अंतराष्ट्रीय

सूर्य में अथाह गर्मी से हाइड्रोजन के परमाणु टूटते

नई दिल्ली : शनिवार की रात लद्दाख से लेकर अमेरिका के आसमान तक कुछ ऐसा हुआ, जो सबको हैरान कर रहा है. कुदरत ने जैसे अपना इंद्रधनुष रचा, या फिर होली खेली. सोशल मीडिया पर रंग बिरंगी रोशनी से नहाए आसमान की तस्वीरें और वीडियो वायरल हैं. यह क्या करिश्मा है? हर किसी की जुबान पर यही सवाल है. दरअसल यह सोलर स्टॉर्म यानी सौर तूफान है. आखिर अंतरिक्ष की गहराइयों में यह तूफान उठता कैसे है, जिसकी रंगीन रोशनी में पूरा आसमान नहा जाता है? यह जानने के लिए हमने जाने विज्ञान लेखक देवेन मेवाड़ी से बात की. विज्ञान को बेहद सहज और रोचक तरीके से समझाने में माहिर मेवाड़ी ने अंतिरक्ष के इस रहस्य से पर्दा उठाया. उन्हीं के शब्दों में अंतिरक्ष की इस पूरी करामात को समझिए…

सौर तूफान का रिश्ता सीधे जुड़ता है सूरज से. सूरज की सबसे बाहरी परत, जो एक चमकती हुई तश्तरी जैसी दिखती है, उसका तापमान करीब 5 हजार डिग्री सेल्सियस होता है. जबकि सूर्य के केंद्र का तापमान कई गुना ज्यादा करीब डेढ़ करोड़ डिग्री सेल्सियस तक होता है.

सभी जानते हैं सूरज गैसों का गोला है. कुछ भी चीज उसमें ठोस होती नहीं है. इसकी तुलना कुछ हद तक परमाणु भट्टी से हो सकती है. लेकिन यहां प्रक्रिया न्यूक्लियर फ्यूजन की होती है. सूरज पर 92 फीसदी हाइड्रोजन गैस है. अथाह गर्मी से हाइड्रोजन के परमाणु टूटते रहते हैं और हिलियम बनती रहती है. परमाणुओं के टूटने और हिलियम के बनने में असीम ऊर्जा मुक्त होती है. यह ऊर्जा ही चारों तरफ फैलती है, जिससे धरती पर गर्मी मिलती है.

एक सेकेंड में चार करोड़ टन ऊर्जा होती है मुक्त
सोलर फ्लेयर्स या सौर ज्वालाएं इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उठती हैं. यह कुछ ऐसा ही होता रहता है जैसे कड़ाही में हलुआ बनने के दौरान बुलबुले उठकर फटते हैं. वैसे ही सूरज में यह प्रक्रिया चलती रहती है. सौर ज्वालाएं आगे को निकलती हैं. इन ज्वालाओं से अथाह गर्मी निकलती है. इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि एक सेकेंड में चार करोड़ टन ऊर्जा मुक्त होती है.
हाइड्रोजन के हिलियम में बदलते की इस प्रक्रिया में उठने वालीं यह सौर ज्वालाएं लाखों किलोमीटर लंबी होती हैं. यह बड़ी दिलचस्प बात है कि हर 11 साल में सौर ज्वालाएं बढ़ जाती हैं. यह हैरत की बात है कि करीब हर 11 साल में यह घटना होती रहती है. यह अंतरिक्ष का अबूझा रहस्य है. इन फ्लेयर्स, यानी ज्वालाओं के बढ़ने की तीव्रता का असर हमारे संचार सिस्टम को भी प्रभावित करता है. संचार सैटलाइट की वर्किंग पर इसका असर देखा जाता है. इन सौर ज्वालाओं की चमक से ही आसमान में रंगीन रोशनी देखी जाती है.

पृथ्वी के संचार नेटवर्क में बाधाएं आने की आशंका
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, इस महत्वपूर्ण खगोलीय घटना में सौर ज्वालाओं और कोरोनल मास इजेक्शन की एक सीरीज ने आसमान को चकाचौंध कर दिया है. इसका प्रभाव संभवतः उत्तरी गोलार्ध में दूर तक हो रहा है. हालांकि, भले ही यह तड़के की लुभावनी रोशनी की तरह है लेकिन इसके साथ-साथ इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई है कि इससे पृथ्वी के संचार नेटवर्क में व्यवधान आ सकते हैं.

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के स्पेस वेदर प्रिडिक्शन सेंटर के मुताबिक, इस तरह का दुर्लभ सौर तूफान अक्टूबर 2003 में देखा गया था. यह एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना थी. मौजूदा सोलर स्टॉर्म अक्टूबर 2003 के बाद आए “हैलोवीन तूफान” के बाद दूसरा सबसे बड़ा तूफान है. हैलोवीन के चलते स्वीडन में ब्लैकआउट हो गया था. इसके कारण दक्षिण अफ्रीका में ग्रिड भी ठप हो गए थे.
सबसे ताकतवर सौर तूफान सन 1859 में पृथ्वी से टकराया था. इसे कैरिंगटन इवेंट नाम दिया गया था. इस तूफान के कारण संचार लाइनें पूरी खराब हो गई थीं.

ट्रांसफार्मर इस तरह की सौर घटना का सामना करने में सक्षम नहीं
सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विज्ञानी बिल नी ने हमारे तकनीक पर निर्भर समाज पर सौर तूफान के होने वाले असर को लेकर आशंका जताई है. उन्होंने सन 1859 के कैरिंगटन इवेंट से इसकी तुलना करते हुए बिजली और इलेक्ट्रॉनिक्स पर हमारी भारी निर्भरता से पैदा होने वाले जोखिम पर जोर दिया. उन्होंने बाधाएं पैदा होने पर संभावित प्रभावों को भी रेखांकित किया.
सौर तूफान से बचाव के मौजूदा उपायों के बावजूद बिल नी ने आगाह किया कि सभी इन्फ्रास्ट्रक्चर, खास तौर पर ट्रांसफार्मर, इस तरह की सौर घटना से होने वाले असर का सामना करने में पर्याप्त सक्षम नहीं हो सकते हैं, जिससे अप्रत्याशित जटिलताओं की गुंजाइश रहती है.

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