भद्र का ही श्रवण करें ताकि आपका जीवन कल्याणमय बन सके !
श्रवण का जीवन में कितना प्रभाव पड़ता है यह माँ रुक्मिणी के जीवन से सीख लेनी चाहिए माँ रुक्मिणी भगवान को पत्र के माध्यम से कहती हैं ”हे प्रभु मैंने आपके गुणों को सुना और आपकी होकर रह गयी मेरा मन अब केवल आप में रम गया है क्योंकि मैंने आपकी कृपालुता, दयालुता और महानता का वर्णन संतों के श्रीमुख से सुना है”जिस प्रकार माँ रूक्मिणी ने प्रभु की कथा को सुना और प्रभु की होकर रह गयी |
अन्ततोगत्वा उस प्रभु को स्वयं माँ रूक्मिणी का वरण करने को जाना ही पड़ा ठीक उसी प्रकार अगर कोई मनुष्य प्रभु कथा का आश्रय लेता है तो निश्चित ही उस कृपा निधान प्रभु द्वारा उसका वरण किया जाता है जो जैसा सुनता है, वैसा करता है फिर वैसा ही बन आता है इसलिए अगर अच्छा बनना हो तो फिर अच्छा ही सुनना भी पड़ेगा ग़लत सुनने से मन अपवित्र हो जाता है मन की अपवित्रता हमारी बुद्धि को भी अपवित्र कर देती है व अपवित्र बुद्धि से हमारा आचरण भी दूषित हो जाता हैऔर दूषित आचरण निश्चित ही हमें पतन की तरफ लेकर जाता है इसलिए सदा भद्र का ही श्रवण करें ताकि आपका जीवन कल्याणमय बन सके.