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आत्मनिर्भरता ही आजादी

देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक लालकिले की प्राचीर से संबोधित किया। यह एक औपचारिक परंपरा है, लेकिन देश के भीतर आजादी और एकजुटता के एहसास को पुख्ता करती है। जज़्बे और जुनून को जिंदा रखती है, लिहाजा यह दिन और संबोधन दोनों ही हमारे लिए पावन स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। अक्सर प्रधानमंत्री लालकिले से किसी नई योजना, नई नीति या नए कार्यक्रम की घोषणा करते हैं। उसकी अवधि भी देश को बताई जाती है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री ने कोई नई घोषणा नहीं की। नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की बात पुरानी है। ऑप्टिल फाइबर नेटवर्क का काम पहले से ही जारी है और करीब 1.5 लाख पंचायतों तक पहुंच चुका है। प्रधानमंत्री ने इतना आश्वासन जरूर दिया कि आगामी 1000 दिनों में शेष छह लाख गांवों और लक्षद्वीप को भी इस नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। कोरोना टीके का लक्ष्य 15 अगस्त के लिए तय किया गया था, लेकिन वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और शोधार्थियों ने जल्दबाजी पर सवाल उठाए, तो घोषणा को वैज्ञानिकों की हरी झंडी के हवाले कर दिया गया।

अलबत्ता प्रधानमंत्री ने माना कि कोरोना हमारी आत्मनिर्भरता के लिए सबसे बड़ा सबक साबित हुआ है। बहरहाल सीमावर्ती और तटीय इलाकों में एनसीसी के एक लाख कैडेट्स तैयार करने और उन्हें प्रशिक्षण देने का ऐलान किया गया है, ताकि वे सेनाओं में सेवा देने के योग्य बन सकें। इनमें एक-तिहाई लड़कियां भी होंगी। प्रधानमंत्री की इस घोषणा में कुछ नवीनता है, लेकिन यह राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं है, लिहाजा उसे लालकिले से की गई नई, ऐतिहासिक घोषणाओं की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी के 86 मिनट के संबोधन का इस बार थीम रहा-आत्मनिर्भरता। उन्होंने बार-बार आत्मनिर्भर भारत, आत्मविश्वास, सक्षम और सशक्त भारत की बात कही। प्रधानमंत्री की व्याख्या थी कि आत्मनिर्भरता ही सच्ची आजादी है। स्वतंत्र भारत की उम्र 73 साल हो चुकी है। वैसे तो यह बुढ़ापे की उम्र है, लेकिन आजादी के बाद का इतना कालखंड भी, सब कुछ हासिल करने के मद्देनजर, पर्याप्त नहीं है। फिर भी भारत अपने क्षेत्र का ‘सिकंदर’ है। उसने बार-बार अंतरिक्ष में दस्तक दी है, सूचना प्रौद्योगिकी में विश्व में अव्वल है, खाद्यान्न में स्वावलंबी है, व्यापक स्तर पर निर्यात करता है, कोयला उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है, मिसाइल अनुसंधान और विकास को लेकर कई ‘मील-पत्थर’ स्थापित कर चुका है, परमाणु शक्ति संपन्न देश है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का निर्वाचित सदस्य भी है। आजाद और आत्मनिर्भर भारत की उपलब्धियां एक आलेख का विषय नहीं हो सकतीं। इस्पात, एल्यूमीनियम, जूते, फर्नीचर, चमड़ा और एयर कंडीशनर सरीखी वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाना है, ताकि हम आत्मनिर्भर हो सकें। इनके अलावा लिथियम बैटरी, एंटीबॉयोटिक्स, पेट्रोकेमिकल, ऑटो, मोबाइल पार्ट्स, खिलौने, टीवी सेट, खेल के सामान आदि उत्पादों की लंबी सूची है, जिनमें आत्मनिर्भर होने की शुरुआत की गई हैं। आत्मनिर्भर भारत और नई रणनीति के तहत भारत की नजर चीन से निकलने वाली कंपनियों को आकर्षित कर ‘ग्लोबल सप्लाई चेन’ बनने की है। करीब 300 कंपनियों से भारत सरकार की बातचीत जारी है।

प्रधानमंत्री का कहना है-हम कब तक कच्चा माल बाहर भेजकर तैयार वस्तुओं का आयात करते रहेंगे? लिहाजा ‘मेक इन इंडिया’ को पुख्ता किया जाए और इसे विस्तार देकर ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ का नारा दिया जाए। प्रधानमंत्री ने देश को बताया कि कोरोना काल होने के बावजूद देश में विदेशी निवेश की रिकॉर्ड 18 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। जाहिर है कि दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत की ओर देख रही हैं और यहां आकर व्यापार करना चाह रही हैं। प्रधानमंत्री के संबोधन में यह संदेश भी निहित था कि देश का आयात बिल कम किया जाए। ऐसा करने से ही हम आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ सकते हैं। आत्मनिर्भरता सिर्फ कारोबार और बाजार तक ही सीमित नहीं है। प्रधानमंत्री इसे एक शब्द के बजाय जीवन-मंत्र मान चुके हैं। जब उन्होंने चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही चेतावनी दी कि भारत की संप्रभुता पर किसी की आंख उठी, तो उसका जवाब उसी की भाषा में दिया जाएगा, तो ऐसा सामर्थ्य आत्मनिर्भर देश ही दिखा सकता है। प्रधानमंत्री ने प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण की शुरुआत और नए कश्मीर के भी जिक्र किए, लेकिन सकारात्मक यह रहा कि उन्होंने जीत या हार के भाव नहीं दिखाए, बल्कि शांति, समरसता और सद्भाव की बात कही और उनकी महत्ता पर फोकस करते हुए कहा कि एक आत्मनिर्भर देश के लिए ऐसी संतुलित सामाजिक स्थितियां बेहद जरूरी हैं। प्रधानमंत्री का यह संबोधन भी देशव्यापी माना जाना चाहिए, क्योंकि वह सभी को जोड़ने की बात भी कर रहे हैं।

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