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जैन समुदाय ने सातवें दिन उत्तम तप धर्म की पूजा की

घिरोर,जैन समाज के पर्युषण पर्व के सातवें दिन सोमवार को जैन समाज के लोगों की ओर से त्याग, तप, उपासना तपस्या का दौर जारी है। पर्व के सातवें दिन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ रही मंदिर में पर्युषण पर्व के दौरान पूजन, अभिषेक, प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जा रहे है सुबह श्रीजी का पंचामृत महाभिषेक हुआ।नित्य नियम की संगीतमय पूजा शुरू हुई। संगीतमय पूजा के दौरान श्रृद्धालुओं ने नृत्य के साथ जमकर भक्ति की।

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उत्तम तप का मतलब होता है जिस तरह से स्वर्ण पाषाण में स्वर्ण छिपा होता है, तिल के अंदर तेल व्याप्त होता है, उसी प्रकार देह में आत्मा विद्यमान है। उस आत्मा की अभिव्यक्ति ही परमात्मा की उपलब्धि है और यही धर्म साधना का मूल ध्येय है। स्वर्ण पाषाण को अग्नि में तपाया जाता है, तब उसका शुद्ध स्वरूप निखर उठता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति तप अनुष्ठान करता है, उसकी आत्मा कुंदन बन जाती है। अपने भीतर छिपी शक्ति को पहचानने की प्रत्येक प्राणी में अपार क्षमता है, उसकी अभिव्यक्ति तपस्या के बल पर होती है। बुरे कर्मो की निर्जरा (नाश) के लिए की गई क्रिया ही तप है। यानी आत्मा में एकत्र कषाय का विसर्जन करना उत्तम तप है।शाम को मंदिर में श्री जी की आरती,भजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते है इस मौके पर समस्त जैन समाज के लोग मौजूद रहे|

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