उत्तर प्रदेश

जानिए मलिन बस्ती की पहली ग्रेजुएट( first graduate )की कहानी

प्रयागराज. “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”,.’ जी हां संगम नगरी प्रयागराज के मलिन बस्ती में रहने वाली पहली लड़की जिसमें ग्रेजुएशन की पढ़ाई 90 प्रतिशत अंक के साथ पूरी की. प्रयागराज की कोइलहा मलिन बस्ती की पहली ग्रेजुएट ( first graduate ) प्रीति ने साबित कर दिया है. जिस बस्ती में बच्चों का बचपन ताश के पत्तों, कंचे और नशे के बीच गुजरता है, वहां से प्रीति ने निकलकर दुश्वारियों के बीच इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से स्नातक में 90% अंक हासिल किए हैं. प्रीति खुद तो आगे बढ़ ही रही हैं, अब अपनी बस्ती के बच्चों का भी भविष्य संवारने का जिम्मा उठा लिया है.

कूड़ा बीनने वाले बच्चों को रोज दो घंटे फ्री में पढ़ाती हैं. प्रीति वंशकार ने बताया कि इंटरमीडिएट पीसीएम ग्रुप से पास करने के बाद उसने इलाहाबाद विश्वविद्यालय का एंट्रेंस एग्जाम दिया और क्वालिफाइ किया. हिंदी, प्राचीन इतिहास और वोकल के साथ स्नातक में दाखिला लिया. प्रथम वर्ष में 450 अंक में से 414 अंक मिले. द्वितीय वर्ष में 450 में 407, जबकि तृतीय वर्ष में 450 में 395 अंक मिले.

एक टीचर की प्ररेणा ने बदल दी प्रीति की जिंदगीएक टीचर की प्ररेणा ने बदल दी प्रीति की जिंदगी.
अंतिम वर्ष के फाइनल रिजल्ट में प्रीति को कुल 1350 अंकों में से 1216 अंक मिले. प्रीति कहती हैं कि अब जब मैं ग्रेजुएट हो गई हूं तो बस्ती की और भी बेटियों को लोग पढ़ाने के प्रति जागरूक हुए हैं.

धीरे-धीरे परिवर्तन की लौ तेज हो रही है. प्रीति वंशकार का जीवन भी 7 हजार आबादी वाली मलिन बस्ती के अन्य बच्चों की तरह ही था. उसके पिता की मौत हो चुकी है. मां डलिया बीनकर बच्चों को पाल रही है. प्रीति जब 2017 में कक्षा-9 में सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी. तब वो महज 14 साल की थी. प्रीति बताती है कि मेरी बस्ती में ज्यादातर बच्चियों की कच्ची उम्र (12 से 14) में या तो शादी कर दी जाती है या किसी लड़के के साथ भाग जाती हैं. मेरी शादी का भी मां दबाव बना रही थीं. तभी हमारी मुलाकात बस्ती में बच्चों को फ्री एजुकेशन देने वाले एक सर से हुई. सर ने मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. मैं मलिन बस्ती में ही चलने वाली कक्षा में पढ़ने लगी.

उन्होंने कम उम्र में शादी के नुकसान और पढ़ने-लिखने के बाद शादी के फायदे बताए. मैंने तभी से ठान लिया कि पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होकर ही शादी करूंगी. मां को बहुत समझाया तो वो मान गईं. प्रीति अब मलिन बस्ती के बच्चों को फ्री खुद पढ़ा रही हैं. प्रीति कहती हैं कि हमारे जैसे बच्चे हैं. हमारी ही बस्ती के हैं उनकी जिंदगी में अगर हमारे नाते थोड़ा भी परिवर्तन हो सके तो मैं समझूंगी कि हमने समाज के लिए कुछ किया. भटके बच्चों की काउंसिलिंग भी सर की मदद से हम करते हैं, ताकि वे सुधर सकें. प्रीति अब ग्रेजुएशन के बाद बैंक और एसएससी की तैयारी कर रही हैं. हालांकि प्रशासनिक सेवा में आकर देश के लिए भी प्रीति कुछ करना चाहती है.

 

 

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