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तालिबान के राज में मेरे जैसी लड़कियां पढ़ाई छोड़ बैठीं घर

नई दिल्ली । अफगानिस्तान (Taliban) की जाहिदा ने एक चिट्ठी लिखी है। ये साल भर बाद उसकी दूसरी चिट्ठी है। जाहिदा ने जब पहली चिट्ठी लिखी थी, तब तालिबान (Taliban) की फौज ने उनके शहर में घुसना शुरू किया था। अब देश में उसकी सरकार है।

डिप्रेशन में लोग नशा करने लगे हैं। किसी को नहीं पता कि आगे क्या होगा। सब नाउम्मीद हैं।एक साल पहले अगस्त की 15 तारीख को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था। तालिबान को 20 साल बाद दोबारा काबुल की सत्ता मिली थी।

जाहिदा की उम्र भी 20 साल ही है। यानी इस एक साल को छोड़ उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बिना पाबंदियों के बिताई थी।मां को कई महीने घर में बैठना पड़ा। दो-तीन महीने लगा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन हर दिन के साथ हालात बिगड़ते ही चले गए।

तालिबान के आने से पहले भी हमारा परिवार बहुत अमीर नहीं था, लेकिन वक्त अच्छा कट रहा था। खाने-पीने की कमी नहीं थी। अब एक साल में हमारी हालत बहुत खराब हो गई। सामान बेचकर खर्च चलाना पड़ रहा है। अपने खाने के लिए भले न हो, लेकिन तालिबान के लड़ाके घर में आ जाएं तो उन्हें खाने का सामान देना पड़ता है।

ऐसा हर परिवार को करना पड़ता है।मेरे पड़ोस में रहने वाली एक लड़की के साथ यही हुआ था। परिवार को उसकी शादी एक तालिबान लड़ाके से करनी पड़ी। दो महीने पहले उसके शौहर की लड़ाई में मौत हो गई।

जो महिलाएं नौकरी करने लगी थीं, काम छूटने के बाद उनमें से कई भीख मांग रही हैं। महिलाओं को सिर्फ मेडिकल और एजुकेशन फील्ड में काम करने की थोड़ी छूट है। वहां भी वे वही काम कर सकती हैं, जिन्हें मर्दों के पास नहीं जाना होता।

 

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