हाथरस मामले ने बेजान पड़े रालोद में फूंकी जान
लखनऊ। हाथरस मामले में पुलिस दुर्व्यवहार की एक घटना ने बेजान पड़े राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में केंद्र पर लाकर खड़ा कर दिया है। राज्य में मंगलवार और बुधवार को मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बुलंदशहर, अलीगढ़ और बिजनौर जिलों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और वहीं मुजफ्फरनगर में गुरुवार को एक महापंचायत का आयोजन होगा।
रालोद नेता जयंत चौधरी सहित एक प्रतिनिधिमंडल के हाथरस पीड़ित परिवार से मिलने जाने के दौरान सोमवार को पुलिस ने नेता और उनके कार्यकतार्ओं को लाठियों से पीटा। चौधरी पत्रकारों से बात कर रहे थे तभी पुलिसकर्मियों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया।
इस घटना से जाट समुदाय में नाराजगी फैल गई, और वे इसे अपने सामुदायिक पहचान और सम्मान पर हमले के रूप में देख रहे हैं। मेरठ में सोमवार को पुलिस के खिलाफ गुस्साए सैकड़ों रालोद कार्यकर्ता एकत्रित हुए और सरकार की पुलिस ज्यादती के खिलाफ नारेबाजी की। हमले का विरोध करते हुए कार्यकतार्ओं ने सड़क को अवरुद्ध करने के साथ मुख्यमंत्री का पुतला जलाया।
बिजनौर में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व जिला प्रमुख राहुल चौधरी और राज्य सचिव प्रवीण देशवाल ने किया, जबकि पड़ोसी अमरोहा में राज्य महासचिव रामवीर सिंह के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकतार्ओं ने धरना प्रदर्शन किया। दोनों जिलों में समर्थकों ने मुख्यमंत्री के पुतले भी जलाए।
एक वरिष्ठ राजनीति विश्लेषक ने कहा, हालिया सालों में रालोद पूरी तरह से अलग-थलग हो गई थी। इसके अध्यक्ष अजीत सिंह रिटायरमेंट मोड में चले गए हैं। पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में एक सीट जीती और 2019 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी। उन्होंने आगे कहा, हालांकि हाथरस की घटना ने जयंत चौधरी को फिर से सुर्खियों में ला दिया है और यह भी साबित कर दिया है कि हालिया वर्षों में पार्टी के अलग-थलग पड़ने के बावजूद जाट रालोद के साथ हैं।
क्षेत्र में देर शाम गुरुवार को होने वाली महा-पंचायत को विभिन्न खापों ने अपना समर्थन दिया है। आयोजन में कृषि बिल और उनकी समस्याओं से संबंधित मुद्दों को भी उठाया जाएगा। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, जद (एस) के नेताओं की महा-पंचायत में शामिल होने की संभावना है, साथ ही हरियाणा के किसानों की बड़ी संख्या भी उपस्थित हो सकती है। लखनऊ में रालोद के एक नेता ने कहा, अगर यह महापंचायत सफल हो जाती है, तो यह रालोद को फिर से पटरी पर ला देगी और हमारे कैडर 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रेरित होंगे।