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गूगल, फेसबुक को शेयर करना होगा रेवेन्यू, न्यूज पब्लिशर्स को मिलेगा फायदा – DNPA

अमेरिकी सांसदों ने सोमवार को जर्नलिज्म कॉम्पिटिशन एंड प्रिजर्वेशन एक्ट का रिवाइज्ड वर्जन (संशोधित प्रारूप) पेश किया. इस बिल के जरिए गूगल, फेसबुक जैसे बिग टेक कंपनियों के साथ न्यूज पब्लिशर्स का एक साथ बातचीत करना संभव होगा. इससे पब्लिशर्स या न्यूज ऑर्गनाइजेशन को उनके कंटेंट का सही रेवेन्यू मिलेगा. मामला ये है कि गूगल-फेसबुक जैसी कंपनियां न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के कंटेंट का इस्तेमाल तो करती हैं लेकिन इन संस्थाओं को सही मात्रा में रेवेन्यू शेयर नहीं करती हैं. अमेरिका का ये कदम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण होगा.

माना जा रहा है कि इस संशोधित प्रारुप से समाचार प्रकाशक बड़ी टेक कंपनियों का दबाव कम महसूस करेंगे और अपना पक्ष और मजबूती से रख पाएंगे. इससे न्यूज ऑर्गनाइजेशन अपनी बात ठोस ढंग से रख पाएंगे. मामला ये है कि गूगल, फेसबुक जैसी दिग्गज टेक कंपनियां मीडिया कंपनियों और संस्थानों द्वारा प्रकाशित खबरों को आसानी से उठा लेती हैं और उस संस्थान को इसके बदले कोई पैसा नहीं देती हैं और साथ ही उन संस्थानों की प्रकाशित खबरों के जरिए ये गूगल, फेसबुक हजारों करोड़ का मुनाफा कमा रहे हैं.

विवेचना कक्ष के उदघाटन अवसर पर मौजूद रहा पुलिस स्टाफ…

फेसबुक और गूगल विश्व के लगभग सभी देशों में और सभी संस्थानों के साथ ऐसा कर रहे हैं. हालांकि बीते कई महीनों पहले ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में इसको लेकर कुछ नियम बदले हैं.अब अमेरिका में जो नया बिल लाया जा रहा है उससे टेक और सोशल मीडिया कंपनियां समाचार पब्लिशर्स की सामग्री का उपयोग करने के बदले उन्हें राजस्व में हिस्सेदारी देने के लिए बाध्य होंगे.

DNPA ने किया स्वागत – भारत के मीडिया संस्थानों के संगठन डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने अमेरिका में विधेयक लाए जाने का स्वागत किया है. इस कदम को डिजिटल मीडिया स्पेस को डेमोक्रेटाइज करने के एक बड़े फैसले के तौर पर देखा जा रहा है. अमेरिका को लोकतंत्र और फ्री स्पीच के अगुआ के रूप में देखा जाता है.

बड़ा कदम  – एक रिपोर्ट में ऊठढअ के एक सूत्र के हवाले से कहा गया कि अमेरिकी सांसदों का गूगल, फेसबुक जैसे शक्तिशाली प्लेटफार्मों की मोनोपॉलिस्टिक टेंडेंसीज (एकाधिकारवादी प्रवृत्ति) को रोकने के लिए ऐसा कदम उठाना खुशी की बात है.

DNPA
DNPA

ये सही दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है. DNPA बीते कई साल से भारत के डिजिटल मीडिया हाउसेज के साथ गूगल के रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल को और अधिक पारदर्शी बनाने की मांग कर रहा है. ऊठढअ की शिकायत पर कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया ने इस साल की शुरुआत में गूगल के खिलाफ जांच शुरू की थी.

संसदीय पैनल के सामने टेक दिग्गज

अमेरिका से यह खबर ऐसे समय में सामने आई है जब कई बिग टेक दिग्गज भारत में एक संसदीय पैनल के सामने अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं.

मंगलवार को संसदीय स्थायी समिति ने देश में बिग टेक की मोनोपॉलिस्टिक प्रैक्ट्रिसेज (एकाधिकारवादी प्रवृत्ति) पर कुछ कठिन सवालों का सामना करने के लिए गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, नेटफ्लिक्स और कुछ अन्य के प्रतिनिधियों को बुलाया था.

कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में पहले से है ऐसा एक्ट

इससे पहले गूगल दिग्गजों की मोनोपॉली और पोजीशन के गलत इस्तेमाल को लेकर ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भी ऐसा एक्ट पास हो चुका है जहां इन दिग्गज कंपनियों को न्यूज पब्लिशर्स के साथ उचित रेवेन्यू शेयर करने का नियम बनाया गया है. इस पूरे मामले को यदि मोटे तौर पर आसान भाषा में समझें तो ऐसे समझ सकते हैं कि सभी देशों में अलग-अलग मीडिया हाउस, समाचार कंपनियां या न्यूज ऑर्गनाइजेशन हैं.

ये लोग न्यूज पब्लिश करते हैं. इनके न्यूज को गूगल और फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर दिखाते हैं और उस कंटेंट पर विज्ञापन चलाते हैं. इस विज्ञापन से होने वाली कमाई को गूगल और फेसबुक रखते हैं. इससे करोड़ों रुपये कमाते हैं लेकिन उस न्यूज संस्थानों को इस कमाई से कुछ नहीं देते हैं जबकि उन्हीं के कंटेंट पर ये विज्ञापन दिखाकर करोड़ों की कमाई करते हैं. लेकिन अब इस नए बिल के आने से न्यूज ऑर्गनाइजेशन को रेवेन्यू में हिस्सा देना पड़ेगा.

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