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शहीदों को याद करने के लिए जाएं जोश और जज्बे से भर जाएंगे ..

इस स्वतंत्रता दिवस आप किसी ऐसी जगह पर जाइये जो आपको जोश और जज्बे से भर दे. देश की आजादी के लिए खुद की आहुति देने वाले शहीदों की याद दिलाए. भारत में शहीदों की याद में कई स्मारक बने हैं, जहां जाकर हर भारतीय को गर्व महसूस होता है और उसके भीतर राष्ट्रवाद की भावना जाग उठती है. सभी जानते हैं कि कई सौ सालों की गुलामी के बाद हमें यह आजादी लाखों कुर्बानियों की बदौलत मिली है. भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, बालगंगाधर तिलक, सुखदेव, सरदार वल्लभभाई पटेल, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, वीर सावरकर जैसे वीरों के संघर्ष और जज्बे की बदौलत ही अंग्रेज भारत छोड़ने पर विवश हुए और हमें स्वतंत्रता मिली. ऐसे में आइये जानते हैं कि इस 15 अगस्त को आप किन-किन स्मारकों पर जा सकते हैं.

इंडिया गेट
इंडिया गेट

दिल्ली में स्थित इंडिया गेट देश के इतिहास को दर्शाता है. इसे पहले अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के नाम से भी जाना जाता था. इस युद्ध स्मारक पर शहीद भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है. हर साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर यहां परेड निकाली जाती है. देश के सभी राज्यों के सांस्कृतिक कार्यकर्मों की विभिन्न प्रकार की झांकियां प्रस्तुत होती हैं. इंडिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रथम विश्व युद्ध 1914-1918 और 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में शहीद हुए 80,000 से ज्यादा भारतीय सैनिक को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था. इंडिया गेट का निर्माण करने में मुख्य रूप से लाल और पीले पत्थरों का उपयोग किया गया है, जिन्हें खासतौर पर भरतपुर से लाया गया था.

लाल किला दिल्ली – हर साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराते हैं. यहीं से प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं. सन 1947 में जब भारत को आजादी मिली थी तब सबसे पहले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से भाषण दिया था. इस किले का निर्माण शाहजहां ने करवाया था. लाल रंग के बलूआ पत्थर से बने होने की वजह से इस किले का नाम लाल किला पड़ा.

कारगिल युद्ध स्मारक, लद्दाख 
कारगिल युद्ध स्मारक, लद्दाख

कारगिल युद्ध स्मारक, लद्दाख  – कारगिल युद्ध स्मारक लद्दाख में स्थित है. यह क्षेत्र समुद्र तल से 2676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह लेह के बाद लद्दाख का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. कारगिल जम्मू और कश्मीर में श्रीनगर के पूर्व में 204 किलोमीटर और लेह के पश्चिम में 234 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े युद्ध की निशानियां तो यहां दिखती ही हैं, साथ ही सैलानियों की भरमार भी रहती है.

यह युद्ध स्मारक सेना द्वारा 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान जान गंवाने वाले वीर सैनिकों और अधिकारियों की याद में बनाया गया है. यह स्मारक गुलाबी बलुआ पत्थरों से बना हुआ है. यहां शहीद सैनिकों के नाम भी अंकित हैं. सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 26 जुलाई को द्रास युद्ध स्मारक पर कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

दरअसल, 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ह्यऑपरेशन विजयह्ण को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चुंगल से मुक्त कराया था.

 

 

जलियांवाला बाग, अमृतसर  – अमृतसर में मौजूद जलियांवाला बाग आपको जोश और जज्बे से भर देगा. यह बाग अंग्रेजों की क्रूरता का जीता-जागता गवाह है. यहां अब भी दीवारों में बुलेट के निशान देखे जा सकते हैं. सन 1919 में जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन स्वतंत्रता सेनानियों ने रॉलेट ऐक्ट में विरोध में बैठक की योजना बनाई, जिन पर जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस हत्याकांड में हजार लोग शहीद हुए. जिसकी याद में यहां जलियांवाला बाग में मेमोरियल बनाया गया है.

झांसी का किला  –  झांसी का किला बगीरा पहाड़ी की चोटी पर बसा है. इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में राजा बीर सिंह देव ने करवाया था. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस किले का एक हिस्सा नष्ट हो गया था. किले के भीतर भगवान गणेश को समर्पित मंदिर और एक म्यूजियम है. जिसे टूरिस्ट देख सकते हैं. यहां सैलानी शहीदों को समर्पित युद्ध स्मारक और रानी लक्ष्मीबाई पार्क घूम सकते हैं. किले से झांसी के मनोरम दृश्यों को देख सकते हैं. इस किले में प्रवेश के लिए शुल्क देना होता है और यह सुबह 8 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक ही खुला रहता है. इस किले की गिनती भारत के सबसे ऊंचे किलों में होती है.

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह किला झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजी फौज के बीच हुई भीषण लड़ाई का गवाह रहा. झांसी की रानी को युद्ध में पराजित करने के बाद इस किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया. बाद में किले को ग्वालियर के महाराजा जियाजी राव सिंधिया को दे दिया.

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