नक्शे की राजनीति पाक की मजबूरी
शशांक, पूर्व विदेश सचिव, भारत
पाकिस्तान ने कैबिनेट की सहमति से जो अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया है, उसके पीछे वहां के अंदरूनी राजनीतिक हालात हैं. इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने में सेना की बहुत बड़ी भूमिका रही है और वहां लगभग सभी महत्वपूर्ण निर्णय सेना ही लेती है, लेकिन इसे दुनिया से छुपाना भी है वर्ना फजीहत हो जायेगी. ऐसे में इमरान खान की जिम्मेदारी बनती है कि वह कुछ-न-कुछ करके दिखाएं. दूसरे, पाकिस्तान की हालत बद-से-बदतर होती जा रही है. आर्थिक स्थिति खराब होने के साथ ही पाकिस्तान को बाहर से बहुत सारा ऋण लेना पड़ रहा है. वह कर्ज के दलदल में धंसता जा रहा है. आतंकवादियों को पनाह देने के कारण वह कब से ग्रे लिस्ट में है. उसमें किसी तरह की अब तक रियायत नहीं मिली है. ऐसी हालत में इमरान खान को कुछ-न-कुछ तो करना ही था. दूसरी बात, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद से उनके लिए भारत के अंदर आतंकवाद को बढ़ावा देना मुश्किल हो गया है. ऐसे में इमरान खान कोई नया मुद्दा चाहते हैं. नेपाल ने उनको अच्छा रास्ता दिखा दिया है. धारा 370 हटने से हमारे कश्मीरी नेता अभी तक नाराज हैं, क्योंकि उनको पहले कश्मीर में पूरी लीडरशीप मिली हुई थी, पैसा भी उन्हीं के माध्यम से जाता था, वह सब बंद हो गया है. ऐसे में इमरान खान उन लोगों को भड़काना चाहते हैं और यह आश्वासन देना चाहते हैं कि भारत में भले ही उन्हें मदद नहीं मिल रही है, लेकिन पाकिस्तान उनकी मदद को तैयार हैं. तीसरी बात, पाकिस्तान अब चीन की भाषा ज्यादा बोलने लग गया है. पाकिस्तान ने जिन-जिन हिस्सों को जबरदस्ती अपने हिस्से में मिलाया था, उन्हें अब वह संभाल नहीं पा रहा है, जैसे बलूचिस्तान, पीओके आदि. इन्हें वह चीन को पकड़ाता जा रहा है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और वह चीन के कर्ज में डूबता जा रहा है. चीन से वह जितना कर्ज लेता है, उसके बदले अपनी और जमीन चीन को देता जाता है. कहते हैं कि बलूचिस्तान को भी उसने पचास वर्ष की लीज पर चीन को दे दिया है. पीओके में गिलगित-बाल्टिस्तान को भी पचास वर्ष की लीज पर देने का प्रस्ताव रखा है. कहा जा रहा है कि इसे लेकर गुपचुप समझौता भी हो गया है. इसी कारण कश्मीर, पख्तूनिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध आदि में पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा भड़क उठा है. जहां तक नेपाल की बात है, तो वह पाकिस्तान की तरह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा तो नहीं देता है, लेकिन नेपाल के अंदर आतंकवादी गुट घुस कर बैठे रहते हैं और वे वहां से नकली भारतीय मुद्रा भारत में भेजते रहते हैं. नेपाल भी आजकल चीन के प्रभाव में है. इसी कारण उसने भी अपना नया नक्शा पारित किया है. असल में, नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार से वहां के लोग बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं. ऐसे में वह चीन से पैसा लेने के लिए और लोगों को खुश करने के लिए भारत विरोधी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती जा रही है. भारत के अड़ोस-पड़ोस, दक्षिण एशिया में चीन जिस तरीके से अपने पैर पसार रहा है, ऐसे में आवश्यक हो गया है कि जो देश भारत को अपना मित्र कहते हैं, उसे हथियार बेचने में लगे रहते हैं, उन्हें भारत अच्छी तरह से यह बात समझाए कि सिर्फ हथियार खरीदने से काम नहीं बनता. जरूरी यह भी है कि मित्र कहने का दम भरने वाले देश रणनीतिक रूप से भारत को कमजोर न पडऩे दें. जिस तरह भारत के पड़ोसी देश चीन के हाथों बिकते चले जा रहे हैं, वह भारत के लिए चिंता का विषय है. चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियां अब नेपाल और पाकिस्तान को भी सिखा दी हैं. कार्टोग्राफिक एग्रेशन उसी का नतीजा है. इसे रोकना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के खिलाफ जाने का चीन का यह नया तरीका है. चूंकि अब अमेरिका पूरी तरह चीन के खिलाफ खड़ा हो चुका है. इसलिए चीन को अब यह डर सता रहा है कि कहीं अमेरिका भारत का दोस्त न बन जाए. इसलिए वह चारों ओर से भारत को घेरना चाहता है. इसके लिए चीन भारत के पड़ोसी देशों की जमीन हथियाने के साथ ही भारत के पड़ोसी देशों को कार्टोग्राफिक एग्रेशन के लिए बढ़ावा दे रहा है और अंतरराष्ट्रीय समझौते के खिलाफ बहका रहा है. ऐसी परिस्थिति में भारत को अपनी सुरक्षा का बहुत ध्यान रखने की जरूरत है. राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर पाकिस्तान और बौखला गया है. वह भारत के अंदर अलग-अलग कमेटी और राजनीतिक पार्टी को हिंदू राज, राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक आदि के नाम पर भड़काना और हमारे यहां की शांति भंग करना चाहता है. वह भारत को किसी तरीके से अंदर से कमजोर करना चाहता है. इसलिए उसने चीन को अपने साथ मिला लिया है. भारत को अपने खतरों को समझने की आवश्यकता है. हमें अपना व सेना का मनोबल बढ़ाना होगा और सुरक्षा की दृष्टि से, साझेदारी की दृष्टि से अपने को मजबूत करना होगा. हम जिन पड़ोसी देशों की मदद का वादा करते हैं और उनके साथ मिल कर परियोजनाएं लगाते हैं, उन्हें समय पर पूरा करना होगा. दूसरे हम अपने पड़ोसी देशों में विश्वास पैदा करें कि भारत उनके साथ पूरी मजबूती से खड़ा है.