अंतराष्ट्रीय

पाकिस्तानी जेल(Pakistani jail. ) में  यातना, कई कैदी पागल हो गए

जम्मू. भारतीय कैदियों के साथ बर्ताव को लेकर पाकिस्तान की जेलें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. पाकिस्तान की कोट लखपत जेल तो पहले से चर्चा में है. जेल की क्षमता 4 हजार कैदियों की है, लेकिन वर्तमान में इसमें 17 हजार कैदी हैं. पहले चमेल सिंह और फिर सरबजीत सिंह, दोनों भारतीय कैदियों की हमला कर हत्या कर दी गई. दोनों की मौत के बाद कोट लखपत जेल में बंद 36 अन्य भारतीय कैदी बेहद डरे हुए हैं. अब हाल ही में गोरा जेल से रिहा हुए शंभुनाथ की चर्चा हो रही है. जम्मू के रहने वाले शंभुनाथ गलती सीमा पार कर गए थे. वहां पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें पकड़ लिया और गोरा जेल में कई सालों तक हर रोज यातनाएं दी.

13 साल 6 महीने जेल में काटने के बाद शंभुनाथ रिहा हो पाए हैं. उन्होंने अपनी रिहाई के बाद पाकिस्तान के जेलों (Pakistani jail. ) की खौफनाक कहानी शेयर की है. उनके मुताबिक, जेल में ऐसी यातनाएं दी गई कि इससे 12 कैदियों का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है. वे सभी मानसिक अस्पताल में भर्ती हैं. वहां चार महिला कैदी भी हैं, उनके हाल के बारे में कहा नहीं जा सकता.
भारत में सीमा पार आए आतंकी अगर घायल है, तो भी हमारी सेना उसे खून देकर उसकी जान बचाती है. हाल ही में नौशेरा से सीमा पार करके आए तबरक हुसैन को घायल अवस्था में राजौरी के सेना अस्पताल भर्ती कराया गया. वहीं, पाकिस्तान की बात ही कुछ और है. वहां जेल में भारतीय कैदियों से बाकी कैदी नफरत करते हैं और उनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता है. गोरा जेल में बंद रहे शंभूनाथ के साथ ऐसा ही हुआ था.आर एस पुरा सेक्टर से सीमा पार चले गए थे शंभुनाथ
जम्मू से मात्र 10 किलोमीटर दूर सिंबल गांव में 85 वर्षीय सत्या देवी अपने बेटे शंभुनाथ को जिंदा देखकर बेहद खुश हैं. शंभुनाथ 13 साल तक पाकिस्तान की जेल में बंद थे. इस दौरान पिता की मौत हो गई. बहन भी चल बसी. दरअसल, शंभुनाथ साल 2009 में गलती से आर एस पुरा सेक्टर से सीमा पार कर गए थे. पाकिस्तान रेंजर्स ने उन्हें पकड़ लिया. उसे पहले गोरा जेल के इंटैरोगेशन रूम में लगभग डेढ़ साल कैद रखा. यहां अंधेरे कमरे में रोज पिटाई की और तमाम तरह की यातनाएं दीं.

शंभुनाथ ने बताया- ‘मैं गलती से 13 साल पहले सीमा पार कर गया था. मुझे सबसे पहले सियालकोट की गोरा जेल मे डेढ़ साल तक रखा गया. बंद कमरा, जहां घनघोर अंधेरा रहता था. वहां मारपीट और यातनाएं सहनी पड़ी. वहां मुझे सिर्फ दिन में एक बार खाना दिया जाता था. एक रोटी और दाल. बस… और कुछ नहीं.’ वह आगे बताते हैं, ‘डेढ़ साल बाद मुझे कोटलखपत जेल में शिफ्ट किया गया. यहां तो और भी बुरा हाल था. जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता था.’ शंभुनाथ आगे कहते हैं, ‘सरबजीत सिंह की मौत के बाद पाकिस्तान की जेलों में थोड़ा फर्क जरूर आया है.

वहीं, शंभुनाथ की मां सत्या देवी ने बताया, ‘मैं बहुत खुश हूं. मेरा बेटा मेरे पास लौट आया है. मैंने तो सोचा था कि ये वहां मर गया होगा. मैं भगवान से और माता रानी का शुक्रिया अदा करती हूं. इसके पिता नहीं रहे. वह बेटे का इंतजार करते ही इस दुनिया से चले गए. इसकी बहन भी नहीं रही. अब मेरे पास सिर्फ ये है. इसे मैं कहीं नहीं जाने दूंगी.’

 

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