ी हो जाते हैं। नतीजतन पढ़ाई और बाकी चीज़ों में वो पिछड़ते चले जाते हैं। आभासी दुनिया में खोए रहने के कारण उनकी सोशल लाइफ बिल्कुल ख़त्म हो जाती है, जो भविष्य में उनके लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता है।