कलयुग है इसलिए दिव्य दृष्टि छोड़िए, सामान्य दृष्टि से भी वंचित रह गए “संजय” !
महाभारत के संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। घटनास्थल पर बिना पहुंचे ही वह वहां का आंखों देखा हाल बयां कर देते थे, लेकिन कलियुग के इस कुम्भ में कुछ संजय ऐसे भी हैं जो दिव्य दृष्टि तो छोड़िए, सामान्य दृष्टि से भी वंचित नजर आते हैं। नाम के संजय, पर व्यवहार से धृतराष्ट्र! महाकुम्भ में मीडिया कर्मियों के साथ हो रही अभद्रता, मारपीट, और दुर्व्यवहार पर इन संजय की दृष्टि नहीं जाती।
पुलिस जब पत्रकारों से सरेआम दुर्व्यवहार करती है, तो संजय जी कट्टी साध लेते हैं—शायद किसी नई प्रेस विज्ञप्ति के शब्दों को सजाने में !
बाहुबली फिल्म में महिष्मति साम्राज्य से भी ज्यादा सुरक्षित व्यवस्थाओं का डंका बजाने वाले बाहुबली ( संजय ) जब धरासाई हुए तो मीडिया के मुंह पर टेप लगाने में जुट गए।
महाकुम्भ के दिव्य आयोजन में पुलिस की गालियां/ दुर्व्यवहार पिछले तीन दिनों से ‘प्रसाद’ बन चुकी हैं और पत्रकारों के लिए नियम-कानून ‘कड़ाही में तली गई कचौड़ी’—जो दिखेगी तो खस्ता, पर भीतर से खोखली होती है।
सूपे सलाहकारों से लेकर कुलीन जिम्मेदारों तक मुख्यमंत्री जी की छवि की रक्षा का भार उठाने वाले सिर्फ अपनी ऊंची कुर्सी बचाने में लगे हैं। शायद यही वजह है कि वह पत्रकारों को भी शुद्धि स्नान करा रहे हैं—बस तरीका थोड़ा लाठी-प्रेरित प्रसाद सरीखा हो गया है!
महाभारत के संजय युद्ध का यथार्थ वर्णन करते थे, लेकिन कुछ संजय तो….चटार्थ में लगे हैं! चटार्थ यानी चाटुकारिता का महायज्ञ, जिसमें सच की आहुति देकर सिर्फ जयकारे की ध्वनि गूंजती है। कुछ कुलीन लोग मुख्यमंत्री जी को कुम्भ का सच दिखाने के बजाय उनके सामने एक स्वर्णिम चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं—जिसमें अव्यवस्था भी ‘व्यवस्था’ दिखती है,
लाठीचार्ज ‘संयमित नियंत्रण’! मुख्यमंत्री जी अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि महाकुम्भ का आयोजन भव्य और अनुशासित हो, लेकिन उनके इर्द-गिर्द बैठे ये संजय दिव्य दृष्टि की जगह ‘रंगीन चश्मा’ लगाए घूम रहे हैं। पत्रकारों पर पुलिस जुल्म कर रही हैं, लेकिन संजय की रिपोर्ट में लिखा जाता है—“मीडिया के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था”। अव्यवस्था चरम पर है, लेकिन संजय जी की दृष्टि वहां तक पहुंचने से पहले ही ‘दिव्य रूप’ देख लेती है।
अब सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री जी तक कभी वास्तविकता पहुंचेगी? या फिर यह चटार्थ जारी रहेगा, और संजय अपनी दिव्य दृष्टि को जेब में रखकर ‘आल इज वेल’ का कीर्तन करते रहेंगे? अगर यही हाल रहा तो न योगी जी की मेहनत दिखेगी, न उनकी सख्ती का असर रहेगा। उल्टा, इन संजयों की कृपा से उनकी सारी कोशिशें धूल में मिल जाएंगी।
राजा को अगर असली हाल जानना है, तो संजय को छोड़कर खुद कुरुक्षेत्र में उतरना होगा, वरना एक दिन जब सच सामने आएगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ! बहरहाल सवाल यह है कि यह अंधत्व कब तक चलेगा? क्या कुम्भ समाप्ति के बाद भी संजय अपनी दृष्टि लौटने का इंतजार करेंगे, या फिर इस अव्यवस्था की गंगा में हाथ धोने वालों की सूची में एक और नाम जोड़ लिया जाएगा। अब माफ भी कर दो भाई
डॉ सुयश नारायण
पत्रकार, शोधार्थी
निर्वाचित सदस्य, उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति