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दुर्दशा सरकारी जूनियर हाई स्कूलों की-जिम्मेदार बने मौन

इंस्पायर एवार्ड में कैसे हो बच्चों के नामांकन-शिक्षक निभा रहे कई-कई ड्यूटी
लखनऊ। राजधानी में सरकारी प्रायमरी एवं जूनियर हाई स्कूलों की जो दुर्दशा है उससे सभी वाकिफ है। कही पढऩे वाले बच्चे नहीं है तो कही पढ़ाने वाले अध्यापक नही है और जहॉ दोनो है तो शिक्षक बच्चों की कापी-किताबे, ड्रेस एमडीएम का पैसा घर-घर बॉट रहे है। उससे बचे तो विभाग ने कोविड में ड्यूटी लगा रखी है। संडे तक की छुट्टी शिक्षकों को नहीे मिल पा रही है। राजधानी लखनऊ में कुल 472 पूर्व माध्यमिक विद्यालय जूनियर हाई स्कूल संचालित है। परन्तु इनमें से केवल दो को छोड़कर बाकी अन्य 470 विद्यालयों ने भारत सरकार की इंस्पायर एवार्ड मानक-2020-21 में तीन महीने की समयावधि बीत जाने के बाद और अंतिम तिथि बढ़ा कर 15 अक्टूबर कर दिये जाने के बाद भी अपने स्कूल के बच्चों का नामांकन नहीं कराया। कोविड महामारी के चलते और अभी तक स्कूलों के बन्द रहने के बाद भी मण्डलीय विज्ञान प्रगति अधिकारी डा0 दिनेश कुमार के अथक प्रयासों से पूरे प्रदेश में लखनऊ मंडल पहले स्थान पर आ गया। उन्होने बताया कि गत वर्ष लखनऊ के 156 विद्यालयों सेें 552 नामांकन की तुलना में इस बार रिकार्ड 185 विद्यालयों से 664 नामांकन दोपहर तक हुये है। हालांकि प्रदेश में गतवर्ष 6887 नामांकन हुये थे। इस बार प्रदेश में कुल नामांकन पिछली बार की तुलना में कम हुये है परन्तु लखनऊ ने पिछला रिकार्ड तोड़ दिया है। गरीब संवर्ग के बच्चों के लिये भारत सरकार की इस प्रतियोगिता में वही बच्चे नदारद है जिनके लिये यह आयोजित की जाती है। इंस्पायर एवार्ड नामांकन में सबसे बुरा हाल परिषदीय विद्यालयों का रहा। गत वर्ष मात्र एक नामांकन जूनियर हाई स्कूल कठिगरा, काकोरी से हुआ था। इस बाद दो बच्चों के नामांकन इसी स्कूल से हुये और एक नामांकन जूनियर हाई स्कूल, जौरिया, मलिहाबाद से हुआ है। जबकि केवल लखनऊ में 472 परिषदीय विद्यालय संचालित हो रहे है। इस शून्यता के लिये पूरी तरह से जिला विद्यालय निरीक्षक और बेसिक शिक्षा अधिकारी जिम्मेदार है। परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों को पढ़ाई के अतिरिक्त सारे कार्य करने पड़ रहे है। बच्चों को कापी किलाबें, ड्रेस जूते-मोजे, एमडीएम का पैसा, राशन बांटने के काम शिक्षकों को ही करना पड़ रहा है। इससे कुछ बचता है तो उनकी ड्यूटी कोविड में लगा दी जाती है। शिक्षकों के अनुसार उनको संडे तक की छुट्टी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में वे इन्स्पायर एवार्ड मानक में बच्चों के नामांकन कहां से करवा सकते है। कुल मिलाकर परिषदीय विद्यालयों की हो रही दुर्दशा के लिये शिक्षा विभाग ही जिम्मेदार है। इसीलिये लोग अपने बच्चों को सरकारी के बजाय निजी स्कूलों में पढ़ाना बेहतर समझते है।

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