कैसा था रजनीश (Rajneesh)से ओशो बनने तक का सफर

आचार्य रजनीश . जिन्हें उनका चाहने वाले ओशो (Rajneesh) के नाम से ज्यादा पुकारते हैं. भारतीय सन्यासी और धर्म गुरू थे. जो अपने गैर परंपरावादी विचारधारा के लिए ज्यादा जाने जाते हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वे तार्किक रूप से इतने सशक्त थे कि कोई भी सामान्य व्यक्ति उन्हें सुनने के बाद उनका मुरीद हुए बिना नहीं रह पाता था. लेकिन अपनी स्वतंत्र और सशक्त आध्यात्मिकता के बाद भी उनका कम विरोध नहीं हुआ, बल्कि वे खुद बहुत बड़े विरोधी के तौर पर भी देखे जाते रहे. 11 दिसंबर को उनकी जन्मतिथि है.
नानी ने नहीं थोपा था कुछ
चंद्रमोहन जैन जिन्हें बाद में रजनीश नाम से जाना जाने लगा था, का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा में हुआ था. वे एक कपड़े व्यापारी बाबूलाल जैन की 11 संतानों में सबसे बड़े थे. बचपन के शुरुआती आठ साल उन्होंने अपने नाना के यहां गुजारे थे. खुद रजनीश ने बताया था कि उनकी नानी ने उन्हौंने की तरह की शिक्षा या बंधनों को नहीं थोपा था जिसका उनके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा था.
बहस करने वाले छात्र
नानी के निधन के बाद रजनीश अपने मातापिता के यहां गाडरवारा आ गए, जहां स्कूल में वे बड़ा तार्किक तौर पर वाद विवाद करने वाले छात्र के रूप में प्रसिद्ध हुई. उनका शुरू से ही रहस्यवादी दर्शन आदि में झुकाव था और वे काफी योग ध्यान के मामले में शुरू से ही प्रयोगवादी भी पाए गए थे. इसके साथ ही उन्हें पढ़ने का भी बहुत शौक था. उन्होंने कार्ल मार्क्स और एजेंल को कम उम्र में ही पढ़ लिया था.
सेहत और विचारधारा
स्कूल के दिनों में रजनीश खुद की सेहत पर खूब ध्यान रखते थे. खेलकूद, तौरकी, योगा आदि में भी सक्रिय रहते थे. स्कूल के ही दिनों में उन्हें कम्युनिस्ट यानि साम्यवादी विचारधारा का और धर्म विरोधी माना जाने लगा था. उन्होंने कुछ दोस्तों का एक समूह भी बना लिया था जिसमें पर ज्यादा चर्चाएं हुआ करती थी. 19 साल की उम्र में उन्होंने जबलपुर के हितकरणी कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन शिक्षक से विवाद होने पर वे डीएन जैन कॉलेज में स्थानांतरित कर दिए गए.
आध्यात्मिक जागृति की प्राप्ति
कॉलेज में बहसबाज होने के कारण रजनीश को कक्षाओं से उपस्थिति से छूट मिल गई थी. इस समय का उपयोगक करते हुए उन्होंने कुछ महीने के लिए एक अखबार में सहायक संपादक की नौकरी की. इसी बीच उन्होंने सार्वजनिक भाषण भी शुरू कर दिए थे. उन्हें 21 मार्च 2023 को आध्यात्मिक जागृति की प्राप्ति हुई थी और उन्हें जबलपुर के भंवरताल बगीचे में एक पेड़ के नीचे कुछ रहस्यमयी अनुभव हुए थे.
भारत भ्रमण और आचार्य के रूप में लोकप्रियता
फिसॉलिफी में एमए की डिग्री के बाद वे पहले रायपुर और फिर जबलपुर में फिसॉलिफी प्रोफेसर बने और छात्रों के साथ वे अपने साथियों में भी काफी बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते थे. नौकरी के साथ उन्होंने भारत भ्रमण जारी रखा और धीरे धीरे उनकी आचर्य रजनीश के रूप में पहचान बनाने लगी. 1966 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और भारत में भ्रमण पर निकल गए. उन्होंने अपने भाषणों में परंपरागत धार्मिकता, समाजवाद, गांधीवाद, प्रमुख राजनैतिक विचारधाराओं, सभी की तार्किक आलोचना की.
1970 में उन्होंने अपने अनुयायियों केलिए नव सन्यासी कार्यक्रम शुरू किया. और फिर तार्किक क्षमता के जरिए सभी तरह की विचारधाराओं को खारिज किया और अपने लिए बड़ी संख्या में अनुयायी बनाए और 1974 में पुणे में अपने लिए आश्रम खोला जहां कई तरह की थेरेपी आदि शुरू की. जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद 1980 में वे अमेरिका चले गए.
अमेरिका में आचार्य रजनीश ने ओरेगॉन की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की. जहां उनके बहुत ज्यादा तेजी से अनुयायी बढ़ने लगे. 1985 में उन्हें अमेरिका से निर्वासित किया जिसके बाद वे भारत आए लेकिन एक साल कई देशों मे जाने के बाद वे अंततः पुणे लौट आए और उन्हें वहां ध्यान की विधियां अपने अनुयायियों को बतानी शुरू की. 1988 के बाद वे जेन विचारधारा पर ज्यादा बोलने लगे और इसी वजह से उनके अनुयायी उन्हें ओशो के नाम से पुकारने लगे. पुणें में 19 जनवरी 1990 को उनका निधन