ऑपरेशन मेघदूत में हुए लापता शहीद का 38 साल बाद मिला शव

29 मई 1984: सियाचिन ग्लेशियर, दुनिया (body) का सबसे ऊंचा जंग का मैदान। इस पर कब्जे के लिए चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत में शामिल सेना के 20 जवान पेट्रोलिंग के लिए निकले थे, लेकिन रास्ते में ही हिमस्खलन का शिकार बन गए। 15 जवानों के शव (body) कुछ दिन बरामद हो गए, लेकिन 5 जवानों का कुछ पता नहीं चला।
तब से अब तक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का कब्जा है। अब भी दोनों ओर से हजारों की संख्या में सैनिक सियाचिन ग्लेशियर के आसपास तैनात हैं। 1984 में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ को सूचना मिली कि पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे की फिराक में है।
इसके लिए वो जर्मनी से बड़ी संख्या में बर्फीले इलाके में तैनात सैनिकों के पहनने वाले कपड़े और सैन्य-उपकरण खरीद रहा था। 13 अप्रैल को सुबह 5.30 बजे भारतीय सेना का पहला चीता हेलिकॉप्टर बेस कैंप से उड़ा। दोपहर तक 17 और हेलिकॉप्टर 29 और सैनिकों को लेकर बिलाफोंड ला पास पर उतरे।
इसके बाद खराब मौसम की वजह से सैनिकों का संपर्क हेडक्वॉर्टर से टूट गया। चार दिन बाद 17 अप्रैल को दोबारा संपर्क तब स्थापित हुआ, जब सेना के 5 चीता और दो MI-8 हेलिकॉप्टरों ने सिया ला पास के लिए रिकॉर्ड 32 उड़ानें भरीं।
उसी दिन एक पाकिस्तानी हेलिकॉप्टर ने ग्लेशियर के ऊपर से उड़ान भरी और उसे वहां पहले से ही तैनात भारतीय सैनिक नजर आए। अगले 3 सालों में पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन में सबसे ऊंची जगह पर ‘कायदे आजम पोस्ट’ बना ली थी। इस पोस्ट से पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना की हर एक्टिविटी पर नजर रख रही थी।