महिला के साथ रहने का मतलब शारीरिक संबंधों (physical relations)के लिए रज़ामंदी नहीं

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोई महिला किसी पुरुष के साथ चाहे कितने समय तक भी रहे लेकिन इसे कभी भी शारीरिक संबंध (physical relations) के लिए उसकी रजामंदी नहीं समझा जा सकता है. अदालत ने आध्यात्मिक गुरु होने का ढोंग करके एक चेक नागरिक के साथ बलात्कार करने के आरोपी शख्स को नियमित जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है. आरोपी ने महिला के पति की मौत के बाद की रस्में निभाने में उसकी मदद की थी.
जस्टिस अनूम भंभानी की सिंगल जज बेंच ने पीड़िता की एक स्थिति के लिए बनी सहमति बनाम यौन संबंध के लिए सहमति के बीच के अंतर को स्पष्ट करने की जरूरत को देखते हुए यह फैसला सुनाया. उन्होंने कहा, “सिर्फ इसलिए कि एक अभियोजिका किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, चाहे वह फिर कितने भी समय के लिए हो, कभी भी यह अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है कि उसने उस आदमी के साथ यौन संपर्क के लिए भी सहमति दी थी.”
आरोप है कि आरोपी ने 12 अक्टूबर, 2019 को दिल्ली के एक हॉस्टल में महिला का यौन उत्पीड़न किया, और फिर 31 जनवरी, 2020 को प्रयागराज में और 7 फरवरी, 2020 को गया (बिहार) के एक होटल में उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए.
यह तर्क दिया गया था कि एफआईआर दिल्ली में हुई घटना के बहुत समय बाद दर्ज कराई थी और अभियोजक ने अन्य स्थानों पर प्राथमिकी या फिर शिकायत दर्ज कराने का कोई प्रयास नहीं किया जहां उसका कथित रूप से यौन उत्पीड़न हुआ था.
इसके जवाब में अदालत ने कहा, “प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को उसी आधार पर स्पष्ट करने की कोशिश की गई है. यानी कि, पीड़िता की भावनात्मक रूप से कमजोर स्थिति, साथ ही यह तथ्य कि वह अनजान जगहों और वातावरण में थी जहां उसे पुलिस से शिकायत करने पर परिणामों का डर था.
अदालत ने कहा कि पीड़िता ने जिस झटके को महसूस किया था वह उसे खत्म करने के लिए याचिकाकर्ता पर निर्भर हो गई थी क्योंकि वह विदेशी थी और हिंदू रस्म-रिवाज से अनजान थी.
अदालत ने रिकॉर्ड पर दिए गए दस्तावेजों को देखकर कहा कि, हालांकि कहीं भी ये आरोप नहीं लगाया गया है कि याचिकाकर्ता अभियुक्त ने पीड़िता को बंधक बना लिया था या फिर उसके साथ कोई जोर जबरदस्ती कर उसे यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया था. लेकिन यह तथ्य अकेले ही पीड़िता के मन की इस स्थिति का निर्धारक नहीं होगा कि कथित यौन संबंध सहमति से बने थे.
याचिकाकर्ता को नियमित जमानत देने से इनकार करते हुए, अदालत ने उसे निचली अदालत के समक्ष एक बार अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों के बयान पूरे हो जाने के बाद समान राहत के लिए नए सिरे से आवेदन करने की स्वतंत्रता दी है.