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बिहार मतदाता सूची विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, याचिकाकर्ता बोले- यह मनमाना और भेदभावपूर्ण !

बिहार-: बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आयोग 30 दिनों की समय-सीमा में पूरी मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कर रहा है और मतदाता परिचय पत्र को छोड़कर केवल 11 दस्तावेज ही स्वीकार कर रहा है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ सुनवाई कर रही है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, 1950 के अधिनियम और मतदाता पंजीकरण नियमों के तहत 2 प्रकार के संशोधनों की अनुमति है- गहन और संक्षिप्त संशोधन। गहन पुनरीक्षण एक नई प्रक्रिया है और बिहार के 7.9 करोड़ लोगों को इससे गुजरना होगा। विशेष गहन पुनरीक्षण न तो कानून में है, न ही अधिनियम या नियमों में। यह भारत के इतिहास में पहली बार किया जा रहा है। जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह तो संविधान के प्रावधानों के अनुसार है। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि वह कुछ गलत कर रहा है? इस पर वकील शंकरणारायणन ने कहा, इस प्रक्रिया में 4 स्तरों पर संवैधानिक और कानूनी उल्लंघन हो रहे हैं। निर्देशों में कुछ खास वर्ग के लोगों को इस संशोधन प्रक्रिया से बाहर रखा गया है, जो असंवैधानिक है। एसआईआर का कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले प्रक्रिया किए जाने पर सवाल उठाए। आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता न देने को लेकर भी कोर्ट ने आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा, अगर मतदाता सूची में किसी शख्स का नाम सिर्फ नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेंगे यो फिर ये बड़ी कसौटी होगी। यह गृह मंत्रालय का काम है, आप उसमें मत जाइए। उसकी अपनी एक न्यायिक प्रक्रिया है, फिर इस कवायद का कोई औचित्य नहीं रहेगा। कोर्ट ने पूछा, क्या चुनाव आयोग जो सघन परीक्षण कर रहा है वो नियमों में है या नहीं? और ये सघन परीक्षण कब किया जा सकता है? ये आयोग के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं? इस पर वकील शंकरणारायणन ने सहमति जताई, लेकिन तरीके पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, 2003 से पहले वालों को केवल फॉर्म भरना है। उसके बाद वालों को दस्तावेज देने हैं। यह बिना किसी आधार के किया गया है। कानून इसकी अनुमति नहीं देता।

चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाताओं से जन्म के साल के आधार पर अलग-अलग दस्तावेज जमा करने को कहा है। अगर ऐसा नहीं किया जाएगा, तो मतदाता का नाम सूची से हटाया जा सकता है। आयोग का कहना है कि 2003 के बाद से मतदाता सूची की समीक्षा नहीं हुई है, इसलिए ऐसा किया जा रहा है। वहीं, विपक्ष का कहना है कि ये गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाताओं से वोट डालने का हक छीनने की साजिश है।

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