अमृतसर :पंजाब के अमृतसर के बड़ा हनुमान मंदिर में हर वर्ष की तरह लगने वाला विश्व प्रसिद्ध लंगूर मेला नवरात्र के पहले दिन से शुरू हो गया। इस मेले में नवजात शिशु से लेकर नौजवान तक लंगूर बनते (लंगूर बनकर ) हैं और पूरे 10 दिनों तक ब्रह्मचर्य व्रत के साथ-साथ पूरे सात्विक जीवन को व्यतीत करते हैं। इस दस दिवसीय व्रत का अंत दशहरे वाले दिन होता है।
कहा जाता है कि इस मंदिर में जो हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है, वह अपने आप ही यहां पर प्रकट हुई थी। इसके बारे में कहा जाता है कि जब श्री राम ने सीता माता को एक धोबी के कटाक्ष पर वनवास के लिए भेज दिया था तो उन्होंने उस समय महर्षि वाल्मिकी के आश्रम में पनाह ली थी और वहीं पर अपने दो पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया था। इस बीच श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ करवाया और अपना घोड़ा विश्व को विजय करने के लिए छोड़ दिया जिसे इसी स्थान पर लव और कुश ने पकड़कर बरगद के पेड़ के साथ बांध दिया था।
लंगूर क्यों बनते हैं बच्चे?
जब हनुमान जी लव और कुश से घोड़ा आजाद करवाने के लिए पहुंचे तो उन दोनों ने उन्हें भी बंदी बना लिया और इसी स्थान पर हनुमान जी को बैठा दिया। इसके बाद से ही यहां पर श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्वयं प्रकट हो गई। ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इस हनुमान मंदिर से अपने मन की मुराद मांगता है, वह पूरी हो जाती है। मांगी गई मुराद पूरी होने पर इन नवरात्रों में वह व्यक्ति बच्चों को लंगूर का बाना पहनाकर यहां हर रोज सुबह-शाम मत्था टेकने के लिए लाता है।
हर साल लगता है लंगूर मेला
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी लंगूरों का मेला बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसके लिए खास तौर पर लोगों में उत्साह देखने को मिलता है और जिनकी मुरादें पूरी होती है, वे यहां पर माथा टेकने के लिए जरूर पहुंचते हैं। जिनकी मुरादें पूरी हुई और हनुमान जी ने जिन्हें पुत्र की दात बख्शी वे अपने बच्चों को लेकर आज यहां लंगूर वेश में लेकर आए और मत्था टेका। हालांकि लंगूर बनने के समय और लगभग सभी नवरात्रों में उन्हें कुछ नियमो के पालन करने पड़ते हैं जैसे वह प्याज नहीं खा सकते, कटी हुई चीज नहीं खानी है और नंगे पांव ही रहना है। ये सब नियमो की पालना करने पर ही उनकी मन्नत पूरी होती है।