मिखाइल गोर्बाचेव(Mikhail Gorbachev) का 91 वर्ष की उम्र में निधन

माॅस्कोः पूर्व सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति और शीत युद्ध को समाप्त करने वाले मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) का मंगलवार को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक ने सेंट्रल क्लिनिकल अस्पताल के एक बयान के हवाले से यह जानकारी दी. मिखाइल गोर्बाचेव यूनाइटेड यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के अंतिम नेता थे. वह नागरिकों को स्वतंत्रता देकर लोकतांत्रिक सिद्धांतों की तर्ज पर कम्युनिस्ट शासन में सुधार करने के पक्षधर थे. जब 1989 में सोवियत संघ में लोकतंत्र समर्थक विरोध-प्रदर्शन तेज हो गए थे, तो भी गोर्बाचेव ने बल प्रयोग करने से परहेज किया था.
गोर्बाचेव का जन्म 2 मार्च, 1931 को एक गरीब परिवार में हुआ था. वह जोसेफ स्टालिन के शासनकाल में बड़े हुए. उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी. इससे पहले वह 1985 से 1991 तक सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव रहे थे. इसके बाद 1990 से 91 तक राष्ट्रपति रहे. 1988 से 1989 तक वह सुप्रीम सोवियत के प्रेसिडियम के अध्यक्ष रहे. 1988 से 1991 तक वह स्टेट कंट्री प्रमुख रहे. 1989 से 1990 तक उन्होंने सुप्रीम सोवियत के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. सोवियत संघ टूटने के बाद मिखाइल गोर्बाचेव ने रूस में राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा, लेकिन उन्हें जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था. बाद में वह पुतिन के जबरदस्त आलोचक बन गए थे.
ग्लासनोस्ट नीति और भाषण की स्वतंत्रता को मान्यता दी
गोर्बाचेव ने ग्लासनोस्ट नीति(पूर्व सोवियत संघ में 1985 में मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा शुरू की गई सरकार को खुलकर सलाह देने और सूचना के व्यापक प्रसार की नीति) और भाषण की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी, जिसपर उनके पहले के शासन के दौरान गंभीर रूप से अंकुश लगा दिया गया था. गोर्बाचेव ने अपने कार्यकाल के दौरान पेरेस्त्रोइका या आर्थिक पुनर्गठन नामक सुधार का एक कार्यक्रम भी शुरू किया था. क्योंकि सोवियत अर्थव्यवस्था उस समय मुद्रास्फीति और आपूर्ति की कमी से जूझ रही थी. उनके शासनकाल में प्रेस और कलात्मक सांस्कृतिक समुदाय को स्वतंत्रता दी गई.
मिखाइल गोर्बाचेव को 1990 में मिला नोबेल शांति पुरस्कार
मिखाइल गोर्बाचेव ने सरकारी तंत्र पर कम्युनिष्ट पार्टी के नियंत्रण को कम करने के लिए आमूल.चूल सुधारों की शुरुआत की.विशेष रूप से, उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान हजारों राजनीतिक कैदियों और आलोचकों को रिहा कर दिया गया.उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण समझौते की सफलता के लिए भी जाना जाता है. राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मिखाइल गोर्बाचेव को दुनियाभर में कई सम्मान मिले. शीत युद्ध को समाप्त करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इसलिए उन्हें 1990 में शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिला.
सोवियत संघ के पतन का मिखाइल गोर्बाचेव को था अफसोस
माॅस्को में 25 दिसंबर, 1991 को मिखाइल गोर्बाचेव ने टीवी पर प्रसारित राष्ट्र के नाम संबोधन में सोवियत संघ के राष्ट्रपति के रूप में अपने इस्तीफे की घोषणा की थी. गोर्बाचेव ने अपने संस्मरणों में सोवियत संघ के पतन को रोकने में विफल रहने पर अफसोस जताया था. गोर्बाचेव ने अपने एक संस्मरण में लिखा, ‘मुझे आज भी इसका दुख है कि मैं अपने पोत को शांत समुद्र तक नहीं ला सका और देश में सुधारों की श्रृंखला को पूरा करने में विफल रहा.’
पूर्व सोवियत यूनियन 15 स्वशासित गणतंत्रों का एक संघ था
सोवियत यूनियन 15 स्वशासित गणतंत्रों का एक संघ था, जिनमें किर्गिस्तान, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान, आर्मीनिया, तुर्कमेनिस्तान, रशियन फेडरेशन, उज्बेकिस्तान, मॉल्डोवा, यूक्रेन, बेलारूस, जॉर्जिया, अजरबैजान, लातविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया शामिल थे. इसमें सबसे ज्यादा प्रभुत्व रूस का था. सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था. 26 दिसंबर, 1991 को सोवियत संघ का आधिकारिक रूप से विघटन हुआ, जो बाद में 15 गणराज्यों में बांटा गया. सोवियत संघ से टूटकर आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मॉल्डोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान आदि देश बने.